ग्लोबल वार्मिंग के चलते पिघल रहा गंगोत्री ग्लेशियर
- गंगोत्री ग्लेशियर पिघल रहा है सबसे तेज
देहरादून : उत्तराखंड विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) ने सेटेलाइट पिक्चर के आधार पर गंगोत्री ग्लेशियर पर कथित रूप से बन रही झील का अध्ययन किया है । अध्ययन के दौरान यूकॉस्ट को ग्लोबल वार्मिंग के संकेत मिले हैं और यहां के वैज्ञानिकों ने झील की निरंतर मॉनिटरिंग करने पर बल दिया है।
यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. राजेंद्र डोभाल के मुताबिक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने पर बनी झील पर उत्तराखंड हाईकोर्ट के चिंता व्यक्त करने के बाद यूकॉस्ट ने इसका अध्ययन किया। उनके अनुसार नासा के सेटेलाइट की 11 दिसंबर की हाई रेजोल्यूशन पिक्चर बताती है कि इसका आकार 0.67 हेक्टेयर है और इसमें करीब पांच मीटर गहराई तक पानी भरा है। इसके बाद की कोई पिक्चर सेटेलाइट से प्राप्त नहीं हुई है।
उन्होंने बताया कि हाई रेजोल्यूशन पिक्चर बताती है कि झील में दो जगह से पानी भर रहा है। पानी का एक स्रोत स्नोआउट के बगल और दूसरा झील की पूंछ की तरफ से है। सर्दियों के मौसम में झील में फ्लड की स्थिति नहीं होनी चाहिए। डॉ। डोभाल के अनुसार यह स्थिति बताती है कि ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग का असर तेज है।
उन्होंने कहा कि हालांकि यह कह पाना अभी मुश्किल है कि झील भविष्य में किसी तरह का खतरा बनेगी। इतना जरूर है कि झील की लगातार मॉनिटरिंग की जानी चाहिए। साथ ही इस पूरे क्षेत्र में मनुष्यों की आवाजाही प्रतिबंधित की जानी चाहिए।
वहीँ वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व में कराए गए अध्ययन में भी यह बात सामने आ चुकी है कि ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक असर गंगोत्री ग्लेशियर पर पड़ रहा है। अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की दर प्रतिवर्ष 22 मीटर है, जबकि अन्य ग्लेशियर 10 मीटर सालाना की दर से पिघल रहे हैं।
गौरतलब हो कि गंगा नदी में पानी की आपूर्ति के प्रमुख स्रोतों में से एक गंगोत्री ग्लेश्यिर पिछले 70 वर्ष में 1,500 मीटर से अधिक पीछे खिसक चुका है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने पाया है कि गत एक सदी में वैश्विक सतही तापमान में करीब एक डिग्री की वृद्धि हुई है। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में भी तापमान बढ़ने और बर्फबारी घटने का समान रूझान पहले ही दिख चुका है।
अध्ययन के अनुसार गंगोत्री क्षेत्र में अधिकतम तापमान 9.8 डिग्री से लेकर 12 डिग्री सेल्सियस तक रहता है, जबकि न्यूनतम तापमान शून्य से 1.5 डिग्री नीचे से लेकर शून्य से 2.9 डिग्री सेल्सियस नीचे के बीच रहता है। रिपोर्ट में कहा गया कि वर्ष 2002 में क्षेत्र में सबसे ज्यादा हिमपात हुआ था जो 416 सेंटीमीटर था तथा 2004 और 209 में यह बहुत कम, क्रमश: 156 और 137 सेंटीमीटर दर्ज किया गया। रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक के दौरान 2004 सबसे गरम वर्ष रहा।