Uttarakhand

रोजगार से जुड़ेगी चाय की खेती और दोगुने क्षेत्र में होगी खेती !

  • मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने की सार्थक पहल
  • रोजगार देने और पलायन रोकने की संभावनाओं को देखते हुए किया प्रयास 
  • नाबार्ड व विश्व बैंक से 98 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद !

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : एक जमाने में उत्तराखंड  चाय की खेती के लिए प्रसिद्द था इतना ही नहीं  ब्रिटिशकाल के दौरान भी उत्तराखंड में तकरीबन दस हजार हेक्टेयर में चाय की खेती होती थी। एक समय ऐसा भी था जब देहरादून के चाय बागानों की चाय विदेशों तक सप्लाई होती थी। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ साथ चाय की खेती से लोग दूर होने लगे। वर्तमान में  यह दायरा सिमट कर केवल 1140 हेक्टेयर रह गया है। प्रदेश में अभी चाय की केवल चार सरकारी व एक निजी फैक्ट्री संचालित हो रही है। अभी प्रदेश में तकरीबन 70 हजार किलो चाय का उत्पाद हो रहा है जहाँ लगभग चार हजार लोगों को  रोजगार मिल रहा है।  

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत की पहल पर चाय की खेती से रोजगार देने और पलायन रोकने की संभावनाओं को देखते हुए प्रदेश सरकार अब प्रदेश में चाय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए इसका दायरा दोगुना करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए विश्व बैंक व नाबार्ड का सहयोग लेकर एक हजार हेक्टेयर से अधिक नए क्षेत्र में चाय उत्पादन किया जाएगा। इसका मकसद न केवल किसानों की आर्थिकी को मजबूत करना है बल्कि इससे रोजगार के अवसर पैदा कर पलायन पर भी अंकुश लग सकेगा। नाबार्ड व विश्व बैंक की ओर से इसके लिए 98 करोड़ रुपये की योजनाओं को सैद्धांतिक सहमति भी मिल चुकी है। मामले में अपर सचिव उद्यान मेहरबान सिंह बिष्ट ने बताया कि विश्व बैंक व नाबार्ड ने चाय उत्पादन से जुड़े प्रस्तावों पर सैद्धांतिक सहमति दी है। इससे तकरीबन एक हजार हेक्टेयर के नए क्षेत्र में चाय की खेती की जा सकेगी। 

दिवंगत पूर्व मुख्यसचिव डॉ. आर.एस टोलिया के बाद अब लंबे समय बाद सरकार की नजरें भी इस क्षेत्र में पड़ी हैं। सरकार अब चाय बागानों को पुनर्जीवित करने की तैयारी कर रही है। दरअसल, चाय की फसल के लिए ढलानदार जमीन चाहिए। इसके लिए उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड की ओर से प्रदेश के कई क्षेत्रों का सर्वे कराया गया। राज्य में इस सर्वे के बाद मानकों के अनुसार छह हजार हेक्टेयर जमीन चाय की खेती के लिए  सही पाई गई है। अब इनमें से एक हजार हेक्टेयर से अधिक जमीन पर नए सिरे से चाय की खेती की तैयारी चल रही है। राज्य सरकार इसके लिए भू-स्वामियों से संपर्क कर उन्हें चाय उत्पादन के लिए प्रेरित करने की तैयारी में है । सरकार न केवल उन्हें जमीन का किराया देगी बल्कि रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगी । इसके अलावा सरकार ने इस बार किसानों के साथ अनुबंध करने के नए मानक भी तैयार किए हैं। इसके तहत सात वर्ष से लेकर 30 साल तक के लिए अनुबंध करने की तैयारी है। सरकार को इस वर्ष नाबार्ड व विश्व बैंक से 98 करोड़ रुपये मिलने की उम्मीद है। इससे नए एक हजार हेक्टेयर के क्षेत्रफल पर चाय की खेती की जा सकेगी। 
  • चाय की खेती के फायदे 
-चाय नगद फसल है, इसके लिए बाजार भी उपलब्ध है। 
-एक बार चाय उगाने के बाद कई वर्षों तक इसकी फसल तोड़ी जा सकती है। 
-दैवीय आपदा से भी इसे बहुत कम नुकसान होता है। 
-चाय बागानों से होता है जल संरक्षण। 
-ग्रीन कवर बढ़ाने में भी करता है सहायता। 
  • नाबार्ड ने इन स्थानों पर चाय की योजनाओं को दी है सहमति 
– नैनीताल-150 हेक्टेयर 
– चंपावत-150 हेक्टेयर 
– बागेश्वर-100 हेक्टेयर 
-चमोली- 150 हेक्टेयर 
-रुद्रप्रयाग- 100 हेक्टेयर 
कुल –         650 हेक्टेयर 

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