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संस्कार परिवार के नाना-नानी या फिर दादा-दादी ही दे सकते हैं : भागवत

  • घर की चौखट के अंदर अपनी मातृभाषा में करें बात 
  • सभी बढ़ें संयुक्त परिवार व्यवस्था की तरफ 
  • गांव समृद्ध होगा, तभी हमारा राष्ट्र भी वास्तव में समृद्ध हो पाएगा

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने उत्तराखंड प्रवास के पहले दिन मंगलवार को विभिन्न वर्गों के साथ बैठक की। उनके साथ सीधा संवाद कायम किया। लोक कलाकारों, साहित्यकारों और संघ के स्वयंसेवकों से बहुत सारी बातें पूछीं। तिलक रोड स्थित संघ कार्यालय में सर संघ चालक मोहन भागवत मंगलवार को पूरे दिन व्यस्त रहे। सबसे पहले लोक कलाकारों, साहित्यकारों के साथ वह करीब डेढ़ घंटे तक बैठे।

उनके सवालों का जवाब दिया। आसान और सरल शब्दों में संघ से जुड़ी गूढ़ बातों को समझाने की कोशिश की। जोर राष्ट्रवाद, एकता, समरसता के साथ ही गांवों को समृद्ध बनाने पर रहा। भागवत ने कहा-सप्ताह में एक दिन गांवों के लिए निकालें, इससे देश मजबूत होगा। उन्होंने संयुक्त परिवारों को बढ़ावा देने की पुरजोर वकालत की। 

इसके बाद चुनिंदा संपादकों के साथ संघ प्रमुख ने बेहद अनौपचारिक माहौल में बैठक की। सबसे आखिरी बैठक शाखाओं के मुख्य शिक्षकों और प्रमुख स्वयंसेवकों के साथ हुई। इन सभी बैठकों में संघ प्रमुख ने आरएसएस की पृष्ठभूमि से अवगत कराया। 1925 में संघ की स्थापना और डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार के प्रयासों का जिक्र किया।

उन्होंने कहा कि संघ आज इतना बड़ा संगठन हो गया है कि 40 देशों में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से स्वयंसेवक काम कर रहे हैं। ध्येय राष्ट्रवाद से जुड़ा है, जिसमें सभी वर्गों के बीच समरसता का भाव जोड़ते हुए भारत को परम वैभवशाली बनाना है। भागवत ने संघ की कुटंब प्रबोधन संस्था का खास तौर पर जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी संयुक्त परिवार व्यवस्था की तरफ बढे़।

सबसे प्रबल और प्रभावी संस्कार परिवार के नाना-नानी या फिर दादा-दादी ही दे सकते हैं। प्रत्येक परिवार को चाहिए कि वह सप्ताह में एक दिन अपने पूर्वजों की बात करें। महापुरुषों की चर्चा करें। अपने घर की चौखट के अंदर अपनी मातृभाषा में बात करें। सप्ताह में एक दिन गांवों के लिए निकालें। हमारे जल, जंगल और जमीन, जो की हमारा वास्तविक धन है, हम इनको समृद्ध बनाने के लिए और इनकी सुरक्षा करने के लिए मिलकर काम करें। अपने गांव को खुशहाल बनाएं। गांव समृद्ध होगा, तभी हमारा राष्ट्र भी वास्तव में समृद्ध हो पाएगा।

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