विदेशों के पर्वतीय इलाकों में होता है इस तकनीक का प्रयोग
हेली,एयर बैलून व पैरा ग्लाइडर्स के लिए ख़तरा है झूलती तारें
राजेन्द्र जोशी
प्रदेश की कई घाटियों में हेलीकाप्टर चलाना खतरों से खेलने से कम नहीं है ऊपर से घाटियों में बिजली और ट्राली की लाइनें बिना किसी हवाई संकेतक (Warning spheres on power line)के इन खतरों को और बढ़ा देती हैं। उत्तरकाशी जिले के सुदूरवर्ती मोल्डी गांव में राहत सामग्री ड्रॉप कर वापस लौट रहे हेलीकाप्टर के क्रैश होने के बाद प्रदेश की घाटियों में हवा में लटक रही ऐसी तारों पर कोई संकेतक (Warning spheres on power line) न होने से हेलीकाप्टर से यात्रा करने वाले लोगों की बेचैनी बढ़ गयी है और वे इस तरह की दुर्घटनाओं को रोके जाने के लिए विदेशों की तकनीक अपनाये जाने के पक्ष में हैं।
उल्लेखनीय है कि विदेशों में ऐसे स्थानों पर जहाँ घाटी में बिजली की तारें या ट्राली की तारें होती हैं वहां उन पर रंगीन बलून संकेतक (Warning spheres on power line) कुछ -कुछ दूरी पर इन तारों के बीच के रूप में स्थायी तौर पर लगाया जाता है, और यह रंगीन बलून संकेतक (Warning spheres on power line) दूर से ही पायलट को दिखाई देते हैं और वह इन्हे देखते हुए अपनी दिशा और ऊंचाई निर्धारित कर सकता है, जिससे तारों पर उलझने से दुर्घटना का खतरा नहीं रहता। वर्तमान में इस तरह के संकेत केवल जोशीमठ के पास विष्णुप्रयाग से अलकनंदा घाटी में विद्युत पारेषण लाइनों में ही लगाए गए हैं।
उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में वर्षों से हेलीकाप्टर उड़ा रहे कई पायलेटस का कहना है कि पहाड़ी इलाकों में कभी वायु दबाव और कभी मौसम के कारण घाटियों में बादलों के होने के चलते हेलीकाप्टर को नदियों के ऊपर से बहुत ही नीचे तक लाकर उड़ाना पड़ता है और अचानक सामने एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी को क्रॉस कर रहे तारों पर हेलीकाप्टर के उलझने का ख़तरा बना रहता है ऐसे में यदि इन तारों पर संकेतक बलून्स (Warning spheres on power line) लगे हों तो पायलेट खतरे को भांपते हुए हेलीकाप्टर को तारों से ऊपर या नीचे से निकाल सकता है जिससे इस तरह की दुर्घटना से बचा जा सकता है।
विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले उत्तराखंड राज्य के सुदूरवर्ती इलाकों में हेलीकाप्टर को उड़ाना बहुत ही जोखिम भरा काम है यहाँ की संकरी घाटियों से होकर अक्सर हेलीकाप्टर को उड़ान भरनी पड़ती है ।वहीं इस संकरी घाटियों में ही बिजली की हाई टेंशन लाइनें और कई इलाकों में गांवों के सड़कों तक पहुँच न होने के चलते गांवों में उत्पादित होने वाले खाद्यान्न और अन्य उपज जैसे सेब और अन्य मौसमी फलों और सब्जियों को पहुँचाने के लिए ट्रालियां लगाई गयी है जैसा की मोरी घाटी के मोल्डा गांव के लिए लगाई आ गयी थी जिसपर उलझकर हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था ।
गौरतलब हो कि विदेशों में इस तरह ही घाटियों में गुजर रहे किसी भी तरह के तारों पर रंगीन संकेतक (Warning spheres on power line) लगाये जाते हैं ताकि हेलीकाप्टर, एयर बैलून या पैरा ग्लाइडर्स इन तारों में न उलझे और इससे कोई हवाई दुर्घटना न हो। लेकिन विषम भौगोलिक परिस्थिति वाले उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इस तरह के संकेतक (Warning spheres on power line) अभी तक केवल जोशीमठ के पास अलकनंदा घाटी में ही लगे हैं जबकि राज्य में पिटकुल को इस तरह ही विद्युत पारेषण लाइनों में रंगीन संकेतक (Warning spheres on power line) लगने चाहिए ताकि भविष्य में हवा में झूल रही ऐसी तारों पर उलझकर कोई हवाई दुर्घटना न हो।