भाजपा का 19 साल बाद एक और अव्यवहारिक निर्णय !

- चाल ,चरित्र और चेहरे के सिद्धांत से दूर होती नई भाजपा
- नरेश बंसल कभी भी कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय नहीं रहे
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : भारतीय जनता पार्टी ने फिर 19 साल बाद एक और अव्यवहारिक निर्णय लिया है जिसका खामियाजा पार्टी को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा। पार्टी ने जनता से कटे हुए और केवल दिल्ली के आकाओं के दम पर नेतागिरी करने वाले नरेश बंसल को कामचलाऊ अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी है। यही फैसला सन 2000 में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड में अंतरिम सरकार का मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी को बनाकर दिया था, लेकिन नित्यानंद स्वामी के सादगी पसंद और ईमानदार चरित्र की छवि के आगे उनका विरोध ज्यादा नहीं हो पाया था ।
यहां विषय पहाड़ और मैदान का नहीं है,जनता से जुड़े नेता को लेकर फैसला लेने का है जिसे लेकर भाजपा ने दोबारा बड़ी भूल की है। नरेश बंसल कई वर्ष भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री संगठन बने रहे। केंद्रीय महामंत्री संगठन रामलाल की कृपा से हर संगठन में पद पा लेने वाले नरेश बंसल कभी भी जनता से नहीं जुड़े रहे।
चर्चा है कि पार्टी के भीतर अनुशासन के डंडे के डर से चुप रहने वाले कार्यकर्ता भले खुलकर विरोध न कर पायें मगर दिल्ली के अव्यावहारिक फैसलों पर क्रोध और निराशा जरूर रहती है। बैंक में बाबू की नौकरी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सीधे भाजपा के महामंत्री संगठन बनने वाले नरेश बंसल को केंद्रीय महामंत्री महामंत्री संगठन रामलाल का निरंतर आशीर्वाद मिलता रहा है । सात वर्ष महामंत्री संगठन की कुर्सी से हटने के बाद उन्हें निरंतर प्रदेश संगठन में तमाम पदों से नवाजा जाता रहा है ।
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निशंक सरकार में उनकी इच्छा से ही आवास विकास परिषद का अध्यक्ष बनाया गया। नरेश बंसल अपने आका के बूते हर पद के दावेदार रहते हैं, चाहे वह हरिद्वार लोकसभा का 2014 का चुनाव हो या 2019 का हो। हर राज्य सभा सीट पर वे दावेदार बन जाते हैं । इस बार भी रामलाल के दबाव में उन्हें सरकारी दायित्व में कैबिनेट दर्जा नवाजा गया है।
उत्तराखंड संवेदनशील राज्य है और भाजपा द्वारा दिल्ली से थोपे गए इस फैसले का प्रभाव लोकसभा चुनाव में परिणामों में दिखायी पड़ेगा। कार्यकर्ता अनुशासन के डंडे से चुप रहेंगे किंतु यह प्रतिक्रिया वोटों के रूप में जरुर दिखाई देगी। नरेश बंसल कभी भी कार्यकर्ताओं में लोकप्रिय नहीं रहे हैं ,ना व्यावहारिक रहे, बल्कि संगठन मंत्री रहते उनके दुर्व्यवहार के किस्से चर्चाओं में रहे हैं।
अब भाजपा के भीतर ही चर्चा होने लगी है कि सात वर्ष संगठन मंत्री रहते नरेश बंसल को उत्तराखण्ड का पूरा भौगोलिक ज्ञान नहीं है। न उन्होंने अपने कार्यकाल में कभी पर्वतीय इलाकों का ही भ्रमण किया। पर्वतीय लोगों का मानना है कि केंद्रीय भाजपा ने उत्तराखण्ड को प्रयोगशाला बनाकर पार्टी का नुकसान ही किया है। जबकि जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने में माहिर राजनैतिक दल चुनाव में इसका लाभ उठाने से नहीं चूकते। अब भाजपा का चुनावी हाथी किस करवट बैठेगा समय ही बतायेगा।