डॉ० पसबोला प्रशिक्षण प्राप्त कर बने सर्टीफाइड रेकी हीलर (Certified Reiki Healer)
देहरादून: आज मंगलवार को डॉ० डी० सी० पसबोला को FRIENDS OF HAPPINESS FOUNDATION, New Delhi द्वारा प्रशिक्षण पूर्ण होने के पश्चात स्वाभास रेकी हीलर सर्टीफिकेट प्रदान किया गया। डॉ० पसबोला को सर्टीफाइड रेकी हीलर बनने पर समस्त परिजनों एवं शुभचिंतकों द्वारा बधाईयां दी जा रही हैं। डॉ० पसबोला उत्तराखंड में आयुर्वेद विभाग में आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं एवं साथ ही माधवबाग सर्टीफाइड एनसीडी रिवर्सल एक्सपर्ट चिकित्सक भी हैं और योग एक्सपर्ट भी हैं।
डॉ० पसबोला ने रेकी चिकित्सा पद्धति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि रेकी (霊気 या レイキ?, आईपीए: /ˈreɪkiː/) एक आध्यात्मिक अभ्यास पद्धति है जिसका विकास १९२२ में मिकाओ उसुई ने किया था। यह तनाव और उपचार संबंधी एक जापानी विधि है, जो काफी कुछ योग जैसी है। मान्यता अनुसार रेकी का असली उदगम स्थल भारत है। सहस्रों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। अथर्ववेद में इसके प्रमाण पाए गए हैं। यह विद्या गुरु-शिष्य परंपरा के द्वारा मौखिक रूप में विद्यमान रही। लिखित में यह विद्या न होने से धीरे-धीरे इसका लोप होता चला गया। ढाई हजार वर्ष पहले बुद्ध ने ये विद्या अपने शिष्यों को सिखाई जिससे देशाटन के समय जंगलों में घूमते हुए उन्हें चिकित्सा सुविधा का अभाव न हो और वे अपना उपचार कर सकें। भगवान बुद्ध की ‘कमल सूत्र’ नामक किताब में इसका कुछ वर्णन है। यहाँ से यह भिक्षुओं के साथ तिब्बत और चीन होती हुई जापान तक पहुँची है। जापान में इसे पुनः खोजने का काम जापान के संत डॉक्टर मिकाओ उसुई ने अपने जीवनकाल १८६९-१९२६ में किया था। इसकी विचारधारा अनुसार ऊर्जा जीवित प्राणियों से ही प्रवाहित होती है। रेकी के विशेषज्ञों का मानना है कि अदृश्य ऊर्जा को जीवन ऊर्जा या की कहा जाता है और यह जीवन की प्राण शक्ति होती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि ” की ” हमारे आस-पास ही है और उसे मस्तिष्क द्वारा ग्रहण किया जा सकता है।
रेकी चिकित्सा प्रगति पर: रेकी शब्द में रे का अर्थ है वैश्विक, अर्थात सर्वव्यापी है। विभिन्न लोगों द्वारा किये गये शोध के अनुसार यह निष्कर्ष निकला है कि इस विधि को आध्यात्मिक चेतन अवस्था या अलौकिक ज्ञान भी कहा जा सकता है। इसे सर्व ज्ञान भी कहा जाता है जिसके द्वारा सभी समस्याओं की जड़ में जाकर उनका उपचार खोजा जाता है। समग्र औषधि के तौर पर रेकी को बहुत पसंद किया जाता है।
रेकी की मान्यता है कि जब तक कोई प्राणी जीवित है, ‘की’ उसके गिर्द बनी रहती है। जब ‘की’ उसे छोड़ जाती है, तब उस प्राणी की मृत्यु होती है। विचार, भाव और आध्यात्मिक जीवन भी ‘की’ के माध्यम से उपजते हैं। रेकी एक साधारण विधि है, लेकिन इसे पारंपरिक तौर पर नहीं सिखाया जा सकता। विद्यार्थी इसे रेकी मास्टर से ही सीखता है। इसे आध्यात्म आधारित अभ्यास के तौर पर जाना जाता है। चिन्ता, क्रोध, लोभ, उत्तेजना और तनाव शरीर के अंगों एवं नाड़ियो में हलचल पैदा करते देते हैं, जिससे रक्त धमनियों में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों के परिणाम हैं।
शारीरिक रोग मानसिक रोगों से प्रभावित होते है। रेकी बीमारी के कारण को जड़ मूल से नष्ट करती हैं, स्वास्थ्य स्तर को उठाती है, बीमारी के लक्षणों को दबाती नहीं हैं। रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं का संतुलन होता है और शारीरिक तनाव, बैचेनी व दर्द से छुटकारा मिलता जाता हैं। रेकी गठिया, दमा, कैंसर, रक्तचाप, पक्षाघात, अल्सर, एसिडिटी, पथरी, बवासीर, मधुमेह, अनिद्रा, मोटापा, गुर्दे के रोग, आंखों के रोग , स्त्री रोग, बाँझपन, शक्तिन्यूनता और पागलपन तक दूर करने में समर्थ है। इसके द्वारा विशिष्ट आदर्शो के अधीन रहना होता है।
संस्कृत शब्द प्राण इसी का पर्यायवाची है। चीन में इसे ची कहा जाता है। रेकी के विशेषज्ञ नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर उसे सकारात्मक ऊर्जा में बदलने पर जोर देते हैं। उपचार करते समय रेकी विशेषज्ञ के हाथ गर्म हो जाते हैं। रेकी का इस्तेमाल मार्शल आर्ट़स विशेषज्ञ भी करते हैं। यह विद्या दो दिन के शिविर में सिखाई जाती है, जिसमें लगभग पंद्रह घंटे का समय होता है।
इस शिविर में रेकी प्रशिक्षक द्वारा व्यक्ति को सुसंगतता (‘एट्यूनमेंट’ या ‘इनिसियेशन’ या ‘शक्तिपात’) प्रदान की जाती है। इससे व्यक्ति के शरीर में स्थित शक्ति केंद्र जिन्हें चक्र कहते है, पूरी तरह गतिमान हो जाते हैं, जिससे उनमें ‘जीनव शक्ति’ का संचार होने लगता है।