UTTARAKHAND

आज उत्तराखंड में एक या दो या तीन केस आ गए, तो क्या हमें पैनिक करने की जरूरत है ?

देवभूमि मे कोरोना का कहर, कोरोना ने दी दस्तक, बढ़ती चिंता, मंडराता खतरा, 

 ब्रेकिंग, हड़कंप जैसे शब्द बनाते हैं पैनिक का माहौल

अनूप नौटियाल 
देहरादून : आज जबकि देश में कोविड-19 के मामले बढ़ रहे हैं और उत्तराखंड में भी कुछ अंतराल को छोड़कर नये मामले सामने आ रहे हैं, ऐसे में हर एक की नजर शाम ढलते ढलते उत्तराखंड स्वास्थ्य विभाग के हेल्थ बुलेटिन मे पाॅजिटिव केस पर लगी होती है I
पता नहीं क्यों, पर हर एक नए केस के सामने आने के साथ ही हमारा डर बढ़ जाता है। हम शायद कुछ और पैनिक हो जाते हैं। देवभूमि मे कोरोना का कहर , कोरोना ने दी दस्तक, बढ़ती चिंता, मंडराता खतरा, ब्रेकिंग, हड़कंप जैसे शब्द आग मे घी का काम करते हैं और पैनिक का माहौल पैदा करने मे अपना बड़ा योगदान देते  हैं I
लेकिन, क्या वास्तव में हमेँ पैनिक करने की ज़रूरत है, क्या हम ओवर रियेक्ट तो नहीं कर रहे ? आईये, कुछ आंकड़ों के दृष्टिकोण से उत्तराखंड मे इस स्थिति को समझने की कोशिश करते हैं I
सबसे पहली बात,  उत्तराखंड में स्थिति पैनिक होने जैसी नहीं है। बल्कि, यदि कहें कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं होगा। प्रदेश मे पहला केस मार्च 15 को आया था, आज (May 1, 2020) उत्तराखंड मे कोरोना का डे 48 है I राज्य में पहले 10 दिनों में मात्र 18 टेस्ट प्रतिदिन किये गये। 11वें से 20वें दिन तक यह संख्या 50 टेस्ट प्रतिदिन थी। 21वें से 30वें दिन तक 100 टेस्ट प्रतिदिन के हिसाब से किये गये, जबकि 31 वें से 40वें दिन तक औसतन 220 टेस्ट प्रतिदिन और 41वें 45 वें दिन तक 268 टेस्ट हर रोज किये गये। इसके बाद 29 अप्रैल को 347, 30 अप्रैल को 553 और 1 मई को  408  टेस्ट किये गये।
अब तक कुल 6590 टेस्ट हुए हैं। इनमें 57 पाॅजिटिव आये हैं, यानी संक्रमण की दर आज 1 प्रतिशत से भी कम है । पाॅजिटिव आये मरीजों में 37 स्वस्थ होकर अपने घर चले गये हैं। प्रदेश का रिकवरी रेट 65% परसेंट है I इसकी तुलना मे देश का रिकवरी रेट 25% और संक्रमण दर 4% से ज़्यादा है I
राज्य में शुरू में टेस्ट बहुत कम हो रहे थे। कम टेस्ट में ज्यादा मरीज सामने आ रहे थे, लेकिन अब ज्यादा टेस्ट में कम मरीज सामने आ रहे हैं। यह अच्छा है कि अब ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं। जरूरत टेस्ट की संख्या और ज्यादा बढ़ाने की है। ज्यादा टेस्ट करने से कुछ ज्यादा मरीजों की पहचान होगी, यह अच्छी बात है, ताकि जितने मरीज हैं, वे सामने आ सकें और उसी हिसाब से सुरक्षात्मक उपाय किये जा सकें।
मरीज आने के बाद ट्रेस , टेस्ट, Isolate और ट्रीट (TTIT ) की प्रक्रिया तुरंत शुरू हो जाती है I अब इतने समय में स्वास्थ्य विभाग, प्रशासन, पुलिस और ग्राउंड टीम्स का अनुभव बहुत काम आता है I अधिकांश जगहों पर Standard Operating Procedures (SOP) बन चुके हैं और केस आते ही एक सेट प्रोसेस के तहत इलाज शुरू हो जाता है I
विश्वभर और देश भर में ट्रेंड और डाटा बता रहा है कि ज्यादा टेस्ट करने पर ज्यादा मरीजों की पहचान होगी, जब पहचान होगी तो केस भी सामने आएंगे I ऐसे में मै आपसे कहना भी चाहूंगा और विनती भी करूँगा की एक-एक केस सामने आने पर पैनिक न हों, बल्कि यह भी देखें कि टेस्ट कितने हुए। टेस्ट ज्यादा से ज्यादा हों। ज्यादा टेस्ट करने पर यदि कुछ ज्यादा मामले सामने आते हैं तो वह सुरक्षा के नजरिये से अच्छी बात होगी।

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