राज्य में जहाँ सालभर पर्यटकों को आकर्षित करने की योजना
श्रद्धालुओं और पर्यटन को शीतकाल में प्रदेश की प्रकृति के दीदार और पास से होंगे
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड को स्वर्ग यूँ ही नहीं कहा जाता है यहां गर्मियों में चार धाम यात्रा चलती है तो इसी दौरान बरसात के बाद नहाये हुए पहाड़ और झरने तो सर्दी के शुरू होते ही एक और पर्यटन का सीजन फिर से शुरू हो जाता है इस दौरान उत्तराखंड के पर्वतीय इलाके बर्फ की आगोश में कुछ इस तरह समा जाते हैं जैसे इन इलाकों ने सफ़ेद चादर ओढ़ ली हो। ऐसे में इस बर्फ की चादर में अठखेलियाँ करने कौन नहीं आना चाहेगा यहाँ।
प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का भी राज्य में जहाँ सालभर पर्यटकों को आकर्षित करने की योजना है वहीँ उनका फोकस फिल्म उद्योग की तरफ भी है जो यहाँ के आकर्षण को सिनेमा के पर्दे पर लेकर आये और देश दुनिया के पर्यटक उत्तराखंड की तरफ खुद ही खींचे चले आयें। पर्यटकों के लिए आधारभूत व्यवस्था तैयार की जा रही है। स्थानीय लोगों को स्वरोजगार से जोड़ते हुए उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किये जाने का प्रयास त्रिवेन्द्र सरकार कर रही है। राज्य के सुदूरवर्ती इलाकों जहाँ बड़े होटल उद्योग नहीं जा सकते वहां राज्य सरकार ने स्थानीय लोगों को होम स्टे योजना की सौगात दी है ताकि वे पर्यटकों को वह सुविधाएँ दे सकें जो उन्हें चाहिए। इसके अलावा राज्य को वेडिंग डेस्टिनेशन की तरफ भी बढ़ाने का मुख्यमंत्री का सपना है उनका सोचना है कि इससे स्थानीय लोगों की आय तो बढ़ेगी ही साथ ही उन्हें रोज़गार भी मुहैय्या होगा।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत सोच है कि उतराखंड में शीतकाल में भी यात्रा चले इससे जहाँ श्रद्धालुओं को चारों धामों के दर्शन उनके शीतकालीन प्रवास स्थानों पर होंगे वहीँ पर्यटन को प्रदेश की प्रकृति के दीदार भी और पास से होंगे। वैसे भी शीतकाल में उत्तराखंड के चारों धामों के देवताओं के दर्शन उनके शीतकालीन गद्दीस्थलों पर होते है जैसे गंगोत्री के दर्शन मुखवा में तो यमुनोत्री के दर्शन खरसाली में और बाबा केदार के दर्शन उषामठ यानि उखीमठ में और बदरीनाथ जी के दर्शन पांडुकेश्वेर में होंगे।
इतना ही नहीं उनका मानना है जो पर्यटक या यात्री ग्रीष्मकाल में लम्बी दूरी के गंतव्यों तक नहीं पहुँच सकते यानि पंचकेदार के दर्शन उनके ग्रीष्मकालीन प्रवास स्थलों पर नहीं कर पाते हैं उन सभी देवताओं के दर्शन का लाभ उन्हें शीतकाल में उखीमठ सहित मक्कूमठ में हो सकते हैं। इससे परदेश में सालभर पर्यटन के साथ साथ तीर्थाटन भी चल सकेगा और स्थानीय लोगों को रोज़गार भी मिलेगा।