तीसरी लहर की आशंका में बच्चे और परस्पर विरोधी विचार
कमल किशोर डुकलान
देवभूमि मीडिया ब्यूरो । हमें अपने संतुलित विवेक के साथ कोरोना महामारी से स्वयं निपटना है। ऐसे समय में हमें महात्मा बुद्ध की करुणा-सम्यक दृष्टि संबलता प्रदान करती है। महात्मा बुद्ध ने कहा था,”अप्प दीपो भवः” बच्चों के बचाव हेतु हर भारतीय को अपना दीपक स्वयं बनना होगा,ताकि किसी नन्हें दीपक की ‘लौ’ न बुझ पाए। वर्ना अंधेरा हमारे राष्ट्र के बच्चे रूपी भविष्य तक फैल जाएगा।
कोरोना की तीसरी लहर को लेकर परस्पर विरोधी विचार सामने आ रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, कोरोना की तीसरी लहर बच्चों को निशाना बनाएगी। जबकि दूसरे अनुमान के मुताबिक,तीसरी लहर का बच्चों पर अधिक असर नहीं होगा। तीसरी लहर के बारे में परस्पर विरोधी विचार या तो लापरवाह बना देगें या अवसाद में डाल देगें।
केन्द्र सरकार ने बच्चों के बचाव में हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट की परीक्षाएं पहले ही निरस्त कर दी हैं। बच्चों की जीवन सुरक्षा को प्रमुखता देने से संबंधित केन्द्र सरकार का यह सराहनीय फैसला है। हमें अपने संतुलित विवेक के साथ महामारी से स्वयं निपटना है। ऐसे समय में हमें महात्मा बुद्ध की करुणा-सम्यक दृष्टि संबलता प्रदान करती है। महात्मा बुद्ध ने कहा था,”अप्प दीपो भवः” बच्चों के बचाव हेतु हर भारतीय को अपना दीपक स्वयं बनना होगा,ताकि किसी नन्हें दीपक की ‘लौ’ बुझ न पाए। वर्ना अंधेरा हमारे राष्ट्र के बच्चे रूपी भविष्य तक फैल जाएगा।
अतः आसन्न संकट की आशंका के मद्देनजर बचाव की तैयारी में जुट जाना ही विवेक संगत है। न्यायालयों ने बार-बार सरकारों को चेतावनी दी है और सरकारों ने प्रोटोकॉल जारी किए हैं। डॉक्टरों की सलाहें और विशेषज्ञों की चेतावनियों को गंभीरता से अमल में लाना नागरिकों का कर्तव्य है।हालांकि एम्स के निदेशक के मुताबिक राहत भरा बयान आया कि ‘तीसरी लहर में बच्चों के ज्यादा प्रभावित होने के संकेत नहीं हैं।’ इसके उलट उत्तराखंड में पिछले 45 दिनों में 18 साल तक के तीन हजार बच्चों में कोरोना फैलने की अनुमान है।
सरकारों के दावे और तैयारियां अपनी जगह हैं,परन्तु जमीनी सच्चाई चिंताजनक है। गांव-देहात में पर्याप्त डाक्टर नहीं हैं और स्वास्थ्य विभाग में तो बाल विशेषज्ञों की वैसे भी भारी कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग में पर्याप्त डाक्टर एवं बाल विशेषज्ञों की कमी को रातोंरात तो दूर नहीं की जा सकता,क्योंकि वैसे ही ग्रामीणों में प्राथमिक शिक्षा-चिकित्सा की रीढ़ टूटी पड़ी है।
कोरोना की तीसरी लहर पर परस्पर अन्तर्विरोधी विचारों ने अभिभावकों,डॉक्टरों और सरकारों की चिंताएं बढ़ा रखी हैं। अगर देखा जाए तो संकट उन बच्चों पर भी आया है,जिन के माता-पिता पहली या दूसरी लहर में कोरोना युद्ध से हार चुके हैं। उनके पुनर्वास की समस्या तो है ही, ऐसे में बच्चों की खरीद-फरोख्त करने वाले गिरोहों की सक्रियता के संकेत मिल रहे हैं। कोरोना काल में गरीबी बढ़ने के कारण कुछ माता-पिताओं द्वारा अपने बच्चे बेच देने की भी समाचार भी सामाने आ रहे हैं।
बच्चे राष्ट्र का भविष्य हैं, पर ‘इच्छाशक्ति’ के अभाव में वंचित वर्ग के बच्चों को राष्ट्र का भविष्य न समझने की भूल अतीत के उदाहरण लिए खड़ी है। बाल कुपोषण, शारीरिक शोषण,अनाथ और गरीब बच्चों की विद्या विहीनता का घोर अंधकार छाया रहा रहा। आज सांविधानिक सामाजिक संस्थाएं बच्चों के मुद्दों का गम्भीरता से संज्ञान ले रही हैं,उत्तराखंड की तीरथ सिंह रावत सरकार ने वात्सल्य योजना के अन्तर्गत कोरोना से अपने माता-पिता को खो चुके बच्चों के लिए फ्री शिक्षा,फ्री भोजन एवं तीन हजार रुपए भत्ता निर्धारित किया है।इसका मुख्य कारण संविधान में बाल अधिकारों की व्यवस्था है। इसके बावजूद भी लाखों बच्चे अशिक्षित और दोहरी शिक्षा नीति के तहत गुणकारी शिक्षा हासिल करने में असमर्थ हैं।
एक ओर वे अनाथ बच्चे हैं, जिन्होंने पहली और दूसरी लहर में अपने माता-पिता को खोया है, जबकि तीसरी लहर में तो खुद बच्चों के संक्रमित होने की आशंका जताई जा रही है। बच्चों के बचाव के लिए नया आयोग,नयी नीति अपनाने की आवश्यकता है। सरकार को आम बच्चों की शिक्षा के लिए खासकर ग्रामीण भारत के राजकीय विद्यालयों को पुनर्जीवित करना होगा और निःशुल्क क्वालिटी एजुकेशन विद्यालय खोलने पड़ेगे। धर्मस्थलों का दान-धन का उपयोग शिक्षा-स्वास्थ्य का बजट बढ़ाने में होना चाहिए। शिक्षा पर निवेश राष्ट्र के विकास के रूप में रिटर्न देगा।
अन्यथा सरकार और एनजीओ जो भी कहें, पर यह अनुभव सिद्ध है कि किसी भी अनाथ और गरीब बच्चे को व्यावसायिक मुनाफे वाला स्कूल नहीं पढ़ाएगा, निजी अस्पताल उसे नहीं बचाएगा। आशंका जताई जा रही है कि कोरोना के मारे बच्चे दशकों तक उबर नहीं पाएंगे। जो बचपन गंवाएंगे, वे कैसा जीवन पाएंगे? अच्छी बात यह है कि अस्पतालों में आने वाले बच्चों से अधिक स्वस्थ होकर अपने घरों को लौट जाने वालों की संख्या बढ़ रही है।