नेपाल के लोगों द्वारा राजशाही बहाली के लिए आंदोलन शुरू
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : नेपाल में एक बार फिर 12 सालों के लोकतंत्र के बाद राजशाही बहाली के लिए शुरू हुआ आंदोलन यह दर्शाता है कि हिंदू राजा हमेशा ही जनता के दुख दर्द की चिंता करते थे और उनके विकास के लिए कार्य करते थे।
माना जा रहा है कि नेपाल के वामपंथियों द्वारा हिंदू राजाओं को सामंतवादी और अत्याचारी घोषित कर,जो दुष्प्रचार शुरू किया गया था। नेपाल की जनता वामपंथियों के इस दुष्प्रचार में आ गई। लेकिन केवल 12 वर्षों के लोकतंत्र में जनता ने देख लिया कि राजा अत्याचारी नहीं होता। बल्कि लोकतंत्र में स्थापित हुए लोकतांत्रिक राजनेता,जनता के दुख दर्द को महत्व नहीं दे रहे हैं।
लोकतांत्रिक राजा चुनाव जीतने के बाद जनता के दुख दर्द की चिंता को भूल कर केवल अपने विकास में लग जाते हैं और देश के संसाधनों पर कब्जा जमाकर स्वयं संपन्न हो रहे हैं। जबकि दूसरी तरफ राजतंत्र में केवल एक राजा होता है और राजा की सुरक्षा में ही थोड़ा बहुत जनता का धन व्यय होता है।
लेकिन लोकतंत्र में प्रत्येक पांच वर्ष में हजारों नए राजा बनते हैं। इन नए लोकतांत्रिक राजाओं पर वेतन -भत्ते और अन्य सुविधाओं के रूप में पर जनता की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ों रुपए की धनराशि का अपव्यय होता है। लोकतांत्रिक राजाओं पर व्यय की जाने वाली हजारों करोड़ों की धनराशि,जो इन लोकतांत्रिक राजाओं को, वेतन भत्ते और पेंशन के रूप में दी जाती है। उस धनराशि का उपयोग राष्ट्र के विकास में एवं लोगों की सुख सुविधाएं विकसित करने में खर्च किया जा सकता था।
इतिहास में हिंदू राजाओं के जनता पर अत्याचार करने के न्यूनतम प्रमाण मिलते हैं। इतिहास में हिंदू राजाओं द्वारा जनता के हितों के लिए स्वयं के वंश को युद्ध में बलिदान कर देने के सैकड़ों उदाहरण भी इतिहास के पन्नों में मौजूद हैं।
लेकिन लोकतांत्रिक राजाओं द्वारा जनता के हित में स्वयं एवं स्वयं के परिवार को बलिदान कर देने के कोई भी उदाहरण आज तक मौजूद नहीं है। देश की सभी वर्ग की जनता,इन लोकतांत्रिक राजाओं की कार्यप्रणाली से खुश नहीं है। यदि इन लोकतांत्रिक राजाओं की कार्यप्रणाली पर जनमत संग्रह करा दिया जाए। तो अधिकांश जनता इस लोकतांत्रिक प्रणाली के इन लोकतांत्रिक राजाओं के विरोध में ही मतदान करेगी।
यदि भारत के हिंदू राजाओं और लोकतांत्रिक राजाओं के बीच तुलनात्मक विश्लेषण किया जाए। तो लोकतांत्रिक राजाओं की अपेक्षा ,हिंदू राजाओं का देश एवं राज्य के विकास में अधिक योगदान दिखाई देगा। यूरोपीय अर्थशास्त्री एंगुस मेडिसिन के अनुसार हिंदू राजाओं के समय भारत की जीडीपी 35% से अधिक थी। जबकि लोकतांत्रिक राजाओं के समय में देश की जीडीपी 10% से ऊपर नहीं आ पा रही है।