किस दिन मनाई जा रही है बसंत पंचमी!
Basant Panchami 2019: बसंत पंचमी प्रत्येक वर्ष माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन से सर्दी के महीने का अंत हो जाता है और ऋतुराज वसंत का आगमन होता है. इस बार बसंत पंचमी की तिथि को लेकर लोगों के बीच काफी उलझन बनी हुई है. बता दें, इस बार बसंत पंचमी का त्योहार 2 दिन मनाया जाएगा. देश के कुछ हिस्सों में यह त्योहार 9 फरवरी के दिन मनाया जाएगा तो कुछ जगहों पर 10 फरवरी के दिन.
- 9 फरवरी को इन जगहों पर मनाया जाएगा बसंत पंचमी का त्योहार-
बसंत पंचमी का त्योहार 9 फरवरी शनिवार के दिन दिल्ली, पंजाब, जम्मू, हिमाचल, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिमी मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पश्चिमी महाराष्ट्र और कर्नाटक में मनाया जाएगा.
- 10 फरवरी शनिवार को कहां मनेगी बसंत पंचमी?
10 फरवरी के दिन बसंत पंचमी का त्योहार पूर्वी उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पूर्वी महाराष्ट्र में मनाया जाएगा. बसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती की पूजा का विशेष दिन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि मां सरस्वती ही बुद्धि और विद्या की देवी हैं. बसंत पंचमी को हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है.
- बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
सरस्वती पूजा मुहूर्त: सुबह 7.15 से 12.52 बजे तक.
पंचमी तिथि का आरंभ: 9 फरवरी 2019 को 12.25 बजे से प्रारंभ होगा.
पंचमी तिथि समाप्त: 10 फरवरी 2019, रविवार को 14.08 बजे होगी.
यूं तो बसंत पंचमी के दिन किसी भी समय मां सरस्वती की पूजा की जा सकती है. लेकिन पूर्वान्ह का समय पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है. सभी शिक्षा केंद्रों, विद्यालयों में पूर्वान्ह के समय ही सरस्वती पूजा कर माता सरस्वती का आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है.
- बसंत पंचमी का सामाजिक महत्व-
भारतीय पंचांग में 6 ऋतुएं होती हैं. इनमें से बसंत को ‘ऋतुओं का राजा’ कहा जाता है. बसंत फूलों के खिलने और नई फसल के आने का त्योहार है. ऋतुराज बसंत का बहुत महत्व है. ठंड के बाद प्रकृति की छटा देखते ही बनती है. इस मौसम में खेतों में सरसों की फसल पीले फूलों के साथ, आमों के पेड़ों पर आए फूल, चारों तरफ हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को और भी खुशनुमा बना देती है.
यदि सेहत की दृष्टि से देखा जाए तो यह मौसम बहुत अच्छा होता है. इंसानों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है. यदि हिंदू मान्यताओं के मुताबिक देखा जाए तो इस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था. यही कारण है कि यह त्योहार हिन्दुओं के लिए बहुत खास है. इस त्योहार पर पवित्र नदियों में लोग स्नान आदि करते हैं. इसके साथ ही बसंत मेले आदि का भी आयोजन किया जाता है
- बसंत पंचमी का पौराणिक महत्व-
सृष्टि की रचना करते समय ब्रह्माजी ने मनुष्य और जीव-जंतु की रचना की है. इसी बीच उन्हें महसूस हुआ कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण सभी जगह सन्नाटा छाया रहता है. इस पर ब्रह्माजी ने अपने कमंडल से जल छिड़का, जिससे 4 हाथों वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई, जिसके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वरमुद्रा तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी.
ब्रह्माजी ने वीणावादन का अनुरोध किया. इस पर देवी ने वीणा का मधुर नाद किया जिस पर संसार के समस्त जीव-जंतुओं में वाणी व जलधारा कोलाहल करने लगी, हवा सरसराहट करने लगी. तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी ‘सरस्वती’ का नाम दिया. मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है. ब्रह्माजी ने माता सरस्वती की उत्पत्ति वसंत पंचमी के दिन की थी. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष बसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का जन्मदिन मानकर पूजा-अर्चना की जाती है.