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आखिर केवल सीआर पर ही क्यों है रार ?

आखिर कांग्रेसी मूल के मंत्री ही क्यों उठा रहे हैं इस तरह की मांग 

बीते साढ़े तीन सालों में आखिर क्यों नहीं आई इस मुद्दे की याद 

क्या उत्तराखंड जैसे  पर्वतीय प्रदेश में रोज़गार, पलायन, शिक्षा, चिकित्सा जैसे मुद्दे हो गए हैं समाप्त 

राजेंद्र जोशी 
देहरादून : उत्तराखंड में आजकल सरकार में शामिल मंत्री आईएएस अधिकारियों की सीआर यानि चरित्र पंजिका पर अपनी टिप्पणी किए जाने को आतुर हैं जबकि प्रदेश में कई और भी मुद्दे हैं, ऐसे में कांग्रेस छोड़ भाजपा में आकर मंत्री पद प्राप्त करने इन मंत्रियों की इस मांग में उत्तराखंड के प्रति संवेदनशीलता कम और राजनीती की सड़ांध जरूर नज़र आ रही है।
गौरतलब हो कि राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार रेखा आर्य द्वारा अपने सचिव षणमुगम जिनकी छवि एक ईमानदार आईएएस अधिकारी की रही है, को लेकर उपजा विवाद के बाद  इस झगडे में मंत्री सतपाल महाराज ने अपनी टांग का फँसाई कि इसके बाद अब इस विवाद में अपनी टांग फंसने वाले सुबोध उनियाल ने भी इनकी हाँ में हाँ मिलते हुए मंत्रियों द्वारा आईएएस अधिकारियों की सीआर लिखने की मांग की है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि क्या उत्तराखंड जैसे  पर्वतीय प्रदेश में रोज़गार, पलायन, शिक्षा, चिकित्सा, पानी और सड़क जैसे मुद्दों पर इन मंत्रियों ने विजय पा ली है जो ये सीआर का मुद्दा उठा कर इस पर राजनीती करने चले हैं ?
गौरतलब हो कि सीआर पर अभी तक आवाज उठाने वाले मंत्रियों की बात की जाए तो तीनों ही मंत्री कांग्रेस से भाजपा में आए हुए हैं और तीनों ही कई वर्षों कर कांग्रेस में विधायक रहे जबकि उत्तराखंड में आईएएस अधिकारियों की सीआर लिखने की जिम्मेदारी राज्य के अस्तित्व में आने के दिन से लेकर आज तक मुख्यमंत्री के पास ही रही है।  तब चाहे वह कांग्रेस का मुख्यमंत्री रहा हो अथवा भाजपा का। अब सवाल यह उठता है कि आखिर इन मंत्रीगणों को तत्कालीन सरकारों के कार्यकाल के दौरान आईएएस अधिकारियों की सीआर लिखने की याद तब क्यों नहीं आई, जबकि इनमें से एक मंत्री तो पूर्व मुख्यमंत्री का सलाहकार भी रह चुका है और एक मंत्री की पत्नी उत्तराखंड सरकार में मंत्री रही है जबकि वे खुद भी केंद्रीय राज्य मंत्री रहे हैं आखिर उन्हें साढ़े तीन साल बाद ही यह क्यों याद आ रहा है कि उन्होंने केंद्र में सचिव की सीआर लिखी थी। 
उल्लेखनीय है कि केंद्र में हर विभाग का एक अलग सचिव होता है और सामान्यतः उसके पास कोई दूसरा विभाग नहीं होता है इस लिहाज़ से सचिव सीधे मंत्री के अधीन होता है, लेकिन राज्यों में व्यवस्था इससे इतर है यहाँ एक सचिव के आपस कई विभाग होते हैं और उन विभागों के मंत्री भी अलग- अलग होते हैं। जबकि केंद्र सरकार में हर मंत्री का सचिव एक आईएएस अफसर होता है जबकि राज्यों में मंत्रियों के सचिव होने की कोई व्यवस्था नहीं है यह व्यवस्था केवल मुख्य मंत्री के पास ही है। वहीँ मुख्यमंत्री के अधीन आने वाले सचिवों के पास भी कई अन्य विभाग होते हैं और उन विभागों के मंत्री भी अलग -अलग होते हैं ऐसे में अब आईएएस अधिकारियों की सीआर लिखने की मांग कितनी जायज़ है यह आसानी से समझा जा सकता है।  

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