UTTARAKHAND

नंदाष्टमी पर आज भी चंद वंशज राज परिवार तांत्रिक विधि से करते हैं मां नंदा की पूजा

मां नंदा के नाम से हैं राज्य में स्थित हैं कई पर्वत चोटियां और नदियां

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

उत्तराखंड की आराध्य देवी हैं माँ नंदा 

उत्तराखंड से लेकर नेपाल तक किसी न किसी रूप में जहां माँ नंदा की पूजा की जाती है वहीँ माँ नंदा उत्तराखंड की आराध्य देवी भी रही है इतना ही नहीं इन्ही कारणों से माँ नंदा को उत्तराखंड एक सूत्र में पिरोने में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

पुराणों में हिमालय की पुत्री को नंदा बताया गया है। जिनका विवाह शिव से होता है। देवी भागवत में नंदा को शैलपुत्री के रूप में नौ दुर्गाओं में एक बताया गया है। जबकि भविष्य पुराण में उन्हें सीधे तौर पर दुर्गा कहा गया है।

इतना ही नहीं नंदादेवी के नाम से हिमालय की अनेक चोटियों को नंदा देवी का नाम भी दिया गया है। इनमें नंदादेवी, नंदाकोट, नंदाघुंटी, नंदाखाट आदि चोटियां हैं। इसके अलावा नंदाकिनी, नंद केसरी आदि नदियों के नाम भी नंदा देवी के नाम से हैं। उन्हें पर्वत राज हिमालय की पुत्री तथा उमा, गौरी और पार्वती के रूप में माना जाता है।

अल्मोड़ा।  नंदाष्टमी के अवसर पर अल्मोड़ा में नंदादेवी की पूजा तारा शक्ति के रूप में होती है। इस पूजा को प्राचीन काल से तांत्रिक विधि से किया जाता है और केवल चंद शासकों के वंशज ही इस पूजा को कराते हैं। चंद शासकों के वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा और उनके परिवारजन नंदाष्टमी के मौके पर परंपरा के मुताबिक तांत्रिक पूजा करवाते हैं। शुक्रवार को नंदाष्टमी पर होने वाली विशेष पूजा के लिए चंद राज वंशज के सी सिंह बाबा  परिजनों के साथ अल्मोड़ा पहुंच चुके हैं। यह पूजा रात्रिकाल में होगी 

गौरतलब हो कि उत्तराखंड में ज्योतिष, तंत्र और मंत्र तीनों विधाओं का यहां के जनजीवन और संस्कृति बहुत प्रभाव रहा है। इतिहासकारों की माने तो कत्यूरी और चंद राजा तंत्र विद्या में पारंगत माने जाते थे। कत्यूरी और चंद शासनकाल में देवी को युद्ध देवी के रूप में पूजने की परंपरा काफी प्रचलित रही है।

स्व. राजा आनंद सिंह तंत्र विद्या में काफी पारंगत माने जाते थे। जानकारी के मुताबिक उनके निधन के बाद नंदादेवी की पूजा पद्धति में काफी परिवर्तन आ चुका है लेकिन आज भी चंद शासकों के वंशज नैनीताल के पूर्व सांसद के सी सिंह बाबा और उनके परिवारजन नंदाष्टमी के मौके पर परंपरा के मुताबिक तांत्रिक पूजा करवाते रहे हैं। यह पूजा तारा यंत्र के समक्ष होती है। राजपुरोहितों के अनुसार यह यंत्र राज परिवार के पास ही है और राज परिवार इसे अपने साथ ही पूजा के दौरान लेकर आता है।

लेखक और पुराविद कौशल सक्सेना के मुताबिक तारा की उपासना मुख्यत: तांत्रिक पद्धति से होती है। इसे आगमोक्त पद्धति कहते हैं। ऐसा माना जाता है कि बौद्ध धर्म में तारा के माध्यम से ही शक्ति का प्रवेश हुआ। तिब्बत में उन्हें तारा धारणी का नाम दिया गया है। यह माना जाता है कि नंदा-सुनंदा की चोटी का स्वरूप नंदादेवी की चोटी के स्वरूप से आया होगा।

Related Articles

Back to top button
Translate »