कोहरा घना है, चूंकि पलायन जो हुआ है
अविकल थपलियाल
दूर से क्लिक किये गए चित्र में घने जंगलों के बीच जो पहाड़ी शैली का मकान दिख रहा है, उस जगह का नाम है तल्ला कस्यानी। जंगल के बीच तन्हाई में दिख रहे मकान को देख उत्सुकता हुई कि कौन रहता है इस अकेले घर में ? यह गांव कोटद्वार-पौड़ी हाइवे पर है। गुमखाल से लगभग 2 किलोमीटर सतपुली की दिशा में चलने पर पहाड़ी के दाहिने ढलान पर बसा है।
सर्पीली सड़क के किनारे बैठे बकरी पालक और स्थानीय सब्जी विक्रेता से बातचीत में पता चला कि उस मकान में सिर्फ एक बुजुर्ग महिला श्रीमती डोबरियाल अकेली रहती है। और इस घर को छोड़ कहीं जाना नही चाहती। कुछ साल पहले उनके पति की मृत्यु हो गयी। और परिजन शहरों में रहते हैं। वो बुजुर्ग महिला अभी भी घर का राशन आदि स्वंय गुमखाल बाजार से लाती है। जंगल में गुलदार, बन्दर, भालू समेत कई हिंसक जानवर हैं। सुविधाओं के अभाव में अकेले रहना भारी हिम्मत का काम है। श्रीमती डोबरियाल के बच्चे हरिद्वार और देहरादून रहते हैं। लेकिन उन्हें कभी भी मैदान की हवा रास नही आयी।
बातचीत में बकरी पालक के तर्कों ने हिला दिया। कहता है, पहाड़ दिखते आकर्षक है, ये सौंदर्य दिल को लुभाता भी बहुत है लेकिन एक रात बिता कर देखिये। पलायन – पलायन का राग अलापना भूल जाएंगे ये मंत्री-सन्तरी। सब मौज मार रहे हैं।
सड़क के दूसरे छोर पर खड़े चरवाहे की ये बात सुन दिल बैठने लगा। शाम होते ही इस इलाके में भयावह सन्नाटा पसर जाता है। रात में आवाजाही का कोई साधन नही। घना अंधेरा, तेज हवा और जंगलों से आ रही भांय- भांय की आवाज से नरम दिल वालों की सांस न थम जाय तो कोई आश्चर्य नही। चरवाहे की सच्ची व करारी बातें सुन आगे के सफर के लिए बढ़ना मजबूरी थी। लेकिन उस गांव की अकेली महिला की कठिन जीवनचर्या मन और मस्तिष्क पर लगातार प्रहार करती रही।
कभी कुछ अनहोनी हो जाय तो लोगों को काफी देर बाद घटना का पता चलेगा? अगर गुलदार ने हमला कर दिया तो किसी को भी पता नही चलेगा। कहीं गुमखाल से सामान लाते हुए ही बुजुर्ग महिला पगडंडी से फिसल कर खाई में गिर गयी तो उसकी चीख भी जंगलों में खो जाएगी, आदि-आदि।
बाहरी मुल्कों की पुलिस और प्रशासन के पास ऐसे अकेले रह रहे बुजुर्गों की पूरी जानकारी होती है। किसी भी संकट के समय वे लोग पुलिस से तुरन्त सम्पर्क कर सकते हैं। और पुलिस भी ऐसे तन्हाई में जिंदगी गुजार रहे लोगों के लगातार संपर्क में रहती है। हालांकि, अपने देश के भी कुछ जगह ऐसी हल्की फुल्की लचर व्यवस्था है। लेकिन पलायन से खोखले हो चुके उत्तराखण्ड के इन बीहड़ और सुदूर गांवों में ऐसी व्यवस्था होनी अभी बाकी है।
प्रदेश के बहुत से गांवों में कई बुजुर्ग अकेले रहने को अभिशप्त है। किसी भी अनहोनी को रोकने के लिए पटवारी और तहसील स्तर पर ऐसे एकाकी जीवन जी रहे बुजुर्गों की सूची तैयार की जानी चाहिए। उत्तराखण्ड में आज ही गठित हुए पलायन आयोग के बावजूद कहीं ऐसा न हो कि परदेस में मौजूद अपने बेटे के इंतजार में कंकाल में तब्दील हो चुकी मुंबई की उस अभागी माँ की कहानी उत्तराखण्ड के इन बियाबान जंगलों में न दोहरा दी जाय।
(फेसबुक वाल से साभार )