PERSONALITY

जन्म-शताब्दी : प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध पत्रकार थे राम प्रसाद बहुगुणा

आजीवन दरिद्रनारायण की सेवा में निर्लोभ भाव से अंतिम समय तक समर्पित रहे स्व. रामप्रसाद बहुगुणा 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और सामाजिक सरोकारों के लिए प्रतिबद्ध पत्रकार राम प्रसाद बहुगुणा जी को जन्म-शताब्दी पर हार्दिक श्रद्धांजलि

रमेश पहाड़ी 
मेरे तथा मेरे समान ही अनेक पत्रकारों और समाजसेवियों के प्रेरक, मार्गदर्शक तथा गुरु स्व. राम प्रसाद बहुगुणा जी की आज जन्म-शताब्दी है। देश को परतन्त्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने में अपना सर्वस्व होम कर देने वाले प्रख्यात स्वतन्त्रता सेनानी और आमजन की वाणी को मुखर करने में अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले राम प्रसाद बहुगुणा जी का जन्म प्रख्यात स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गढ़केसरी अनसूया प्रसाद बहुगुणा जी के परिवार में आज ही के दिन 20 दिसम्बर 1920 को हुआ था। चाचा अनसूया प्रसाद जी की देखादेखी उन्होंने बचपन से ही देश की स्वतन्त्रता की लड़ाई में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। विद्यार्थी जीवन में अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर के निरीक्षण के दौरान ही तमाम बंदिशों कक तोड़कर कक्षा में ही गाँधी टोपी पहनकर भारत माता के जयकारे लगाकर सरकार के विरुद्ध अपने तीखे तेवर उन्होंने दिखा दिए थे।
स्कूल से निष्कासित होने के बाद पूरी तरह आज़ादी के संघर्ष में अपने को होम कर देने वाले बालक रामप्रसाद ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने गाँव-गाँव घूम कर लोगों को स्वतंत्रता के आंदोलन की बातें और सत्याग्रह के अर्थ समझाने का बीड़ा उठाया। कागजों पर आज़ादी के नारे और गीत लिखकर चिपकाने और लोगों को आंदोलन की गतिविधियों में जोड़ने का अभियान शुरू किया। बाद में कागजों पर हाथ से लिख कर ‘समता’ नाम से एक अनियतकालीन अखबार निकालना शुरू किया। इसमें आज़ादी की लड़ाई की जानकारी होती और साथ ही लोगों को शामिल होने का आह्वान भी होता। इस अभियान में उन्हें अनेक यातनायें औरजेल की सजा भी भुगतनी पड़ी लेकिन अपने लक्ष्य से विचलित न होकर बहुगुणा जी ने उसे और अधिक शक्ति से आगे बढ़ाया।
आज़ादी के बाद सामाजिक गैरबराबरी, अन्याय, उत्पीड़न, शोषण व विषमता के खिलाफ अपने अभियान को पूर्ण समर्पण के साथ संचालित करने के लिए उन्होंने पारिवारिक व्यवसाय को दाँव पर लगाया और परिवार की आर्थिकी को संकट में डालकर भी समाज-सेवा के अपने अभियान को आगे बढ़ाया। इसके लिए 1953 में उन्होंने ‘देवभूमि’ नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन पहले चमोली और फिर नन्दप्रयाग से आरम्भ किया। इसके माध्यम से शासन-प्रशासन तथा जनता के बीच एक रचनात्मक सम्बन्ध कायम किया।
अपर गढ़वाल में देवभूमि पहला अखबार था। इसके माध्यम से उन्होंने सामाजिक समरसता का वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। छुआछूत, अंधविश्वास, अन्याय के विरुद्ध लड़ने के लिए उन्होंने अपने परिवार की अर्जित सम्पत्ति को भी दाँव पर लगाया और परिवार को आर्थिक संकटों से जूझने को विवश किया लेकिन समाज-सेवा के अपने लक्ष्य को डिगने नहीं दिया। 29 जनवरी 1990 को अंतिम साँस लेने तक उन्होंने देवभूमि का सम्पादन जारी रखा और उसके प्रति लोगों की आशाओं, विश्वास को कमजोर नहीं पड़ने दिया।
इस मिशनरी पत्रकारिता में रामप्रसाद जी को सामाजिक सम्मान तो बहुत मिला लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर होती गई। पत्नी सुशीला बहुगुणा जी ने इस कमी को बड़ी कुशलता से झेला और बच्चों ने भी इसमें सहयोग दिया तथा उनके संकल्पों-आदर्शों में कोई व्यवधान नहीं पड़ने दिया। पत्नी और बच्चों ने देवभूमि के प्रकाशन को बहुगुणा जी के देहावसान के बाद भी जारी रखा लेकिन सरकार से अपेक्षित सहयोग न मिलने के कारण अंततः वह बन्द हो गया।
देवभूमि के माध्यम से रामप्रसाद बहुगुणा जी ने अनेक लोगों को पत्रकारिता सिखाई, पत्रकारिता व समाज-सेवा के महत्व को समझाया और अनेक पत्रकारों तथा समाजसेवियों को तैयार किया। नागपुर से वापस लौटकर अपने मुल्क में ही सामाजिक संघर्षों को आगे बढ़ाने में ‘देवभूमि’ और बहुगुणा जी का ही प्रमुख योगदान रहा। मैंने 9 फरवरी 1972 से 31 अक्टूबर 1974 तक देवभूमि में काम किया और बहुगुणा जी से पत्रकारिता के माध्यम से, निष्ठापूर्ण सामाजिक सेवा की शिक्षा प्राप्त की। मेरे समान अनेक लोगों, जिनमें उमाशंकर थपलियाल जी, पुरुषोत्तम असनोड़ा जी, समीर बहुगुणा जी, लक्ष्मी प्रसाद भट्ट जी सहित अनेक लोग शामिल रहे, के महान गुरु, जो वास्तव में एक सीधे, अच्छे, सच्चे इंसान और प्रखर तथा प्रबुद्ध पत्रकार थे और हम सबके आदर्श रहे, को उनकी जन्म-शताब्दी पर विनम्र श्रद्धांजलि।

पतित पावनी अलकनंदा और नंदाकिनी नदियों के पावन संगम पर स्थित नंदप्रयाग में 19 दिसम्बर 1920 को स्व. श्री गोपालदत्त और माता श्रीमती राघवी देवी के घर जिस शिशु का जन्म हुआ वह ही आगे चलकर रामप्रसाद बहुगुणा के नाम से ख्यातिलब्ध प्राप्त पत्रकार, स्वतंत्रता संग्राम सैनानी हुये। उनकी इस ख्याति का कारण यह था कि उन्होने अपने संपूर्ण दिल और दिमाग से उत्तराखण्ड (गढ़वाल-कुमांऊ) को प्यार किया और उसके हितों के लिये आजीवन संघर्षरत रहे। उन्होने स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय भाग लिया और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अन्य अनेकों की तरह बदले में कोई पद लिप्सा कभी नहीं रखी अपितु आजीवन दरिद्रनारायण की सेवा में निर्लोभ भाव से अंतिम समय तक समर्पित रहे।

श्री रामप्रसाद बहुगुणा जन्म से ही दुख-सुख के झूले में झूलते रहे, जन्म के एक वर्ष के भीतर ही उनकी मां उन्हें छोड स्वर्गवासी हुई। उसके पश्चात चौदहवें वर्ष में उनके पिता भ्ी स्वर्गवासी हुये, उनकी शिक्षा दीक्षा पहले नंदप्रयाग तथा बाद में कर्णप्रयाग में हुई। अठारवें वर्ष में उन्हें शिक्षा इसलिए छोड देनी पडी की गुलामी की शिक्षा नहीं लेनी है। अपने चाचा गढ़केशरी अनसूया प्रसादजी के स्वाधीनता आन्दोलन से प्रेरित होकर किशोर रामप्रसाद सोलह वर्ष की उम्र से ही पत्र-पत्रिकाओं में स्वतंत्रता आन्दोलन पर लिखने लग गये थे और सन 1940 में उन्होने समाज नामक हस्त लिखित पत्रिका का संपादन करते हुये स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रति जन चेतना जागृत की । सन 1940 में वे भारत छोडो अभियान में कूद पडें और दो साल की जेल यात्रा की। इसी बीच उनके चाचा गढ़केशरी अनसूया प्रसादजी की गम्भीर बीमारी के बाद मृत्यु हो गयी। अंग्रेज सरकार ने रामप्रसादजी को माफीनामा लिखने पर जेल से छोड देने और वैसा न करने पर एक साल और जेल में रखने की धमकी दी परन्तु वे विचलित न हुये और माफी नहीं मांगी अपितु एक वर्ष और जेल में रहना संहर्ष स्वीकार किया। सन 1947 में जब देश स्वतंत्र हुआ तो उस समय वे गढ़वाल जनपद के कांग्रेस उपाध्यक्ष थे बद्रीनाथपुरी में पहले स्वतंत्रता समारेह की तब उन्होने अध्यक्षता की उस समय चमोली, गढ़वाल जनपद की तहसील मात्र थी।

सन 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस द्वारा विधायक की उम्मीद्वार प्रदान किये जाने पर भी उन्होने सभी दूसरे साथी के लिए स्थान छोड़ दिया। वहीं सन 1957 में कांग्रेस टिकट न मिलने पर (स्थानीय कांग्रेस के एकमत प्रस्ताव होने पर भी) उन्होने कंग्रेस छोड़ दी और वर्ष 1962 में स्वतंत्र उम्मीदवार के नाते बद्रीनाथ क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लडा परन्तु कुछ ही मतों से पराजय देखनी पड़ी। वर्ष 1964 में कांग्रेसियों ने उन्हें फिर अपना लिया और 1969 में उन्हें कांग्रेस टिकट भी विधान सभा चुनाव में मिला पर इस समया भी उन्हें विजयश्री प्राप्त नहीं हुई, इसका मुख्य कारण उस समय तक देश में क्षेत्रवाद व जातिवाद का शुरू होना था जिसके बहुगुणाजी भी शिकार हुए, इस चुनाव में घेसबधाण के कट्टर जनसंघी स्व. श्री शेरसिंह दानू विजयी हुए। पश्चात वर्ष 1977 में वे पहले जनता पार्टी और फिर सी0एफ0डी0 से संबद्व रहे। वे स्पष्ट वक्ता थे। एक बार पं. कमलापति त्रिपाठी जब केन्द्रीय सिंचाई मंत्री के रूप में सरकारी ताम झाम के साथ बद्रीनाथ पधारे थे तो बहुगुणाजी ही थे जिन्होने मंच पर खड़े होकर त्रिपाठी जी के सामने ही रोष प्रकट करते हुये कहा कि जब देश में लोग भूखे प्यासे हों तो सत्ताधारियों को जनता के धन का दुरूपयोग नहीं करना चाहिए, ऐसे ही सन 1981 का बहुचर्चित गढ़वाल संसदीय चुनाव के समय का एक प्रसंग यह भी है कि नंदप्रयाग में चुनाव प्रचार के समय एक कांग्रेसी नेता यह कह बैठा कि यह गढ़वाल का सौभाग्य है कि देश के जाने माने नेता यहां प्रचार के लिए आ रहे हैं, तो बहुगुणाजी ने उस नेता और उसके साथियों को सटीक और करारा जबाव दिया था कि सत्ता के मदमस्त नेताओं के यहां नहीं भूलना चाहिए कि यह गढ़वाल देवभूमि है यह किसी नेता के आने से धन्य नहीं होती अपितु इस देवभूमि में आकर ही श्रद्वालु ही धन्य होते हैं।

बहुगुणाजी अत्यधिक धार्मिक प्रवृति के होते हुये भी सदैव धर्मान्धाता के खिलाफ रहे। वर्ष1968 की प्रसिद्व श्री नंदा राजजात के समय एक नियत स्थान से आगे हरिजनों ओर महिलाओं की यात्रा में सम्मिलित हो सकने की रोक के विरोध में उन्होने वेदनी कुण्ड से आग की यात्रा जारी रखने के बजाय यात्रा अधूरी छोड़ कर लौट जाना ही बेहतर समझा था। उन्होने स्थापित मर्यादाओं और परंपराओं का अन्धानुसरण कभी नहीं किया अपितु सदैव इनका विरोध ही किया, वे जनपद की समाजिक गतिविधियों के सदैव केन्द्र बिन्दु रहे। श्री बहुगुणा चमोली जिला पत्रकार परिषद के प्रथम अध्यक्ष और जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष पद पर रह चुकने के अलावा मंदिर श्री बद्रीनाथ केदारनाथ समिति के सदस्य भी रहे है। उन्होने पुथक जनपद चमोली के पुर्नगठन में सक्रिय योगदान दिया था, वे गोचर औद्योगिक मेला आयोजन के कर्ता धर्ताओं में प्रमुख थे वे भारत सेवक समाज जागृत महिला समाज के अतिरिक्त कई अन्य समाजिक संगठनों से भी संबद्व रहे। वे महाकवि कालीदास स्मारक कालमठ के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे।

बहुगुणाजी भगवान श्री राम के परम भक्त थे, सन 1953 की रामनवमी के पुण्य दिवस पर से ही उन्होने देवभूमि साप्ताहिक पत्र का शुभारम्भ किया था और उसी माध्यम से वे उत्तराखण्ड प्रदेश और देश सेवा में आजीवन मन वचन कर्म से दत्तचित संलग्न रहे। गांधी जी की तरह ही बहुगुणाजी भी पत्रकारिता को सामाजिक चेतना को मुखर करने का भी सर्वोपरि कारगर माध्यम मानते थे वे इसे एक मिशन मानकर चलते थे। सन 1977 में स्वयं उन्हीं के द्वारा अपने जीवन वृतत पर एक जगह लिखा गया है कि अब तो अपना सहचर कलम पेन ही हो गये है।, यही मेरे विद्रोह का सशक्त माध्यम बन गया है।

वे आध्यात्मिक और दृढ इच्छाशक्ति के धनी थे, भीष्म पितामह की तरह उन्होने सूर्य भगवान के उत्तरायण गमन पर ही मृत्यु का वरण किया, वे दरिद्र नारायण के भक्त थे और फरियादियों की फरियाद सुनने के लिए ही उन्होने अपने घर का नाम ही फरियाद घर रख लिया था, जहां वह सरकारी उत्पीडन सामाजिक उत्पीडन तथा अन्य प्रकार के उत्पीडनों की फरियाद सुनते थे इसका माध्यम उनका अपना साप्ताहिक देवभूमि था। नयी पीढी के पत्रकारों का यह कथन ठीक ही है कि देवभूमि जहां जनपद के पत्रों की जननी है वहीं बहुगुणा जी पत्रकारों के जनक। सचमुच वे एक उद्देश्य के लिये ही जन्में और संघर्षो व आभावों को निरंतर झोलते हुए वे उसकी उपलब्धि के लिए जूझते रहे ऐसी पवित्र आत्मा की याद ही मन को पावन कर जाती है।

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