जब कोरोना से बचने के लिए पूरा विश्व साफ-सफाई और social distancing को मुख्य अस्त्र बनाकर चल रहा हो। ऐसे में नाटकीय ढंग से और लॉकडाउन के बीच देहरादून जिले के रेस्रां व होटल खोलने के आदेश कर दिए गए वो भी इस ताकीद के साथ कि वे सिर्फ ऑनलाइन आर्डर पर भोजन की होम डिलीवरी करेंगे। अपने होटल में बैठाकर ग्राहक को खाना नही खिलाएंगे।
जनाब ऐसी क्या आफत आ गयी थी। कोरोना आतंक के बीच जब व्यक्ति पानी भी अपने हाथ से ले रहा है। ऐसे में होटल का ताजा-बासी खाना लेकर आये होम डिलीवरी boy से infected होने का खतरा नहीं है सरकार। इस समय सभी अपने घर का फ्रेश बना खाना खाने में ही भलाई समझ रहे हैं। कोरोना के डर से किसी की जबान इतनी चटोरी भी नहीं है कि बाहर का खाना खाकर जिंदगी से खिलवाड़ करी। इस समय सभी को अपनी जिंदगी बचाने की पड़ी है।
देहरादून जिला प्रशासन ने यह आदेश जारी करने से पहले निम्न बिंदुओं पर विचार कर लिया होता-होटल मालिक को कम से कम अपना 75 प्रतिशत किचन स्टाफ बुलाना पड़ेगा। यह स्टाफ किचेन में क्या दूरी मैन्टेन रखते हुए काम कर पायेगा? क्या इससे इन्फेक्शन को बढ़ावा नही मिलेगा।
कई होटलों के पास होम डिलीवरी ब्वाय की सुविधा नही हैं , वो कैसे मैनेज करेंगे।
होटल स्वामी यह भी देख रहे हैं कि कोरोना के खतरे के बीच उनकी लागत निकल भी पाएगी या नहीं। और कितने लोग होम डिलीवरी का आर्डर करेंगे। बाजार से सब्जी व राशन लाने में भी इन्फेक्शन का खतरा बढ़ेगा।
देहरादून में वेतनभोगी कर्मचारी अधिक संख्या में है। यह वर्ग कम से कम तीन महीने का राशन जमा कर चुका है। वो पहले घर का राशन खत्म करेगा या होटल की डिशेस की ओर देखेगा। होटल इंडस्ट्री से जुड़े लोग भी इस अंकगणित को देख रहे हैं।
कोरोना के इन्फेक्शन को देखते हुए देहरादून के कई होटल मालिक सरकार के इस फैसले पर अमल नही कर रहे हैं। देहरादून जिला प्रशासन को 14 अप्रैल के लॉकडाउन पीरियड की समीक्षा के बाद ही होटल से होम डिलीवरी के बाबत विचार करना चाहिए था।
जो लोग स्वयं खाना नहीं बना पा रहे है या मजबूर हैं। उनके लिए भोजन की व्यवस्था कई एनजीओ व सरकारी तंत्र कर ही रहे हैं। ऐसे लोगों को प्रशासन चिन्हित कर भोजन की व्यवस्था करे न कि होम डिलीवरी को बढ़ावा दे इस संकट में ।
देहरादून जिला प्रशासन का होटल खोलने का फैसला समझ से परे है सरकार। सरकार का यह फैसला लोगों की सेहत से खिलवाड़ न कर दे। लिहाजा सरकार को होटल से होम डिलीवरी का फैसला जनहित में वापस ले लेना चाहिए।
(कोरोना खतरे को देखते हुए यह मेरी निजी राय। अब सरकार माने या नहीं, ये उनका विशेष अधिकार है।)
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