उत्तराखंड ने हिम्मत नहीं हारी और कोरोना संक्रमण पर किया हुआ है नियंत्रण
उत्तराखंड के निवासियों ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है
सरकारी, गैर सरकारी, व्यक्तिगत रूप से लोगों ने जरूरतमंदों को हरसंभव सहयोग प्रदान किया
उत्तराखंड पुलिस ने लॉकडाउन का पालन कराने के साथ हर जरूरतमंद को बढ़चढ़कर सहयोग किया
उत्तराखंड पहुंचे प्रवासियों की सुविधाओं को जानने के लिए आईजी गढ़वाल और डीजी ( लॉ एंड आर्डर) लगातार संचालन केंद्र के संपर्क में रहे
मुख्यमंत्री आवास ने प्रवासियों को लेकर हर अपडेट की रिपोर्ट तलब की अधिकारियों से
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। उत्तराखंड सीमित संसाधनों वाला पर्वतीय राज्य है, पर फिर भी कोरोना जैसी विश्व व्यापक महामारी से डटकर मुकाबला करते हुए उसको पूरी तरह नियंत्रण में रखे हुए है। यह वक्त कोरोना से लड़ाई में राज्य को ताकत देने का है, न कि किसी राजनीतिक या गैर राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में षड्यंत्र रचने और उस स्तर तक गिर जाने का, जहां से फिर उठने की कोई गुंजाइश ही न हो।
उत्तराखंड वासियों के सहयोग से ही नियंत्रित है कोरोना संक्रमण
कोरोना जैसे संकट से निपटने के लिए डटकर खड़ा होना, उत्तराखंड जैसे छोटे और सीमित संसाधनों वाले राज्य के लिए बड़ा कठिन है, लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और कोरोना संक्रमण को नियंत्रण में किया हुआ है। कोरोना वायरस से हमारी लड़ाई अन्य राज्यों से बेहतर रही है।
यह सब सरकारी स्तर पर व्यवस्थाओं से तो हुआ ही है, पर सबसे बड़ा योगदान यहां के निवासियों का है, जो सरकार की हर गाइडलाइन को मानते हैं। उत्तराखंड के निवासियों ने लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया है। सबसे बड़ी बात यह कि यहां सरकारी, गैर सरकारी, व्यक्तिगत रूप से लोगों ने जरूरतमंदों को हरसंभव सहयोग प्रदान करते हुए मानवता को आगे बढ़ाया है।
उत्तराखंड पुलिस पर हमें गर्व है
राज्य की पुलिस ने लोगों की जीवन सुरक्षा के लिए लॉकडाउन का पालन कराया और लॉकडाउन में फंसे जरूरतमंद लोगों को भरपूर सहयोग भी किया। पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है। जरूरतमंदों की सूची तैयार करना, उन तक खाद्य सामग्री पहुंचाना, बुजुर्गों के स्वास्थ्य का ख्याल रखना, उनके लिए दवाइयों की व्यवस्था करना, जरूरत पड़ने पर उनको अस्पताल पहुंचाना,आवश्यक सामान की प्रतिदिन की रेट लिस्ट लोगों तक पहुंचाने समेत तमाम ऐसे कार्यों की लंबी सूची है, जो हमें उत्तराखंड पुलिस पर गर्व कराती है।
अब हम बात करते हैं, राज्य की अर्थव्यवस्था की, जो पर्यटन और चारधाम यात्रा पर निर्भर है। चारधाम यात्रा की तैयारियां करनी हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से यात्रियों को आमंत्रित नहीं कर सकते। जब यात्री नहीं आ पाएंगे तो उन लोगों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो जाएगा, जिनकी आजीविका पूरी तरह चारधाम यात्रा पर निर्भर करती है। इससे हम थोड़ा बहुत निराश तो हैं।
प्रवासियों को घर पहुंचाने की व्यवस्थाओं में तत्परता और सक्रियता से योगदान
लॉकडाउन में अन्य राज्यों में फंसे उत्तराखंड के निवासियों को उनके गांव तक पहुंचाने की व्यवस्था यहां लगभग त्रुटि रहित है। इसको लेकर टिहरी गढ़वाल जिला के मुनिकी रेती संचालन केंद्र के संबंध में राज्य की तत्परता को समझा जा सकता है। चार मई की रात करीब एक बजे चंडीगढ़ से टिहरी के 1236 लोगों को पहुंचाया गया। रात को डेढ़ बजे आईजी गढ़वाल अजय रौतेला और पुलिस महानिदेशक ( लॉ एंड आर्डर) अशोक कुमार इन सभी लोगों के ठहरने के इंतजाम की जानकारी लेते हैं। सुबह छह बजे अधिकारिियों ने कंट्रोल रूम से पूछा कि क्या इन सभी लोगों की चाय की व्यवस्था हुई या नहीं। रिपोर्ट सीएम आवास जानी है।
सुबह नौ बजे से इन सभी लोगों को विभिन्न तहसीलों की ओर रवाना किया जाता है। इससे पूर्व सभी को भोजन उपलब्ध करा दिया जाता है। थर्मल स्क्रीनिंग के बाद किस गाड़ी में कौन कितने बजे रवाना हुआ, इस पर अधिकारी लगातार नजर रखते हैं और रिपोर्ट मुख्यमंत्री तलब करते हैं। प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारी उत्तराखंड पहुंचे प्रवासियों के भोजन, चाय, उनके ठहरने संबंधी व्यवस्थाओं को समय-समय पर जान रहे हैं, इससे उनकी चिंताओं को समझा जा सकता है।
मुख्यमंत्री समय-समय पर रिपोर्ट तलब करते हैं तो संवेदनशीलता को जाना जा सकता है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य के निवासियों के हितों और उनकी सुविधाओं को लेकर संवेदनशील हैं। मुख्यमंत्री राज्य की आर्थिक गतिविधियों को फिर से पटरी पर लाने के प्रयास कर रहे हैं।
इसी तरह देहरादून में रह रहे टिहरी निवासी 1222 प्रवासियों को उनके गांव भेजा गया। यह व्यवस्था कमोबेश सभी जिलों में हो रही है।
तुच्छ मानसिक विचारों को आगे बढ़ने से रोकना होगा
बड़ी संख्या में लोगों को दूसरे राज्यों से उनके घरों तक पहुंचाने की सेवा में कोई कमी हो सकती है। इस पर टिप्पणियां हो सकती हैं। राजनीतिक बयानबाजी हो सकती है। यह सब चलता है, क्योंकि किसी विषय पर सभी की राय एक जैसी नहीं हो सकती, राजनीति में तो बिल्कुल भी नहीं।
सवाल यह है कि राजनीतिक विरोध और षड्यंत्र इस स्तर तक गिर जाएंगे कि उनके फिर से उठने की कोई गुंजाइश नहीं रह जाएगी। क्या कुछ लोगों का सामाजिक और मानसिक रूप से इतना पतन हो जाएगा कि वो राज्य के मुख्यमंत्री की मृत्यु की अफवाह फैलाएंगे। ये इससे ज्यादा और क्या गिरेंगे। हमें एक प्रबुद्ध और जिम्मेदार समाज होने के नाते इस तरह के तुच्छ मानसिक विचारों को आगे बढ़ने से रोकना होगा। हमें अपने सामाजिक दायित्वों और कर्तव्यों को निभाना ही होगा। तुच्छ मानसिकता से किया जाने वाला राजनीतिक विरोध हमारे समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है। इस षडयंत्र की गहन पड़ताल होनी ही चाहिए।
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