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भोजन करने से पहले इन बातों का रखेंगें ध्यान तो कभी नहीं होगी कोई कमी

खाने से भरी थाली को हाथ में उठाकर भी खाना न खाएं

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 
हमारे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है जैसे अन्न वैसा मन, भोजन को भगवान द्वारा दिया गया प्रसाद तक कहा गया है। अन्न को देवता माना जाता है। इसलिए अन्न का पूरा सम्मान करने की बात शास्त्रों में कही गई है। वास्तु शास्त्र में भोजन को ग्रहण करने और भोजन को बनाने को लेकर कुछ आसान उपाय बताए गए हैं। क्योंकि हर कोई दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए दिनरात मेहनत करता है। तो आइए जानते हैं कि कैसे करें भोजन और कैसे कराएं भोजन अपने घर में आए अतिथियों को ……
शास्त्रों में कहा गया है कि भोजन ग्रहण करने से पहले हमेशा भगवान को भोग लगाएं। अन्न देवता और अन्नपूर्णा माता का स्मरण कर उन्हें धन्यवाद करें हो सके तो भोजन मन्त्र  ”ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु। मा विद्‌विषावहै॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ का जाप करें। हां एक बात का जरूर ध्यान रखें कि अपनी थाली में उतना ही भोजन लें जितना आपको खाना है , भोजन को कभी भी बर्बाद न करें। अगर भोजन स्वादिष्ट न लगे तो कभी भी उसका तिरस्कार न करें। भोजन ग्रहण करते समय न तो किसी से बात करें और न ही कोई अन्य कार्य। वास्तु शास्त्र में माना जाता है कि गीले पैरों के साथ भोजन करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और आयु भी बढ़ती है। पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख कर भोजन करने से ईश्वर की कृपा बनी रहती है।
कभी भी दक्षिण दिशा की ओर मुख कर भोजन ग्रहण न करें। इससे स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। कभी भी टूटे या गंदे बर्तन में भोजन न खाएं। कभी भी बिस्तर पर बैठकर भोजन न ग्रहण करें। थाली को हाथ में उठाकर भी खाना न खाएं। जमीन पर बैठकर भोजन ग्रहण करना सबसे उत्तम है। भोजन की थाली को हमेशा अपने बैठने के स्थान से ऊपर रखें। ऐसा करने से घर में कभी भी खाने की कमी नहीं होगी। हर रोज गाय को रोटी खिलाएं। बिना स्नान किए रसोईघर में भोजन नहीं बनाना चाहिए। घर आए मेहमानों को दक्षिण या पश्चिम दिशा में बैठाकर भोजन कराएं। भोजन बनाते समय मन को शांत रखें और परिवार के सभी सदस्यों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें।

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