- देवीधुरा का पत्थर युद्ध अब बन गया है इतिहास
- आठ मिनट चली बग्वाल में 241 लोग हुए घायल
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
चंपावत। रक्षाबंधन पर देवीधुरा में इस साल भी फलों से बग्वाल खेली गई। बारिश होने के बावजूद खोलीखाड़ दुर्वाचैड़ मैदान रणबांकुरों से खचाखच भरा हुआ नजर आया। इस युद्ध का लुत्फ उठाने के लिए देश-विदेश से भी लोग यहां पहुंचे। इस दौरान सुरक्षा व्यवस्था के लिए भारी संख्या में पुलिस व पीएसी के जवानों की तैनात थी। मां वाराही धाम देवीधुरा में रक्षाबंधन पर खेली जाने वाली बग्वाल इस बार आठ मिनट तक चली। इस दौरान कुल 241 लोग घायल हुए। इनका उपचार मौजूद चिकित्सा दल ने किया। एक लाख से अधिक लोग बग्वाल मेले के साक्षी बने। चोटिलों में कुछ लोगों ने बिच्छू घास लगाकर भी उपचार किया।
रक्षा बंधन पर्व पर देवीधुरा स्थित मां बाराही देवी के आंगन खोलीखाड़ दुबाचैड़ में असाड़ी कौतिक पर झमाझम बारिश के बीच चारों खामों के रणबांकुरों ने बग्वाल पूरे जोश के साथ खेला। इस दौरान उन्होंने एक दूसरे पर जमकर फल और फूल बरसाए। हालांकि, कुछ लोगों ने पत्थरों का भी इस्तेमाल। जिससे चार दर्जन से अधिक लोग घायल हो गए। बग्वाल देखने के लिए केंद्रीय कपड़ा मंत्री अजय टम्टा व राज्य मंत्री धन सिंह रावत भी पहुंचे थे। बग्वाल देखने के लिए चंपावत ही नहीं बल्कि आसपास के जिलों के तमाम लोग पहुंचे। दोपहर करीब सवा डेढ़ बजे से रणबांकुरे खोलीखांड़ दुबाचैड़ मैदान में जुटना शुरू हो गए। सबसे पहले चम्याल खाम गंगा सिंह चम्याल के नेतृत्व में मैदान में पहुंचे। इसके बाद बालिग खाम, लमगडिय़ा खम व गहरवाल खाम के वीर मैदान में पहुंचे। सभी ने मां बाराही के जयकारों के साथ मंदिर व मैदान की परिक्रमा की। बग्वाल खेलने वालों के साथ ही मेला देख रहे लोग भी रोमांच से सराबोर दिखे।
बगवाल 2.38 पर शुरू हुई और 2.46 पर समाप्त हुई। इस दौरान आसमान में फल व पत्थर ही दिखाई दे रहे थे। इस दौरान हुए रणबांकुरों को मंदिर परिसर में बने चिकित्सा कक्ष में सीएमओ डा. आरपी खंडूरी के नेतृत्व में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने उपचार किया। मेले के दौरान देवीधुरा की सडक़ों में पांव रखने को जगह नहीं थी। हालांकि इस बार बारिश के कारण भीड़ कर रही। यातायात व्यवस्था बनाने के लिए पुलिस ने करीब आधा किमी पहले ही वाहन रोक दिए थे। कानून व्यवस्था के लिए जिले भर की पुलिस लगाई गई थी। दरअसल, बग्वाल युद्ध चार राजपूत खामों यानी वर्गों से जुड़ा हुआ है। जिसे अपने-अपने खामों के रणबांकुरों के साथ खेला जाता है। इन राजपूत खामों के नाम हैं गहरवाल, लमगडिय़ा, वलकिया और चम्याल।
यह युद्ध पूर्णमासी के दिन खेला जाता है। यह मेला अपने पत्थरमार युद्ध के लिए प्रसिद्ध है, जिसे स्थानीय भाषा में ”बग्वाल” कहा जाता है। पहले यह युद्ध सिर्फ पत्थरों से खेला जाता था, लेकिन बदलते वक्त के साथ इसे खेलने की प्रक्रिया में भी थोड़ा सा बदलाव हुआ है। अब पत्थरों की जगह फलों का इस्तेमाल किया जाने लगा है। बग्वाल खेलने के लिए पहले से ही नाशपाती फल का भंडारण कर लिया गया। जिन्हें रविवार को बग्वाल के समय रणबांकुरों को बांटा गया। इसी नाशपाती से रणबांकुरों ने एक दूसरे के साथ युद्ध कर इस परंपरा को कायम रखा। सदियों से चला आ रहा देवीधुरा का पत्थर युद्ध अब इतिहास बन गया है।
2013 से यहां बग्वाल पत्थरों के बजाय फलों से खेली जा रही है। इस बार भी इसी परंपरा को कायम रखा गया। फलों की बग्वाल को लेकर भी पहले वर्ष काफी आकर्षण देखा गया था। पत्थरों से खेली जाने वाली बग्वाल को देखने के लिए लाखों की संख्या में लोग कौतूहलवश देवीधुरा पहुंचते थे। पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यता है कि पहले मां काली के गणों को खुश करने के लिए यहां नरबलि की प्रथा थी। लेकिन जब एक बुजुर्ग के पोते की बारी आई तो उसे बचाने के लिए बुजुर्ग महिला ने मां की प्रार्थना की। उसकी आराधना से खुश होकर उन्होंने उनके पोते को जीवन दान दिया। साथ में ये भी कहा कि उन्हें एक व्यक्ति के बराबर खून चढ़ाया जाए। तभी से पत्थरमार युद्ध कर मां को खून चढ़ाकर प्रसन्न किया जाता रहा।