अदभुत और दिव्य परम्पराओं से बंद होते हैं बदरीनाथ के कपाट
- मान्यताओं और परम्पराओं का अद्भुत दर्शन
- कपाट बंद होने की पूर्व प्रक्रिया आज 15 नवम्बर से ही शुरू
- 17 साल पहले आया था ऐसा ही संयोग
गोपेश्वर : इस बार बदरीनाथ जी के कपाट 19 नवम्बर को शांय 7 बजकर 28 मिनट पर विधि विधान के साथ शीतकाल के बंद होंगे । मगर कपाट बंद होने की पूर्व प्रक्रिया आज 15 नवम्बर से शुरू हो जायेगी । प्रात: नियानुसार भगवान के कपाट खुल गये हैं। भगवान के सुन्दर और दिब्य शालिग्राम शिला पर स्वयं भू विग्रह का अभिषेक हो चुका है । स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान भगवान का स्वर्ण मुकुट , हीरा जडा हुआ , प्रभु का दिव्य आभा मंडल भगवान के साक्षात दर्शन की अनुभूति करा रहा है ।**
** कपाट 19 नवम्बर को बंद होंगे । पर कपाट बंद से पूर्व की प्रक्रिया के तहत आज 15 नवम्बर को गणेश जी के कपाट विधि विधान के साथ बंद होंगे । आज बुद्धवार को गणेश जी का दिन माना जाता है । इस बार बहुत सुखद संयोग बन रहे हैं । पूजा मान्यता और आस्था का पूरा निर्वहन होग**
** कल गुरुवार 16 नवम्बर को बदरीनाथ में ही तप्त कुंड के समीप ” श्री आदिकेदारेश्वर मंदिर के कपाट बंद होगे।
* शुक्रवार 17 नवम्बर को खडग पूजा और नित्य प्रतिदिन बदरी नाथ में वाचित होने वाली वेद ऋचाओं की पुस्तकें भी आस्था और परम्परा के साथ बंद की जायेंगी ।
* 18 नवम्बर को बदरीनाथ मंदिर के निकट ही ” श्री लक्ष्मी मंदिर ” में विराजमान भगवती लक्ष्मी जी को न्यौता दिया जायेगा कि वे ” श्री हरि ” के कपाट बंद से पूर्व भगवान के सानिध्य में विराजें ।
* 19 नवंबर को जब भगवान के मंदिर के कपाट संध्या समय में बंद होंगे . उससे पूर्व भगवान का पुष्प श्रृंगार होगा । कपाट खुलने पर और बाद में जहां भगवान दिब्य वस्त्रों , आभूषणों से सुसज्जित रहते हैं । कपाट बंद होने के दिन भगवान का श्रृंगार हजारों फूलों से होता है । श्याम वर्णीय भगवान पदमासन में बैठे हैं। पीले और भांति भांति के फूलों से सजे भगवान , और पूरा गर्भ ग्रह भी फूलों से सजा रहता है । फूलों के बीच भगवान का आकर्षक रुप अलौकिक बन जाता है । भगवान इतने सुन्दर और दिब्य आभा में दिखते हैं कि एकटक होकर उनकी छवि निहारते रहने का मन होता है । मन भरता ही नहीं ।
* अब आता है मान्यता और परम्परा का वह दर्शन जो अद्भुत है । अद्वितीय है ।
कपाट बंद से पूर्व बदरीश पंचायत अर्थात भगवान के सानिध्य में विराजमान ” उद्धव जी ” और ” देवताओं के खंजाजी तथा अल्कापुरी के अधिष्ठाता ” कुबेर जी महाराज ” का विग्रह सम्मान के साथ गर्भ ग्रह से बाहर लाया जायेगा । इन्हें कपाट बंद होने पर पांडुकेशर लाया जाता है । जैसे ही उद्वव जी कुबेर जी का विग्रह बाहर लाया जायेगा । बदरीनाथ जी के रावल स्त्री वेश में लक्ष्मी जी की सखी बनकर ” लक्ष्मी जी के विग्रह को गोदी में लेकर बदरीनाथ मंदिर में भगवान के सानिध्य में विराजमान करेंगे ।
यहाँ पर मान्यता यह है कि ” उद्धव जी ” “श्री कृष्ण ” के बाल सखा हैं परन्तु उम्र में कुछ बडे हैं । इस लिये ” कृष्ण रुप “श्री हरि बदरीनाथ में लक्ष्मी जी के जेठ हुये।हिन्दू परम्परा में बहू जेठ जी के सामने पति के साथ नहीं बैठ सकती । इस लिये जब ” उद्धव जी ” का विग्रह मंदिर से बाहर आयेगा तभी लक्ष्मी जी पति ‘श्री हरी ” बदरी नारायण के ” सानिध्य में विराजेंगी
फिर भगवान को ” घृत कम्बल ” पहनाया जायेगा । भारत के आखिरी गांव की बहिनें इस ऊनी कम्बल को बुनकर भगवान को देतीं हैं । रावल जी इस पर घी लगाते हैं और भगवान के विग्रह को ओढाते हैं । देखिये ! कितनी आत्मीयता है प्रभु से । कि अब कपाट बंद होंगे । शीत काल में बर्फ पडेगी । हमारे प्रभु को ठंड न लगे । प्रभु घृत कम्बल पहनिये ! । जो प्रभु सर्वशक्तिमान हैं शीत , ग्रीष्म जिनसे ही संचालित होता है उन्हें भला क्या शीत !
प्रभु के प्रति यह भक्त की आत्मीयता और लगाव ही है कि वह अपने प्रभु में अपना ही कोई है का भाव देखता है कि मेरे प्रभु को तनिक भी कष्ट न हो । जो प्रभु भक्त के कष्ट हरते हैं भला उन्हें क्या कष्ट ! पर कहते हैं ना , भगवान भक्त के भाव के वशीभूत होते हैं । इसी आत्मीयता से कम्बल भी ओढ लेते हैं बदरी नाथ जी के कपाट बंद होने से पूर्व न सिर्फ भगवान का पुष्प श्रृंगार होता है । बल्कि पूरा बदरीनाथ मंदिर हजारों फूलों से सजाया जाता है ।
17 साल पहले आया था ऐसा ही संयोग
बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने बताया कि पहले दिन भगवान गणेश के कपाट बंद होंगे। 16 को आदि केदारेश्वर के कपाट बंद होंगे। 17 को खड़क पुस्तक बंद होगी। 18 को लक्ष्मी जी को न्यौता दिया जाएगा। पूजन होगा। लक्ष्मी कडाई का निर्वहन होगा। दशहरे के मौके पर बदरी-केदार समिति ने इस बार बद्रीनाथ कपाट बंद होने का जो समय तय किया गया है उसमें बेहद खास बात है। 17 वर्ष बाद कपाट देर शाम 7 बजकर 28 मिनट पर बंद होंगे। इससे पहले वर्ष 1999 में भी देर शाम 7 बजे कपाट बंद हुए थे।