ENTERTAINMENT

आंचलिक फिल्मों के लिए नहीं मिल रहे थियेटर !

फिल्म नीति में कहीं भी आंचलिक फिल्मों को दिखाए जाने की नहीं है व्यवस्था !

देहरादून : उत्तराखंड में फिल्म नीति तो बना दी गई है लेकिन उत्तराखंड की ये फिल्में कहां दिखाई जाएंगी इसके बारे में सरकार ने कोई विचार नहीं किया है यही कारण है कि आज करोड़ों की लागत से अपने खर्चे पर बनने वाली कई आंचलिक फिल्में सिनेमा हॉल में स्थान न मिल पाने के कारण डिब्बों में बंद होकर रह गई है वैसे तो एक तरफ उत्तराखंड सरकार प्रदेश में फिल्म निर्माताओं को आकर्षित करने की बात कहती है लेकिन यह फिल्में कहां दिखाई जाएंगी इस पर सरकार का कोई स्पष्ट दृष्टिकोण राज्य के अस्तित्व में आने के 17 साल बाद भी नहीं है।

महाराष्ट्र और बिहार बिहार सहित दक्षिणी राज्यों में करोड़ों और अरबों की लागत से आंचलिक फिल्में बनाई जाती रही है और वहां की प्रदेश सरकारों ने इन आंचलिक फिल्मों को थिएटर पर दिखाने के लिए थिएटर वालों को एक नियम के तहत बांध भी रखा है, और उनके लिए न्यूनतम दरों पर और निर्धारित समय निश्चित किया गया है  कि वह आंचलिक फिल्मों को दिखाने में सहयोग करेंगे यही कारण है कि दक्षिण भारत का फिल्म उद्योग बॉलीवुड से ज्यादा दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है। वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड की फिल्में थियेटरों उपलब्धता के अभाव में डिब्बों में बंद होकर रह गई है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह आंचलिक फिल्मों के लिए राज्य के सिनेमाघरों में इन फिल्मों को दिखाए जाने का विशेष प्रबंध करें ।

यहां यह भी गौरतलब है कि राज्य में बनी राज्य में बनी ”गोपी भिना” जैसी फिल्म को राज्य सरकार ने टैक्स फ्री तो कर दिया है लेकिन लेकिन फिल्म को दिखाने के लिए थिएटर की उपलब्धता ना होना अपने आप में सरकार किए सरकार को मुंह चिढ़ा रही है कि आखिर सरकार ने फिल्म को तो टैक्स फ्री कर दिया लेकिन फिल्म आखिर दिखाई कहां जाएगी और इसको देखेगा कौन ?

उल्लेखनीय है की उत्तराखंड की एक और आंचलिक फिल्म ”भुली ए भुली” भी अभी टैक्स फ्री की कतार में खड़ी है लेकिन इन दोनों फिल्मों को कहां दिखाया जाएगा राज्य सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं फिल्म फिल्म समीक्षकों के अनुसार यह दोनों फिल्में जहां सरकारी सेवाओं की जानकारियों को गांव-गांव तक पहुंचाने में सफल होती वही इन फिल्मों में कई संदेश भी छुपे हुए हैं इनका फायदा राज्य सरकार लिख सकती है, लेकिन दुर्भाग्य की स्थिति है कि राज्य सरकारों को इस और सोचने की फुर्सत नहीं है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकार चाहती है कि राज्य के पर्यटक स्थलों और धार्मिक स्थलों सहित साहसिक खेल स्थलों को फिल्मों में फिल्माया जाए ताकि इन स्थानों का और अधिक प्रचार प्रसार किया जा सके ओर पर्यटक भी आकर्षित हों ,लेकिन प्रचार प्रसार के लिए फिल्म बनने के बाद थिएटरों की जरूरत होती है इसके लिए राज्य सरकार के पास कोई नीति अब तक नहीं है अन्य प्रदेशों की भांति राज्य सरकार को आंचलिक फिल्मों को बढ़ावा देने के लिए राज्य के सिनेमाघरों में आंचलिक फिल्मों को दिखाई जाने के लिए विशेष कानून बनाना पड़ेगा ताकि फिल्मों में छिपे जन संदेश जन जन तक पहुंचे और राज्य में फिल्म उद्योग भी बढ़े।

devbhoomimedia

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