CRIME

एफआरआइ निदेशक के बैंक खाते से जालसाजों ने उड़ाए 24 लाख

चेक हरियाणा के एक बैंक में लगाया गया  यहां से रकम गुजरात के बैंक खाते में हुई ट्रांसफर

पुलिस की एक टीम हरियाणा और दूसरी गुजरात के लिए रवाना

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून: जाली चेक का इस्तेमाल कर जालसाजों ने वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) के निदेशक (म्यूजियम) के खाते से करीब 24 लाख रुपये उड़ा दिए। एफआरआइ के अधिकारियों को जब इसकी भनक लगी तो हड़कंप मच गया। आनन-फानन पुलिस को सूचना दी गई। प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि यह चेक हरियाणा के एक बैंक में लगाया गया था। यहां से रकम गुजरात के बैंक खाते में ट्रांसफर की गई। पुलिस की एक टीम हरियाणा और दूसरी गुजरात के लिए रवाना हो चुकी है। एसपी सिटी श्वेता चौबे ने बताया कि जल्द ही मामले का पर्दाफाश कर दिया जाएगा।

एफआरआइ के निदेशक (म्यूजियम) के नाम से यूनियन बैंक में अकाउंट है। इस अकाउंट पर निदेशक को चेक बुक जारी की गई हैं। बीते 19 नवंबर को बैंक अधिकारियों ने संस्थान को बताया कि निदेशक के खाते से 24 लाख 31 हजार 840 रुपये मरधीनी इंटरप्राइजेज के गुजरात के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किए गए हैं। बैंक ने ट्रांसफर की पूरी डिटेल जुटाकर संस्थान को दी, जिसके बाद पता चला कि जिस नंबर के चेक पर रकम ट्रांसफर की गई है, वह तो संस्थान के पास ही मौजूद है। मामले में संस्थान के लेखाधिकारी हरेंद्र रावत की ओर से अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया है। पुलिस के अनुसार अब तक की जांच में सामने आया है कि फर्जी चेक को हरियाणा के इंडियन बैंक में लगाया गया था। बैंक ने चेक के क्लियरेंस के लिए एफआरआइ के दिल्ली मुख्यालय को फोन भी किया था, जिसके बाद रकम गुजरात की एक फर्म के खाते में ट्रांसफर कर दी गई।

पुलिस ने हरियाणा से बैंक में चेक जमा करने की तिथि, बैंक के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज और गुजरात के जिस बैंक के खाते में रकम ट्रांसफर की गई है, दोनों की डिटेल मंगाई गई है। कुछ अहम सुराग हाथ लगे हैं। एफआरआइ में कामकाज के सिलसिले में आने जाने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। पुलिस का मानना है कि जिस शख्स ने जालसाजी की है, वह अच्छी तरह जानता था कि इस समय कौन सी सीरीज के चेक का प्रयोग किया जा रहा है।

मिली जानकारी के मुताबिक जालसाज ने बीते 13 नवंबर को करीब 43 लाख रुपये का फर्जी चेक भुगतान के लिए हरियाणा के एक बैंक में लगाया था, लेकिन इस चेक को क्लियरेंस के दौरान पकड़ लिया गया। इससे भुगतान नहीं हो सका। माना जा रहा है कि यदि संस्थान और बैंक अधिकारी सतर्क हो जाते तो जालसाज अपने मंसूबे में कामयाब नहीं होता।

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