कीड़ाजड़ी के दोहन से सीमांत के लोगों की मजबूत हो सकती है आर्थिकी
उत्तराखंड में यारसा गंबू दोहन की कोई नीति नहीं
विटामिन-बी समेत कई तत्वों से भरपूर है कीड़ा जड़ी
देहरादून : दुनिया में अमेरिका, चीन समेत कई देश कवकों को औषधीय रूप दे रहे हैं। कवकों से बनी औषधि का व्यापार हो रहा है। हिमालयी क्षेत्र में पाया जाने वाला यारसा गंबू भी एक कवक है।तिब्बती भाषा में यारसा गंबू को जाड़े का कीड़ा कहा जाता है। यह फेफड़े की कार्य विधि बढ़ाने के साथ-साथ शुक्राणुजनित रोगों के लिए फायदेमंद बताया गया है। तमाम गुणों और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारी कीमत होने के बाद भी यारसा गंबू का उत्तराखंड में व्यावसायिक उपयोग नहीं हो पा रहा है। यारसा गंबू का वैज्ञानिक तरीके से दोहन और व्यावसायिक उपयोग हो तो सीमांत में रहने वाले लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुल सकते हैं। इस जड़ी का प्रयोग सेक्स पावर वाली दवाओं में किया जाता है।
जंतु विज्ञानियों के अनुसार यारसा गंबू का वानस्पतिक नाम कारडिसेप्स साइनेंनसिक है। यारसा गंबू को इंटोमोफिलस समूह के अंतर्गत हाइपोसेडेल्ज गण परिवार का सदस्य बताया गया है। यह काले रंग का तंतुकार कवक है, जो 3200 से 4000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों पर पाया जाता है।
यह कवक लार्वा पर परजीवी के रूप में संक्रमण करता है। 90 के दशक में यारसा गंबू के चर्चा में आने के बाद इस पर गहन शोध शुरू हुए। राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ के जंतु विज्ञान विभाग के प्रवक्ता डा. सीएस नेगी ने राष्ट्रीय पादप बोर्ड स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय भारत सरकार के आर्थिक सहयोग से इस पर शोधपत्र तैयार किया।
स्थानीय लोग यारसा गंबू को कीड़ा जड़ी या कीड़ा घास कहते हैं अध्ययन के अनुसार वसंत ऋतु की समाप्ति के समय कवक का तंतुजाल लार्वा को संक्रमित करता है तथा ग्रीष्म ऋतु शुरू होते ही कवक लार्वा को मृत करने के बाद फुरटिंग बाडी के रूप में शीर्ष भाग से बाहर निकलता है। ऐसा लगता है जैसे कोई घास उगी है। इसी कारण स्थानीय लोग यारसा गंबू को कीड़ा घास कहते हैं।
इसकी लंबाई सात से दस सेंटीमीटर तक होती है। तिब्बत में इसकी जानकारी 1500 साल पहले हो गई थी। चीन के लोगों को तब आश्चर्य हुआ जब जानवरों को यह कवक खिलाने से उनकी क्षमता असाधारण रूप से बढ़ गई। यारसा गंबू का प्रचार अब यौन उत्तेजक जड़ी के रूप में हो चुका है। इसी कारण इसकी मांग विदेशों में ज्यादा बढ़ने लगी है।
चीन में इसका व्यावसायिक उपयोग हो रहा है। चीन, तिब्बत की दुकानों में आकर्षक पैकिंग में यारसा गंबू बिकती है। इसके लिए वहां एक नीति बनी है, लेकिन उत्तराखंड में यारसा गंबू दोहन की कोई नीति नहीं है। वन पंचायतों के माध्यम से यारसा गंबू का दोहन ग्रामीण करते हैं, लेकिन जब वे यारसा गंबू बेचने के लिए जाते हैं तो पुलिस उन्हें पकड़ लेती है। यारसा गंबू दोहन की नीति बने तो स्थानीय लोगों की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और सरकार की भी आय होगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यारसा गंबू 15 से 20 लाख रुपये किलो बिकती है।
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़ के जंतु विज्ञान विभाग के प्रवक्ता डा. सीएस नेगी बताते हैं कि रासायनिक परीक्षण में निष्कर्ष निकला है कि यारसा गंबू में विटामिन बी-12 प्रतिशत, मेनोटाल, कार्डिसेपिक अम्ल, इर्गोस्टाल, कार्डोसेपिन और डीपाक्सीनोपिन 25 से 32 प्रतिशत तक पाया जाता है। परिपक्व कीड़ा घास ज्यादा प्रभावी माना जाता है।
सूबे के वित्त मंत्री प्रकाश पन्त का कहना है कि यारसा गंबू का मामला पहले भी उठता रहा है। इसके वैज्ञानिक तरीके से दोहन हो और इसका व्यापार स्थानीय लोगों के हाथ में हो ताकि उनकी आर्थिकी भी मजबूत हो क्योंकि इसके दोहन पर उनकी ऊर्जा लगती है लिहाज इस विषय पर ध्यान दिया जाएगा। इसके विपणन की नीति बनाने पर विचार किया जाएगा।