- अजातशत्रु कोई यूं ही नहीं बन जाते
वेद विलास उनियाल
1- राजनीति के युगपुरुष अटलबिहारी वाजपेयी की अस्थियां गंगा में प्रवाहित कर दी गई हैं। नारे लगे जनसैलाब उमडा। कभी महसूस किया कि उनका व्यक्तित्व किस तरह का था। आपको उत्तराखंड शासन के लिए मिला। कितने मुख्यंमंत्री बदलते रहे। आपक मुख्यमंत्री काग्रेस ने नहीं बदले। आपके अंदर की टूट खींचातान के नतीजे थे। आपकी राज्य शाखा उन शहीदो का स्मरण नहीं कर पाई जिन्होंने राज्य के लिए कुर्बानी दी । और अस्थि यात्रा में कुछ का जो आचरण दिखा है उसके क्या संदेश गए हैं। राजनीति के युगपुरुष को अंतिम विदाई किस तरह दी जानी चाहिए। जो मार्ग को लेकर बहस करते दिखे वो शीशे में वाजपेयी जी की प्रतिमा और अपने चेहरा का अंतर देखें।
2- वाजपेयी ने विपक्ष की राजनीति को गरिमा दी। लंबे समय तक विपक्ष में रहे। विपक्ष में रहते शालीन बने रहे। लेकिन आपके यहां विधायक सो नहीं पाता कि मंत्री क्यों नहीं बन पा रहा जो मंत्री बन जाता है वो मलाईदार विभाग के लिए कलपता दिखा जिसकों मलाई दार विभाग मिला उसे लगा उसका जन्म केवल मुख्यमत्री बननेे के लिए हुआ है। और विपक्ष के लिए ठोस जमीनी राजनीति को तो आप लोगों ने अपना अपमान मान लिया। वाजपेयीजी कहते थे कि हम सोचते थे विपक्ष के लिए बने। और राज्य उत्तराखंड भाजपा सोचती है वह सत्ता के लिए ही बनी है।
3- वाजपेयी का सपना सड़कों का जाल बिछाकर एक छोर से दूसरे छोर को जोडना गांवों को आपस में जोडना। आपके राज्य नेताओं को मैदानी और तराई इलाकों से इतना प्यार हो गया है कि भूल गए उत्तराखंड में पहाडी इलाके भी है। कभी कभी गांव भी जाना चाहिए ।
4- वाजपेयीजी आम जन से जुडते थे। लोगों से सीधा संवाद था। राज्य बनने के बाद भाजपा नेता यक्ष , देव हो गए। लोगों से कितनी दूरी । लोगों से आपका क्या संवाद हो पा रहा है। शायद नहीं। हर बडे नेता के आसपास एक घेरा सा बन गया है। छू नहीं पा रहे अपने नेताओं को उनसे मिल नहीं पा रहा, गांव कस्बों की समस्या नही कह पा रहे। हर मुख्यमंत्री अपने आसपास तीन चार लोगों की गुमटी बनाकर रहा है। राजनीति की इस बेहद खराब शैली को किसी ने नहीं बदला।
5 – वाजपेयीजी प्रेस को सम्मान देते थे। राज्य भाजपा ने क्या सीख लिया कि हम विज्ञप्ति खुद तैयार करके अखबारों को दे देंगे। प्रेस से दूरी क्यों हो रही है। लंबे अनुभव वाले, यहां के सरोकारों से जुड़े पत्रकारों के साथ मिलने जुलने में इतनी झिझक क्यों। क्यों पसंद आ रहे है वही नए लड़के जो आपकी बस बाइट ले लें। आपने जो कहा , उसे छाप दें। वाजपेयीजी तो सबको मिलते थे , खुलकर बात करते थे। क्यों कई जगहों पर प्रेस को रोका जाता है। किसकी हैं ये सलाह । और ऐसी डुबाने गिराने भरमाने वाली सलाह क्यों मानते हैं।
6 – वाजपेयी ने हमेशा अनुभव योग्यता को तरजीह दी। किसी तरह की खैरात कभी नहीं बांटी। आखिर इतना तो सोचना ही चाहिए कि जो सलाह देने के लिए हैं वो सलाह देने की स्थिति में हैं या नहीं । सरकारी खजाना कितना खत्म होता है इस रेवडी के बंटने से।
7- वाजपेयीजी दूरदर्शी थे। हर चीज को परखते थे उनका सपना था इसी लिए चतुर्भुज सड़क योजना साकार हो रही है, राज्य भाजपा ने अपनी तरफ से क्या संकल्प लिया इन अठारह साल में । क्यों तीन हजार घरों में ताले, रोजागर क्यों नहीं निकल रहा, पहाडों के पर्यटन की अपार संभावनाओ के बीच लोगो में इतनी निराशा क्यों। आपका इतना बडा कैडर , इतना बडा राज्य संगठन। इतने अनुभवी नेताओं की पंक्तियां , लेकिन लोग रा्ज्य से राजनीति से इतने हताश क्यों।
8- वाजपेयी ने कहा था जिस शासन में मुजफ्फरनगर जैसी घटना हो उस शासक को एक पल भी सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं। बताइए भाजपा ने मुजफ्फरनगर कांड के अपराधियों को सजा दिलाने और पीडित लोगों परिवारों को न्याय दिलाने के लिए अब तक क्या किया। वाजपेयी ने तो मुलायम से सत्ता छीनी आपने इस मुद्दे को हाशिए पर क्यों डाल दिया।
9 – वाजपेयी प्रकृति के प्रेमी थे। कभी मनाली कभी नैनीताल आते थे। आपकी पार्टी को गैरसैण जैसा मनोरम स्थान इतना बेगाना क्यों लगता है कि तीन दिन भी वहां नहीं ठहर पाते। चंद्र सिंह गढवाली की याद में ही सही कभी एक छोटा सम्मेलन तो वहां कर लेते। आपके उस विराट व्यक्तित्व वाले नेता को पहाडों से इतना प्यार और आपकी पहाडों से इतनी दूरी। कहीं ओर न सही, छोडिये ताल और बुग्याल ग्लैशियरों की बात थोडा चार धाम के आसपास इलाकों को तो देखिए। सदूर मुनस्यारी और चंपावत की ओर भी देखिए। कैसी कह पाओगे आप कि वाजपेयी हमारे पथप्रदर्शक हैैं और हम उनके रास्ते पर चल रहे हैं। आपको तो गांव तक नहीं सुहाते।
10 – वाजपेयीजी सक्षम राजनेता थे, सत्ता का, पद का दुरुप्रयोग नहीं किया। आपकी पार्टी के लोग विधायक देर में बने मेट्रो के कामकाज सीखने यूरोप के देशों की उडान भर गए। बेहद झूठी और दिखावटी यात्रा है ये। केवल सत्ता की अय्याशी है। क्यों जाने दिया गया। राज्य का बच्चा बच्चा जानता है कि ये टोला कुछ सीख कर नहीं आएगा इसकी जरूरत भी नहीं थी। कुछ नेता अफसरों की तो पत्नियां भी गई। यह एक उदाहरण है। इस उत्तराखंड के गरीब लोगों के पैसे पर पर्यटन के नाम पर और पता नहीं किस किस के नाम पर ऐसी यात्राएं होती रही। जिन देशों के नाम नहीं सुने वहां भी नेता अफसर पहुंचे। इन नारों के बीच कुछ तो सोचिए । कुछ तो मनन कीजिए।
11- वाजपेयी जी अध्ययन शील थे, पढते लिखते थे। उनकी कविता मुखर थी। लगता था जहा उनका संवाद खत्म हो रहा है उसके आगे की बात वह अपनी कविता से कह रहे हैं। उनकी कविता मुखर थी । मन के सच्चे भाव थे। कविता संवाद और जन से सरोकार का कुछ अंश कितने भाजपा के नेता अपने जीवन में ले पा रहे हैं। किसकी वाणी कविता रचनात्मकता का ओज होगा जो लोगों को अपने साथ इसी तरह जोड़ दे जैसे वाजपेयी ने जोडा था। कमी कहां है रुझान कहां कम है, सत्यता की कहां कमी है। पहल में कमी कहां है। क्या भाजपा के नेता मनन करने की स्थिति में हैं।
कैसे रक्षा हो पाएगी वाजपेयीजी के बडे विजन की। उनके लक्ष्यों की। उनकी सोच की। क्या अपने प्रिय नेता की विदाई से गमगीन भाजपा कुछ नया सबल लेगी, कुछ अपने को बदलेगी। वाजपेयीजी की यादों का सार्थक महत्व तभी है जब उनकी पार्टी की राज्य इकाई अपने कुछ आवरण को बदलती दिखे। वरना नारों जज्बातों में ही सब रह जाएगा। अजातशत्रु कोई यूं ही नहीं बन जाते।