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रिस्पना के पुनर्जीवन से ध्यान न भटकाए एमडीडीए: मैड

रिवरफ्रंट डेवलपमेंट परियोजना पर मैड ने एम डी डी ए को दागे चार सवाल?

रिस्पना नदी के पुनर्जीवन पर सात सालों से व्यापक जन अभियान चला रहे युवा छात्रों के संगठन मेकिंग ए डिफ्फेरेंस बाय बीइंग द डिफ्फेरेंस (मैड) संस्था द्वारा बुधवार को आयोजित प्रेस वार्ता में रिस्पना पुनर्जीवन के मुद्दे पर ही ध्यान लगाने की बात कही गयी। जून2011 से रिस्पना नदी के पुनर्जीवन को लेकर राज्य एवं केंद्र सरकार को लगातार सचेत करती आ रही मैड संस्था ने पहली बार अप्रैल 2017 में वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से रिस्पना नदी के पुनर्जीवन को सरकार द्वारा उठाने की मांग की थी। इसके पश्चात् मुख्यमंत्री ने रिस्पना और कोसी नदियों के पुनर्जीवन का बेडा उठाया। अभी तक रिस्पना पुनर्जीवन पर मुख्य सचिव उत्पल कुमार द्वारा चार उच्च स्तरीय बैठकें हो चुकी हैं और इन सभी बैठकों में सभी विभागों के उच्च अधिकारियों के साथ मैड संस्था के अध्यक्ष अभिजय नेगी भी मौजूद रहे हैं। इसी तरह रिस्पना के पुनर्जीवन का बुनियादी ढांचा बना रहे ज़िला अधिकारी, नगर अधिकारी, मसूरी वन विभाग, नगर निगम समेत सभी संस्थाओं से मैड संस्था रिस्पना पुनर्जीवन पर चिंतन मंथन करती आ रही है और उनको अपने सुझाव देती आ रही है।

राज्य सरकार और विशेष तौर पर मुख्यमंत्री द्वारा रिस्पना पुनर्जीवन पर हो रहे सभी कार्यों का मैड संस्था ने स्वागत किया है और इसे दून के संतुलित विकास की ओर एक बहुत बड़ा कदम बताया है। अब इस बात की ज़रुरत है कि सरकार के सभी विभाग जिन पर यह दायित्व है कि वह रिस्पना पुनर्जीवन का सपना साकार करें वह भी पूरी निष्ठा से केवल इसी लक्ष्य पर ध्यान दें। इसके संदर्भ में मैड संस्था के सदस्यों का कथन था कि मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण अर्थात् एम डी डी ए को भी रिस्पना पुनर्जीवन पर ही ध्यान देना चाहिए जबकि उसका ध्यान रिवरफ्रंट परियोजना पर ज़्यादा लगता है। इसके संदर्भ में मैड ने एम डी डी ए से चार स्पष्ट सवाल सार्वजानिक तौर पर पूछे हैं। मैड की ओर से यह कदम तब उठाया जा रहा है जब एम डी डी ए ने कुछ कंपनियों के साथ रिस्पना के 1.2किलोमीटर क्षेत्र और बिंदाल के 2.5 किलोमीटर क्षेत्र को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर “विकसित” करने की बात की है। इन्ही के विकास मॉडल पर मैड ने कुछ प्रश्न खड़े करे हैं जो निम्न प्रकार हैं:

प्रश्न 1: रिवरफ्रंट परियोजना का कानूनी मापदंडों पर खरा उतरना अपने आप में एक बड़ा सवाल है। जिस तरह वर्ष 2015, 2016 में एम डी डी ए द्वारा रिस्पना एवं बिंदाल नदियों के तलों पर दीवारों का निर्माण किया गया, वह अपने आप में ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के स्पष्ट आदेशों की अवमानना थी जिसमें नदी तल पर किसी भी तरह के निर्माण कार्य को प्रतिबंधित घोषित किया गया था। यह बात इसलिए भी ज़रूरी हो जाती है क्योंकि राष्ट्रिय जलविज्ञान संसथान रूड़की द्वारा पहले ही 2014 में रिस्पना नदी को एक बारहमासी नदी घोषित कर दिया गया है और उसके बहाव के क्षेत्र को कैचमेंट के तहत 100 मीटर तक मापा गया है। इसलिए मैड संस्था का यह आग्रह है कि एम डी डी ए सर्वप्रथम अपनी परियोजना की कानूनी तौर पर खरा उतरने की क्षमता को जांच ले और फिर कोई ऐसी ही परियोजना बनाए जिसमे नदी के स्वाभाविक बहाव क्षेत्र के दोनों तरफ के पचास मीटर तक किसी भी तरह का कंक्रीट निर्माण नहीं किया जायगा। स्पष्ट प्रश्न एम डी डी ए से है कि क्या उसने राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के मापदंडों की जाँच रिवरफ्रंट परियोजना के सन्दर्भ में की है और क्या एम डी डी ए ने यह ज़रूरी समझा है कि अपने रिवरफ्रंट का ख़ाका तैयार करने से पहले वह राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं से यह सुनिश्चित कर ले कि उससे वह नदी के बहाव पर कोई बुरा असर तो नहीं डाल रहा?

प्रश्न 2: एम डी डी ए ने रिवरफ्रंट परियोजना की परिकाष्ठा वैपकोस की जिस शोध के आधार पर करी है उसके कुछ बुनियादी समझ पर प्रदेश के सिंचाई विभाग ने अपनी आपत्ति ज़ाहिर करी है। उदाहरण के तौर पर वैपकोस ने एक क्षेत्र में रिस्पना का बहाव 10 क्यूमेक पर सेकंड नापा है जबकि सिंचाई विभाग ने उसी क्षेत्र में उसी अंतराल में रिस्पना का बहाव 100 क्यूमेक पर सेकंड के आधार पर नापा है। गौर करने वाली बात यह है कि सिंचाई विभाग द्वाया एम डी डी ए को इस बात का संज्ञान दिया जा चुका है। सिंचाई विभाग की आपत्तियों पर एम डी डी ए अपने रिवरफ्रंट में क्या कोई फेरबदल देखता है।

प्रश्न 3: रिस्पना पुनर्जीवन के तहत एम डी डी ए को मलिन बस्ती निवासियों के पुनर्वास का कार्यभार दिया गया है जो अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट होगा। उस पर भी एम डी डी ए प्रकाश डाले कि पुनर्वास की वह क्या नीति बनाएगा। यह प्रश्न इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि रिवरफ्रंट की बात के तहत् पुनर्वास का तर्क एम डी डी ए अपने पायलट क्षेत्रों के लिए ही दे रहा है जबकि एम डी डी ए को पूरे नदी क्षेत्र के पुनर्वास को देखना होगा। एम डी डी ए पुनर्वास संबंधी अपनी ज़िम्मेदारियों को छोड़ कर क्यों रिवरफ्रंट का ही राग अलाप रहा है?

प्रश्न 4: एम डी डी ए अगर रिवरफ्रंट बनाने को इतना इच्छुक है ही, तो वह इसका कोई वास्तविक स्वरूप क्यों नहीं देताl सैकड़ों करोड़ों के बजट की बात देकर जो एमडीडीए विज़न दिखा रहा है उसके उपर विश्वाश तभी किया जा सकता है जब उस संस्थान का स्वयं का कार्य उसका प्रमाण हो l यह किसी से छुपा नहीं है कि पिछले 34 वर्षों में एमडीडीए की ही नाक के नीचे रिस्पना नदी का यह खस्ता हाल हुआ है l और रिस्पना नदी का ही नहीं पूरी दून घाटी का असंतुलित विकास जिस तरीके से हुआ है उसमें एमडीडीए मौन अवस्था मे ही पाया गया और अब उसे हरकत में आने को मजबूर होना तभी पड़ रहा है जब राज्य सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने इस प्रोजेक्ट  की बागडोर स्वयं  अपने हाथ मे ली है l एमडीडीए अपना रिवर फ्रंट संतुलित विकास के मॉडल पे क्यों नहीं लाता जिसमे रिस्पना नदी के दोनों ओर केवल वृहद् वृक्षारोपण से नदी के तटों को सुंदर किया जाय और दून के असंतुलित पर्यावरण का भी मिज़ाज़ बदला जाए? इसके बदले एमडीडीए क्यों केवल दीवारें बनाने पर ही आतुर है?

मैड संस्था ने फिर दोहराया कि रिस्पना पुनर्जीवन का जो सपना मुख्यमंत्री जी देख रहे हैं उसको साकार करने के लिए सभी विभागों को एक सही मंशा के साथ काम करना होगा l पहले ही फेल हो चुके मॉडल अब नहीं आजमाने चाहिएl अपनी ओर से मैड संस्था ने यह स्पष्ट किया कि अगर एमडीडीए अपने रिवरफ्रंट पे जरूरी फेर बदल करें और उसके तहत क्षेत्रों को वृक्षों से सजा देने पर बाल दे तो मैड एवं उसके स्वयंसेवी एमडीडीए के इस कदम के साथ खड़े होंगे l अपनी ओर से अपनी अपत्तियों का एक ग्यापन मैड द्वारा एमडीडीए को जल्द ही सौंपा जाएगा l प्रेस वार्ता का मुख्य सम्बोधन मैड के संस्थापक अध्यक्ष अभिजय नेगी एवं कारन कपूर के द्वारा किया गया l विनोद बैगलियाल, विजय प्रताप सिंह, हृदेश शाही, शार्दुल असवाल इत्यादि सदस्य गण भी उपस्थित रहे l

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