क्या पॉलिटिकल वैक्यूम का फायदा उठा रहे हैं उत्तराखंड के ब्यूरोक्रेट्स ?
सरकारी मितव्ययता के दावों की हवा निकल रहे उत्तराखंड के ब्यूरोक्रेट्स
एक-एक ब्यूरोक्रेट के पास हैं चार-चार सरकारी कारें और दस-दस कर्मचारी
राजेंद्र जोशी
तो क्या उत्तराखंड के ब्यूरोक्रेट्स पॉलिटिकल वैक्यूम का फायदा उठाकर आवश्यकता से ज्यादा सरकारी सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं। यह सवाल उत्तराखंड के बुद्धिजीवियों के दिमाग को कचोटता चला आ रहा है। वास्तव में हो भी कुछ ऐसा ही रहा है, भले ही उत्तराखंड में काबिज़ अब तक की तमाम सरकारें सरकारी खर्च पर लगाम लगाने की बात कर सूबे में सरकारी मितव्ययता के भले ही लाख दावे किये जाते रहे हैं लेकिन स्थिति इसके एकदम विपरीत है। एक-एक ब्यूरोक्रेट चार-चार विभागों की गाड़ियों और दर्जनों कर्मचारियों पर कब्जा जमाए बैठा हुआ है।
सरकार के आदेशों का मख़ौल और कोई नहीं बल्कि सूबे में तैनात ब्यूरोक्रेट्स ही उड़ा रहे हैं। असल में उत्तराखंड में शुरु से ही नौकरशाही के हावी होने के चर्चे सरे आम हैं, वह इसलिए भी है कि यहां ब्यूरोक्रेट्स का टोटा पड़ा हुआ है। दूसरा यहां से अच्छे और ईमानदार ब्यूरोक्रेट केंद्र में बुलाए जाते रहे हैं और उत्तराखंड में काबिज तमाम ब्यूक्रेट्स में आपसी गुटबाजी और क्षेत्रवाद सहित उत्तराखंड मूल के ब्यूरोक्रेट्स को दोयम दर्जे का समझा जाना भी सरकार के सामने एक समस्या और चुनौती बनी हुई है। वहीं चर्चा यह भी है कि दूसरे काडर सहित मलाईदार कुर्सियों को पाने के लिये और उत्तराखंड काडर पाने के लिए अन्य काडर के अधिकारियों में DOPT में मारामारी मची हुई रहती है। जबकि ऐसे अधिकारियों की नज़र हमेशा मलाईदार कुर्सियों पर लगी रहती है जिससे उत्तराखंड का विकास काम और ऐसे ब्यूरोक्रेट्स का विकास अब तक ज्यादा होता रहा है। यही कारण है कि एक-एक ब्यूरोक्रेट के पास चार-चार से लेकर छह-छह तक विभागों का जिम्मा है। लेकिन सरकारी कार्यों के प्रति जवाबदेही आज तक किसी भी ब्यूरोक्रेट की तय नहीं की जा सकी है,ब्यूरोक्रेट्स आते जाते रहे हैं लेकिन कसी ब्यूरोक्रेट ने अच्छा कार्य किया जिसे राज्य में मिसाल के तौर पर अंकित किया गया हो आज तक ऐसा नहीं हुआ, इसके उलट किस ब्यूरोक्रेट का कार्यकाल शानदार या दागदार रहा इसका भी कोई लेखा जोखा आजतक की सरकारों से सार्वजानिक नहीं किया। चर्चा है जुगाड़बाज़ी में माहिर ब्यूरोक्रेट्स आज तक सूए में मलाईदार कुर्सियों पर ही काबिज़ रहे हैं जबकि अन्य ने तो मामूली विभागों में काम करते हुए सेवानिवृति तक पा ली है।
चर्चा है कि इसके पीछे सूबे के नेताओं को विभागों की कम जानकारी या यूँ कहें ज्ञान का होना भी एक मुख्य कारण रहा है। जिन नेताओं में विजन सही या जानकारी ठीक -ठाक होती है उन्हें अधिकारी कानूनों और सरकारी पेचीदिगियों का हवाला देते हुए उनका मुंह बंद करते चले आए हैं, लेकिन एक चर्चा यह भी है कि इसके ठीक उलट सूबे के ब्यूरोक्रेट्स को स्वहित के लिए यदि कोई कार्य करना होता है तो वे इसके लिए रास्ता निकाल ही लेते हैं। उसमें कानूनी पेचीदिगियाँ आड़े यहीं आती। वहीं सूबे में चार -चार विभागों का जिम्मा सँभालने वाले ऐसे ब्यूरोक्रेट्स भी है जो सरकार की मितव्ययता की नीति को धत्ता बता रहे हैं। चर्चा तो यहाँ तक है कि ऐसे कुछ अधिकारियों ने उनके अधीनस्थ विभागों से एक-एक गाड़ी और ड्राइवर सहित आठ-आठ दस-दस कर्मचारी तक अपने घरों में तैनात किए हुए हैं। कोई गाड़ी इनके बच्चों को स्कूल लाने ले जाने के लिए अगल से है तो कोई गाड़ी मेमसाहब के लिए अलग से और एक गाड़ी साहब की खिदमत में तो एक गाड़ी साहब के आउट हाउस में लगी मिलती है, जो बाहर से आने जाने वाले अतिथियों के स्वागत में लगी होती हैं। ठीक इसी तरह कर्मचारियों का भी कार्य विभाजन किया गया है।
उत्तराखंड में प्रतिनियुक्ति पर कुछ साल काम कर चुके एक ब्यूरोक्रेट ने नाम प्रकाशित न करने की शर्त पर बताया कि देश में शायद उत्तराखंड ही एक मात्र ऐसा राज्य है जहां सरकारें राजनीतिक दलों की नहीं ब्यूरोक्रेट्स की चलती हैं। वे जैसा चाहें वैसे सरकारों को घुमाते रहे हैं। लेकिन अन्य प्रदेशों में ऐसा नहीं है। उन्होंने साथ ही यह भी कहा उत्तराखंड के नेता जहां सीधे और सरल हैं वहीँ यहां की जनता भी ठीक ऐसी ही है क्योंकि यहाँ की जनता राष्ट्रवादी सोच की है वह कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहती है। लेकिन अन्य प्रदेश में इसके ठीक उलट है वहां के नेता और जनता डंडे के बल पर कार्य करती है जिसे मज़बूरी में अधिकारियों को करना पड़ता है।
कुलमिलाकर उत्तराखंड में ब्यूरोक्रेट्स की जो छवि जनता के बीच है वह संतोषजनक नहीं कही जा सकती है। हाँ सूबे में कुछ एक ब्यूरोक्रेट्स रहे हैं जिन्होंने जनता में अपनी छवि अपने कार्यों को लेकर बनाई है, लेकिन ऐसे ब्यूरोक्रेट्स को देहरादून के वातानुकूलित कमरों में बैठ पंच सितारा संस्कृति के पोषक ब्यूरोक्रेट्स को नहीं भाती है। लिहाज़ा ऐसे ब्यूरोक्रेट्स उनका उत्साहवर्धन करने के बजाय उनको हत्तोत्साहित ही करते रहे हैं। जो उत्तराखंड के भविष्य और उत्तराखंडवासियों के लिए ठीक नहीं कहा जा सकता।
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