आपदाग्रस्त हिमालय क्या नेताओं और वैज्ञानिकों की है सैरगाह ?
जांच हो चाॅपर से नंदा देवी पार्क क्यों गयी वाडिया संस्थान की टीम ?
वाडिया के रजिस्ट्रार और फोटोग्राफर ने भी की चाॅपर से आपदाग्रस्त इलाके की सैर
गुणानंद जखमोला
आपदा कुछ लोगों के लिए अवसर लेकर आती है। ऋषिगंगा में जलप्रलय को लेकर कुछ नेताओं और अफसरों की मौज हो गयी तो इसमें हिमालय पर शोध करने वाली संस्था वाडिया इंस्टीट्यूट के लोगों की भी मौज रही। जिन वैज्ञानिकों को हिमालयी ग्लेशियर की जानकारी नहीं, वो भी हेलीकाॅप्टर से वहां पहुंच गये। सूत्रों के मुताबिक वो आपदाग्रस्त क्षेत्र से भी लगभग 30 किलोमीटर दूर नंदादेवी पार्क पहुंच गये। आखिर क्यों? इस चाॅपर में संस्थान के निदेशक डा. कालाचंद साईं रजिस्टार पंकज कुमार, फोटोग्राफर भूमेश भारती बिना बात के वहां पहुंच गये। पांच आदमियों में से दो को ही भूगर्भ और टेक्टोेनिक का ज्ञान था।
ऋषिगंगा आपदा पर अभी इसरो, यूसैक और यहां तक कि नासा से भी जानकारी लेने के प्रयास किये जा रहे हैं तो वाडिया के निदेशक डा. साईं का मीडिया को दिये बयान पर सवाल उठ रहे हैं कि चमोली में हैंगिंग ग्लेशियर रात को ढाई बजे टूटा। समय का निर्धारण किस आधार पर हुआ? यह बड़ा सवाल है? रजिस्ट्रार पंकज कुमार वहां क्या लेने गये तो क्या फोटोग्राफर भूमेश भारती वहां की तस्वीरों को बेचेंगे नहीं?
हम हिमालय को लेकर कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय आज यानी 18 तारीख को दोपहर 3 बजे से डेढ़ घंटे तक नंदा देवी ग्लेशियर फटने के कारणों और चिन्ताओं पर एक मंथन कर रहा है। वाजिब है कि ऐसे मंथन होने चाहिए। हिमालय को लेकर जागरूकता तभी आएगी। लेकिन इस चर्चा के पैनल में जिन लोगों को शामिल किया गया है उनको गर््लेशियरों का रत्ती भर भी ज्ञान नहंी। मसलन पदमभूषण डा. अनिल जोशी को केवल अवार्ड लेना आता है, ग्लेशियर से उनको क्या मतलब? आईआईटी रुड़की के डा. संजय जैन और डा. रनोज थैयन्न वाटर रिसोर्स पर ही काम करते हैं। वाडिया के डा. संतोष राय ने भी ग्लेशियर और हिमालय पर काम नहीं किया। मेरे कहने का अर्थ यह हैॅ कि यह टाइम पास मात्र है। जो लोग जिस फील्ड में एक्सपर्ट हैं, उनको सरकार तवज्जो ही नहीं देती? यह देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं तो और क्या है?
दरअसल जब-जब हिमालय में आपदा आती हैं तो हम हिमालय के लोग अपने जान-माल से हाथ धोते हैं। प्रकृति से छेड़छाड़ भी सरकार और बाहरी लोग करते हैं और आपदा को अवसर में भी यही लोग बदलते हैं। आखिर आपदा में सैर-सपाटा की प्रवृत्ति कब रुकेगी? हिमालय को सरकार गंभीरता से कब लेगी? जब तक विज्ञान को नहीं समझा जाएगा, तब तक हिमालय को कैसे समझा जा सकेगा? हमें हिमालय की आपदा को सैरगाह बनने से रोकना होगा। आवाज उठानी होगी कि 200 से भी अधिक लोग मारे गये लेकिन नेताओं और अफसरों के लिए हिमालय सैरगाह क्यों बना है। बस, बहुत हुआ, अब हम नहीं सहेंगे। आपदाग्रस्त हिमालय को सैरगाह नहीं बनने देंगे? वाडिया की टीम से चाॅपर पर हुए खर्च को वसूला जाना चाहिए।
(श्री गुणानंद जखमोला पेशे से पत्रकार हैं उनकी फेसबुक वाल से साभार)