कमल किशोर डुकलान
सूर्य देव के प्रति आभार प्रकट करने का अगर कोई दिन है तो वह कार्तिक शुक्ल षष्ठी में पड़ने वाला छट पर्व है।आधुनिक जीवन की मजबूरी में जब अक्षय ऊर्जा की बात होती है,तब हमारी दृष्टि सूर्य की ओर ही जाती है। भगवान सूर्यनारायण अनेक अर्थों में हमारे अतीत ही नहीं बल्कि भविष्य भी हैं।
छठ पर्व संसार का एक अपनी तरह का अकेला ऐसा लोकपर्व है, जो अपनी व्यंजना में बहुआयामी है। इस पर्व में धार्मिक, सांस्कृतिक,प्राकृतिक,आर्थिक,सामाजिक आयाम की सबसे ज्यादा प्रबलता है। भगवान सूर्यनारायण इस त्योहार का केंद्र हैं। अगर देखा जाए तो सूर्य भगवान जीव जगत के आधार हैं। सूर्य के बिना कोई भी भोग-उपभोग संभव नहीं है।
अत: सूर्य के प्रति आभार प्रकट करने के लिए छठ या सूर्य षष्ठी व्रत मनाया जाता है,तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं। सूर्य उन क्षेत्रों के लिए सबसे उपयोगी भगवान हैं, जहां पानी की उपलब्धता ज्यादा है। पूर्वांचल में नदियों का जल स्तर बढ़ा हुआ रहता है,ऐसे में सूर्य से ताप लेना जीवन के लिए सबसे जरूरी हो जाता है।
भारतीय सूर्य केंद्रित संस्कृति कहती है कि वही उगेगा,जो डूबेगा। अत: छठ में पहले डूबते और फिर अगले दिन उगते सूर्य की पूजा स्वाभाविक है। व्रत करने वाला जब भगवान दिनकर से ताप मांगने या आभार जताने घर से निकलता है, तो किसी तालाब,नदी के तट पर ही जाता है। अर्थात हे सूर्यनारायण,आपने जल दिया है,उसके लिए आभार,लेकिन आप अपने ताप का आशीर्वाद भी हम पर बनाकर रखें।
निरोग रहने के लिए भी सूर्य की बड़ी जरूरत होती है। बच्चे के जन्म लेते ही उसे दूसरे-तीसरे दिन से सूर्य का प्रकाश दिखाया जाता है,सूर्य रोगनाशक शक्ति हैं। अक्सर लोग छठ महापर्व के समय स्वास्थ जीवन को लेकर भी प्रार्थना करते हैं।
जिस दौर से यह दुनिया गुजरी है,उसमें न जाने कितनों के साथ बहुत बुरा हुआ है। लोग आज भी उन दिनों की टीस से उबरने की कोशिशों में रहते हैं। ध्यान आता है,जब कोरोना का उभार हुआ था,तब लोग आश्वस्त थे कि एक बार सूर्य की तपन बढ़ेगी,तो कोरोना वायरस नष्ट हो जाएगा। यह जो हमारा भ्रम था,वह सूर्य के प्रति हमारी आशा का ही फल था। हालांकि,सूर्य के प्रति हमारी आशा का कोई विकल्प भी नहीं है।
पिछली बार छठ का आयोजन भी कोरोना से प्रभावित हुआ था, लेकिन इस बार घाटों पर रौनक लौट आई है। लोगों को पूरा विश्वास है कि छठ पर्व और सूर्य की पूजा से टूटे दिलों को भी पूरी ताकत मिलेगी। सूर्य के पास जाना आज जितना जरूरी है,उतना कभी नहीं था। कोरोना के समय महीनों तक घरों में बंद रहे लोगों को धूप की बड़ी जरूरत है।
भारत में यह समग्र आकलन नहीं हुआ है, लेकिन यह एक बुनियादी तथ्य है कि सूर्य के बिना भारत की जैव विविधता,जीवन और स्वास्थ्य का मेल नहीं बन सकता। आधुनिक जीवन की मजबूरी में जब अक्षय ऊर्जा की बात होती है, तब लोगों की नजर सूर्य की ओर ही जाती है। मतलब किन्हीं अर्थों में सूर्य हमारे अतीत ही नहीं,भविष्य भी हैं।
ऐसे सूर्य की पूजा का व्रत छठ आधुनिक रूप से भी उपयोगी है। छठ का एक संकल्प देखिए,हे सूर्य देव,आपने अन्न,सब्जियां, फल,फूल,जल,दूध दिए,आपने जो भी दिया, हम वे सब आपको अर्पित कर रहे हैं,आप हम पर आगे भी कृपा बनाए रखें। हे सूर्य, हमें सक्षम बनाना,अगली बार हम आएंगे ज्यादा सामग्री,तैयारी के साथ आपको अर्घ्य देने के लिए। एक और बड़ी बात, इस दिन घाट पर कोई भेद नहीं रहता,न जाति,न धर्म, न गरीब,न अमीर। सारे लोगों का लक्ष्य एक ही होता है।
छठ सदियों से स्वच्छता-पवित्रता का संदेश देने वाला पर्व है। अगर इसके इस पक्ष को भी हम ठीक से समझ लें, तो हमारा जीवन सुखमय हो सकता है। छठ हमें मितव्ययिता की भी शिक्षा देता है, जिसकी आज बहुत जरूरत है।