हिमालयी क्षेत्रों के 50 लाख से अधिक जलस्रोतों पर संकट के बादल
- हिमालय में शोध के बाद बड़ा खुलासा……
- उत्तराखंड के 16000 गांवों में से 600 गांवों में पीने के पानी की कमी
- देश के नौ हिमालयी राज्यों में वैज्ञानिकों ने जताई बड़े खतरे की आशंका
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : हिमालय को लेकर हुए एक बड़े शोध में वैज्ञानिकों ने एक बड़े खतरे की आशंका जताई है। नीति आयोग के निर्देश पर वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध के बाद यह रिपोर्ट आयी है कि हिमालयी क्षेत्रों में स्थित 50 लाख से अधिक जलस्रोतों पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. समीर तिवारी के अनुसार हिमालयी क्षेत्रों में जलस्रोत सूख रहे हैं। यह जानकारी एक अध्ययन के बाद सामने आई है। इस संबंध में रिपोर्ट तैयार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के जरिये नीति आयोग को भेजी जा रही है। फिलहाल चकराता क्षेत्र में कई जगहों पर नए सिरे से अध्ययन किया जा रहा है। हिमालयी क्षेत्र में स्थित जलस्रोतों को सूखने से रोकने को लेकर यदि कारगर नीतियां नहीं बनाई गई तो भविष्य में समस्या विकट हो सकती है जिससे पार पाना आसान नहीं होगा।
दून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा नीति आयोग के निर्देश पर किए गए अध्ययन में पाया है कि उत्तराखंड समेत देश के सभी पर्वतीय राज्यों में 30 फीसदी जलस्रोत सूख गए हैं जबकि 45 फीसदी जलस्रोत सूखने के कगार पर हैं। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि हिमालयी क्षेत्र में स्थित झरने सूख रहे हैं, जिसका असर इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों पर भी दिखाई देने लगा है।
इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया के तमाम हिमालयी क्षेत्रों में 50 लाख से अधिक जलस्रोत हैं। इसमें से 30 लाख जलस्रोत इंडियन हिमालयन रीजन में स्थित हैं। जो हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और नागालैंड के अलावा असम व पश्चिम बंगाल के पर्वतीय इलाकों में स्थित हैं।
वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्वतीय राज्यों की 60 फीसदी आबादी इन्हीं जलस्रोतों पर आश्रित है। ऐसे में यदि आने वाले समय में जलस्रोतों के सूखने को रोकने के लिए कारगर कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति भयावह हो सकती है। इससे निपटना केंद्र और राज्य सरकारों के लिए आसान नहीं होगा। संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड के 16000 गांवों में से 600 गांव ऐसे चिन्हित किए गए हैं, जहां झरनों से जलापूर्ति होती है लेकिन इन जलस्रोतों के सूखने के चलते इन गांवोें में रहने वाले ग्रामीणों को पलायन करना पड़ेगा।
संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक नीति आयोग की ओर से टास्क फोर्स का गठन कर सभी पर्वतीय राज्यों में गंभीरता से अध्ययन कराया जाए। झरनों के ‘कैचमेंट एरिया’ की स्टडी होने के साथ ही इन जलस्रोतों के रिचार्ज करने के तरीकों पर काम किया जाए। वैज्ञानिकों के मुताबिक सभी पर्वतीय राज्यों में वर्षा जल को पहाड़ों में ही रोकने के लिए नीतियां बनायी जाए।