सत्ता बदलने से नहीं सुलझेंगी उत्तराखंड की समस्याएं
देहरादून। उत्तराखंड क्रान्ति दल के अध्यक्ष पुष्पेश त्रिपाठी ने विधानसभा चुनाव परिणामों को जनादेश बताते हुए कहा कि लोकतंत्र में जनता को अपनी आकांक्षाओं के अनुसार प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है। उत्तराखंड की जनता ने जो जनादेश दिया है उससे उम्मीद की जानी चाहिए कि नई सरकार और प्रतिनिधि जनता के सवालों को सुलझाने के लिए जनपक्षीय नीतियां बनाएंगे।
उन्होंने कहा हांलाकि राज्य बनने के बाद हमारे अनुभव अच्छे नहीं रहे हैं। इन सोलह सालों में चार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, हमने आठ मुख्यमंत्रियों और बारी-बारी से भाजपा-कांग्रेस का शासन भी देखा है, लेकिन पहाड़ की समस्याएं वहीं खड़ी हैं जहां से हमने राज्य की बात शुरू की थी। इसलिए राष्ट्रीय दलों के लिए यह जीत-हार का सवाल हो सकता है, लेकिन उक्रांद के लिए अभी भी हिमालय और पहाड़ के बचे रहने का सवाल ज्यादा महत्वपूर्ण है। उक्रांद ने फिर नए सिरे से राज्य की समस्याओं को चिन्हित करने और उनके समाधान के लिए लड़ाई लडऩे का खाका तैयार किया है।
त्रिपाठी ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा है कि उत्तराखंड की समस्याएं सत्ता बदलने से नहीं सुलझेंगी। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और पहाड़ की बेहतरी के लिए ²ष्टि की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि राजनीति में हार-जीत का मतलब सिर्फ सत्ता में बने रहना नहीं होता, बल्कि जनता के बीच रहकर उनकी समस्याओं का समाधान करना भी होता है। दुर्भाग्य से देश में जिस तरह के प्रबंधन और संसाधनों के बल पर चुनाव जीतने की प्रवृत्ति हावी हुई है उसने जनता के सवाल हासिए में डाल दिए हैं।
इस चुनाव में भी ग्लैमर और हवाई बयानबाजियों को जिस तरह संसाधनों के माध्यम से वोट में तब्दील किया गया उसने एक नई तरह की राजनीतिक शक्ति को पैर जमाने का मौका दिया है। लेकिन इस तरह की राजनीति बहुत ज्यादा चलती नहीं, इसलिए जो लोग पहले से ही जनता के लिए संघर्षरत हैं उन्हें फिर से जुट जाना चाहिए। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि उत्तराखंड में जनता उसकी धरोहरों से अलग करने की नीतियां और तेज होने की आशंका है। भाजपा-कांग्रेस जिस तरह के विकास का झांसा जनता को देती रही है उसके दुष्परिणाम आने वाले हैं।
उन्होंने बताया कि केन्द्र सरकार ने बहुप्रतीक्षित पंचेश्वर बांध के निर्माण को हरी झंडी देकर यह बता दिया है कि वह किसी भी कीमत पर बड़े बांधों के खिलाफ नहीं जायेंगे। यह जानते हुए भी कि हिमालयी क्षेत्रों में बड़े निर्माण विशेषकर जलविद्युत परियोजनाएं खतरनाक हैं। पिछले वर्षों में हम उत्तराखंड, कश्मीर और नेपाल की त्रासदियों को झेलने के बाद भी सबक लेने को तैयार नहीं हैं।
त्रिपाठी ने कहा कि उत्तराखंड मानवजनित आपदाओं को पिछले दो दशक से झेल रहा है। अब भूवैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, बांध परियोजनाओं के जानकारों ने भी यह बता दिया है कि इस तरह की योजनाएं हिमालय के लिए खतरा हैं। पिथौरागढ़, बागेश्वर, चमोली, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग और टिहरी में जहां भी इस बीच आपदा आई वह नदियों पर बन रही परियोजनाओं और उनसे निकल रही सुरंगों के कारण आई हैं।
उन्होंने कहा कि पंचेश्वर बांध परियोजना के बनने से पहाड़ को एक और बड़े विस्थापन का दंश झेलना होगा। उक्रांद इस परियोजना का पुरजोर विरोध करता है। उक्रांद नेता पुष्पेश त्रिपाठी ने कहा कि सीमांत जनपद पिथौरागढ़ और नेपाल की सीमा को बांटती महाकाली नदी पर पंचेश्वर बांध प्रस्तावित है। चंपावत जनपद और नेपाल के बैतड़ी जनपद के तल्ला सौराड़ क्षेत्र में बन रहे 6480 मेगावाट क्षमता वाले 315 मीटर ऊंचे पंचेश्वर बांध एक बड़ी त्रासदी को न्यौता देने वाला है।
इस बांध के बनने से टिहरी के बाद एक बड़े विस्थापन का रास्ता खुल रहा है। इस बांध से भारत के 120 गांवों के सात हजार परिवारों के 40 हजार लोगों को तुरंत विस्थापित करना होगा। नेपाल क्षेत्र के 56 गांव और 20 हजार लोग इस बांध के विस्थापन की जद में आयेंगे। श्री त्रिपाठी ने कहा कि इस बांध से हमारी कई नदियां जैसे पनार, सरयू, रामगंगा और काली पर असर पड़ेगा। त्रिपाठी ने कहा कि हम बड़े बांधों का पुरजार विरोध करेंगे। पंचेश्वर बांध के विरोध में जनता के बीच जायेंगे और इसके खतरे और सरकार की जनविरोधी नीति को बतायेंगे।