EXCLUSIVE

अमित शाह परखेंगे त्रिवेंद्र सरकार की चाल और ढाल

  • यहाँ हर शख्स परेशां सा क्यूं है
  • नाराज गुटों  ने चढ़ाई बांहे, करेंगे वार पर वार
  • रिपोर्ट कार्ड बनाने में सरकार- संगठन की फूली सांसें 
  • 19 को भाजपा के हेड मास्टर शाह देहरादून में

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

सीने में जलन आंखों में तूफ़ां सा क्यूं है
इस शहर में हर शख्स परेशांन सा क्यूं है
प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक मुजफ्फर अली की गमन फ़िल्म की यह हिट गजल बरबस ही याद आ गयी

 

दरअसल, देहरादून का माहौल ही कुछ ऐसी तस्वीर बयां कर रहा है।भाजपा सरकार से लेकर पार्टी संगठन के अलावा अस्थायी राजधानी की जनता चौंकी हुई है। हड़बड़ाई हुई है। लीपापोती चल रही है। बड़े-बड़े होर्डिंग ,झंडे डंडे हवा में टांके जा रहे हैं। सरकार का छमाही रिपोर्ट कार्ड तैयार हो रहा है। रिपोर्ट कार्ड में भी गोडा -गाड़ी भी हो रही है। ताकि सब कुछ चमाचम दिखे जनाब को। जनाबे आली की सुविधा के अनुसार दलित का घर भी तलाश लिया गया। ताकि जनाबे आली भोजन ग्रहण कर देश दुनिया को दिखा सके। कि यहाँ तो अजब-गजब हो रखा है।

साहब पहले भी आते रहे। अपनी पार्टी से सलाह मशविरा कर उड़न छू हो जाते थे।
लेकिन इस बार कहानी पूरी बदली हुई है। चूंकि अब हेड मास्टर जी अमित शाह हैं तो थोड़ा बहुत दहशत तो होनी ही चाहिए।
मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और विधायक अपने अपने कुर्तों का कलफ कड़ा कर रहे हैं। ताकि मास्टर जी की पारखी नजरें कोई दाग-धब्बा न पकड़ ले। गोया अमित शाह नेता न होकर कोई बड़े तानाशाह टाइप आदमी हों । देहरादून में किसी बड़े नेता के आगमन पर इतना डर पहले कभी न देखा गया और न कभी सुना गया ।

19 सितम्बर से शुरू हो रहे दो दिवसीय प्रवास के दौरान भाजपा के अमित शाह त्रिवेंद्र सरकार के मंत्रियों और विधायकों की परफार्मेन्स का आंकलन करेंगे।

मुख्यमंत्री रावत ने इन छह महीनों में कुछ मुख्य फैसले जरूर किये हैं। लेकिन पहले दिन से ही भाजपा के कुछ बड़े नेता त्रिवेंद्र को ढीले ढाले मुख्यमन्त्री की तरह पेश कर रहे हैं। भाजपा में आये कांग्रेसी गोत्र के मंत्री विधायक भी खुल कर बैटिंग नहीं  कर पा रहे हैं और अपनें मुख्यमंत्री को कुर्सी के योग्य नहीं  बता रहे हैं।
कुछ समय पूर्व चमोली जिले के एक भाजपा विधायक ने तो अपने मुख्यमंत्री को झोला छाप तक बता कर सनसनी मचा दी थी । कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज भी नाराजगी की लंबी लिस्ट लेकर घूम रहे हैं। चर्चा है कि मुख्यमंत्री महाराज के भाई भोले महाराज को ज्यादा तवज्जो देकर सतपाल महाराज के मुंह का जायका लगातार बिगाड़ रहे हैं । सभी को पता है कि दोनों भाइयों सतपाल और भोले महाराज के बीच छत्तीस का आंकड़ा है।
हालांकि, त्रिवेंद्र 2007 से 2012 तक कैबिनेट मंत्री भी रहे। उस समय वो बीज घोटाले में घिर गए थे। अब यही ढेंचा बीज घोटाला उनकी परेशानी का सबब बना हुआ है।
यही नहीं, नौकरशाही में भी त्रिवेंद्र अपनी पकड़ नहीं  बना पाए हैं। 15 अगस्त के मौके पर 50 अधिकारी गायब थे। इस मुद्दे पर जांच चल रही है।नतीजा अभी सामने नहीं आया कि जाँच का क्या हुआ?  भाजपा के एक पूर्व मुख्यमंत्री तो ऑफ द रिकॉर्ड बातचीत में खुल कर चुटकी भी ले रहे हैं कि जब औसत दर्जे का मुख्यमंत्री होगा तो रिजल्ट भी एवरेज ही आएगा। ज्यादा बेहतर की उम्मीद नहीं की जानी चाहिये।

एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री निशंक के करीबी रघुनाथ सिंह नेगी बीते दो महीने में तीन बार मुख्यमंत्री से जुड़े बीज घोटाले व अन्य मुद्दों पर मुख्यमंत्री पर निशाना साध रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री के एक और करीबी नेता हेमन्त द्विवेदी भी पावरफुल अफसर ओमप्रकाश को निशाने पर लेकर सनसनी मचा चुके हैं। यहां यह भी गौरतलब है कि शाह की मौजूदगी में किसी भी प्रकार के बवाल से बचने के लिए त्रिवेंद्र के चहेते अधिकारी ओमप्रकाश छुट्टी पर चले गए। ओमप्रकाश 21 सितम्बर को ज्वाइन करेंगे तब तक अमित शाह उत्तराखण्ड से निकल चुके होंगे।

यह संदेश साफ जा रहा है कि त्रिवेंद्र रावत कुछ चर्चित अधिकारियों से बुरी तरह दबे हुए हैं। अमित शाह से इन मुद्दों पर भी नाराज नेता खुलकर बोलने की रण नीति बना रहे हैं।
बहुमत की भाजपा सरकार में कांग्रेस गुट के भी कई विधायक और मंत्री हैं। इनमें वन मंत्री हरक सिंह रावत सहित एक दर्जन विधायक भी अफसर ओमप्रकाश को बुरी तरह गरिया चुके हैं। कांग्रेसी कल्चर वाले सभी नेता मुख्यमंत्री की बंदिशों से अनमने नजर आ रहे है। हालांकि, इनके नेता आलाकमान को रिपोर्ट दे चुके हैं।

राज्यमंत्री रेखा आर्य की भी एक जिलाधिकारी और शासन के आलाधिकारी से ठनी हुई है। इसके अलावा और भी कई कहानियां त्रिवेंद्र रावत के लिए मुसीबत बनती जा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री भगत दा के सहारे पार्टी में मुकाम बनाने वाले त्रिवेंद्र आज अपने गुरु को भी भाव नही दे रहे। यह चर्चा भी आम है। लिहाजा, भगत दा भी अंदरखाने चोट खाये हुए हैं। विधायक व दून के मेयर विनोद चमोली भी एक अधिकारी की बदतमीजी को लेकर त्रिवेंद्र रावत को खरी खोटी सुना चुके हैं।

त्रिवेंद्र के इर्द गिर्द मंडरा रहे सलाहकार और अन्य नियुक्त किये गए लोग भी अनजाने चेहरे हैं। जो मुख्यमंत्री पर तो बोझ बने ही हुए है साथ ही इस गरीब राज्य पर भी बोझ से काम नहीं  हैं। फिलवक्त, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत बुरी तरह घिरे हुए हैं।

मंगलवार से शुरू हो रहे अमित शाह के दून दौरे में पार्टी का नाराज तबका बहुत कुछ अपनी भड़ास निकालने की कोशिश में रहेगा। सरकार के कार्यों के प्रेजेंटेशन के अलावा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अब तक निभाई गयी भूमिका पर भी अमित शाह की पैनी नजर रहेगी। आने वाले दो दिनों में उत्तराखण्ड की राजनीति में एक नई इबारत लिखी जाएगी।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »