Uttarakhand

सुप्रीम कोर्ट के पचड़े में फंसी कंडी- लालढांग-चिलरखाल सड़क !

  • सुप्रीम कोर्ट के तीन हफ्ते में जवाब देने के निर्देश 

  • सड़क के निर्माण में हुआ वन संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन 

  • सुप्रीम कोर्ट ने दिए सड़क का काम रोकने के आदेश

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून: गढ़वाल एवं कुमाऊं को राज्य के भीतर से जोड़ने वाली और प्रदेश सरकार की महत्वकांशी कंडी रोड के लालढांग-चिलरखाल सड़क के लैंसडोन वन प्रभाग वाले हिस्से के निर्माण को लेकर एक बार फिर उत्तराखंड सरकार परेशानी में आ गयी है। अब सुप्रीम कोर्ट ने इस सड़क के निर्माण को वन संरक्षण अधिनियम का उल्लंघन मानते हुए कार्य पर रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं। वहीं साथ ही सरकार को नोटिस जारी कर तीन हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। यह सड़क कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व के मध्य में स्थित लैंसडौन वन प्रभाग के अंतर्गत है।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का गहनता से अध्ययन किया जाएगा। इस सड़क को लेकर राज्य के पक्ष को मजबूती के साथ कोर्ट में रखा जाएगा। कोर्ट में दाखिल किए जाने वाले जवाब के मद्देनजर उच्चाधिकारियों की बैठक बुलाई गई है।’

डॉ.हरक सिंह रावत, वन मंत्री उत्तराखंड

गौरतलब हो कि कंडी रोड (रामनगर-कालागढ़-कोटद्वार- लालढांग) प्रदेश सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट में शुमार है। इस रोड के लालढांग-चिलरखाल (कोटद्वार) के 11 किमी हिस्से के निर्माण के लिए सरकार ने पहल की। लोनिवि को करीब सवा छह किमी सड़क निर्माण को वन भूमि हस्तांतरित करने के साथ ही डामरीकरण व तीन पुलों के निर्माण को धनराशि दी गई। अब तक छह किमी सड़क के डामरीकरण के साथ ही दो पुल करीब- करीब बन चुके हैं।

हाल में ही नेशनल ग्रीन टिब्यूनल (एनजीटी) और नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अॅथोरिटी (एनटीसीए) ने इस सड़क निर्माण का संज्ञान लेते हुए आख्या मांगी। इसके बाद डीएफओ ने लोनिवि को कार्य रोकने के निर्देश दिए और फिर अपर मुख्य सचिव लोनिवि ने भी काम रोकने के आदेश जारी कर दिए। इसे लेकर सियासत भी गमाई रही। तब वन मंत्री ने अपर मुख्य सचिव के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया था।

इस बीच एनजीटी के आदेश पर गठित एनटीसीए की टीम ने सड़क का मौका मुआयना कर अपनी रिपोर्ट एनटीसीए को सौंप दी। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी मई में सड़क का निरीक्षण किया। इस बीच उत्तराखंड वन विभाग की ओर से एनटीसीए को आख्या भेज दी गई, जिसमें कहा गया कि इस मार्ग के सुदृढ़ीकरण का कार्य पारिस्थितिकीय रूप से पूर्णतया पोषणीय है। लिहाजा, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत इसके लिए वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस लेने की जरूरत नहीं समझी गई।

एनटीसीए ने बीती 10 जून को राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेजकर अवगत कराया कि वह वन विभाग के इस जवाब से संतुष्ट नहीं है। सड़क के लिए राज्य वन्यजीव बोर्ड व नेशनल वन्यजीव बोर्ड से अनुमति ली जानी आवश्यक है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट की सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी ने भी सड़क को लेकर अंतरिम रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी। इस सड़क से संबंधित मामले में शुक्रवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व के वन्यजीवों के लिए कॉरीडोर पर लैंसडौन वन प्रभाग को काम रोकने के आदेश दिये हैं। कोर्ट  ने कहा कि इस सड़क को बनाने के लिए न तो एनटीसीए से ही स्वीकृति ली गयी है और न वाइल्ड लाइफ बोर्ड से ही अनुमति प्राप्त की गयी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वन महकमें में हड़कंप है लेकिन वहीँ चर्चाएं भी आम हैं कि चर्चित अपर मुख्यसचिव ने बड़ी ही चालाकी से मंत्री से अपना बदला लेने के लिए सड़क के इस मामले को सुप्रीम के पचड़े में फंसा दिया है।  

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