परमाणु बम की घातकता को कम करने का निकाला रसायनिक तोड़
परमाणु बम का ‘डिफेंसिव हथियार’ किया तैयार
यह शोध हाल ही में केमिकल साइंसेज जनरल में हुआ प्रकाशित
देहरादून : हिरोशिमा और नागासाकी पर 1945 में हुए परमाणु हमले से हम सभी वाकिफ हैं। आज भी वहां परमाणु बम के रेडिएशन के गंभीर परिणाम देखने को मिलते हैं। लेकिन अब परमाणु बम के रेडिएशन के ‘डिफेंस’ का हथियार मिल गया है और ये कर दिखाया है भारत में रहने वाले देहरादून के एक रिटायर प्रोफेसर ने…
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून स्थित डीएवी पीजी कॉलेज के रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ. एसएस साहनी ने दावा किया है कि 20 साल के शोध में उन्होंने एक ऐसा कंपाउंड विकसित किया है, जो डी-रेडियो एक्टिविटी के सिद्धांत पर आधारित है। इससे परमाणु बम फटने पर पैदा होने वाली या अन्य किसी जरिये से उत्पन्न हुई रेडियो एक्टिविटी के असर को कम किया जा सकता है।
परमाणु बम की तबाही के ख्याल से खौफजदा दुनिया के लिए यह राहत भरी खबर हो सकती है। उनका यह शोध हाल ही में केमिकल साइंसेज जनरल में प्रकाशित हुआ है। उन्होंने इस शोध के संबंध में केंद्र और जापान सरकार को पत्र भी भेजा है। डा. साहनी ने अपने शोध में दावा किया है कि उन्होंने एक ऐसा कंपाउंड विकसित किया है (साधारण भाषा में केमिकल का मिश्रण या पाउडर) जो अणु और कोबार्ड बम की मारक क्षमता को कम कर सकता है। इन बमों को जहां गिराया जाएगा उसकी 50 किमी परिधि के बाहर इस मिश्रण का छिड़काव या दवा के रूप में देकर लोगों को बचाया जा सकता है। इस परिधि की बात इसलिए कही जा रही है कि जब तक बचाव के लिए सरकारी मशीनरी हरकत में आएगी तब तक इसके रेडिएशन का दायरा इतना बड़ा हो जाएगा।
डॉ. साहनी का दावा है कि इसका फायदा देश के बडे़ शहरों में खुल रहे कैंसर अस्पतालों और इनकी लैब को भी मिलेगा। इनसे निकलने वाले जैविक कचरे को जमीन में दबाया जाता है। इसके बावजूद इस कचरे से ऐसी तरंगें (रेडिएशन) निकलती हैं जो इसके आसपास से गुजरने वाले को कैंसर रोगी या अपंग बना सकती हैं। इससे बचने के लिए यदि इस पाउडर को कचरे में मिलाया जाए तो रेडिएशन को कम किया जा सकता है। अस्पतालों के डॉक्टरों और कर्मचारियों को भी रेडिएशन से बचाने के लिए यह फार्मूला अपनाया जा सकता है।
देश में इस समय 20 न्यूक्लियर प्लांट हैं। बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए इन प्लांटों की संख्या और बढ़ाए जाने की योजना पर सरकारें विचार कर रही हैं, लेकिन इन प्लांटों में रेडियो एक्टिव पदार्थों के आकस्मिक रिसाव या इनके कचरे से निकलने वाला न्यूक्लियर रेडिएशन मानव, वातावरण और वन्य जीव-जंतुओं के लिए जानलेवा होता है। देहरादून में भी न्यूक्लियर प्लांट लगाने की बात इसी डर से आगे नहीं बढ़ पा रही है। डॉ. साहनी का दावा है कि यदि प्लांट से निकलने वाले कचरे के साथ इस कंपाउंड को मिलाकर दबाया जाए तो इसके खतरे को कम किया जा सकता है।
केमिकल साइंसेस जर्नल ब्रिटेन से प्रकाशित किया जाता है। इसमें विश्व भर के जाने-माने विज्ञानियों के शोध प्रकाशित किए जाते हैं। इसमें प्रकाशित होने वाले शोधों को विज्ञानी मान्यता देते हैं। केमिकल साइंसेस का यह विश्व स्तरीय जर्नल माना जाता है।
रिटायर्ड प्रोफेसर डीएवी पीजी कॉलेज डा. एसएस साहनी का कहना है कि हमने डी-रेडियो एक्टिविटी सिद्धांत विकसित कर ऐसा कंपाउंड विकसित किया है जो पूरे विश्व के लिए लाभदायक है। इसे विकसित करने के लिए 20 साल लगे हैं। मैंने शोध के संबंध में केंद्र और जापान सरकार को पत्र भेजा है। कोई कैंसर हॉस्पिटल प्रबंधन इस कंपाउंड को अपने यहां प्रयोग करना चाहता है तो वह ले जा सकता है।