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आखिर षडयंत्रकारी कब तक कितनी और करेंगे इस तरह की कोशिश ….

त्रिवेंद्र सरकार के विकासपरक कई बड़े फैसले नहीं हो रहे हैं हजम
केवल 275 लोगों से पूछताछ कर मुख्यमंत्री का मिज़ाज़ जानने और पहचानने का यह कौन सा फॉर्मूला
जब त्रिवेंद्र रावत दिल्ली की दलाल स्ट्रीट में बिकने को नहीं हुए तैयार तो दलालों ने कर दिया शुरू प्रोपोगंडा
राजेंद्र जोशी
देहरादून : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ षडयंत्रकारी वैसे तो पिछले लगभग पौने चार सालों से पूरे एक्शन में नजर आ रहे हैं, बारी-बारी से वह सरकार की सकारात्मक छवि को किस तरह से धूमिल किया जाए, इस कार्य में जुटे हुए हैं। दरअसल उन्हें त्रिवेंद्र सरकार के विकासपरक कई बड़े फैसले हजम नहीं हो रहे। जिसके चलते षडयंत्र करने में उतारू हैं। इस बार बात हो रही है एक न्यूज चैनल के साथ षडयंत्रकारियों की सांठगांठ की। जिसके चलते त्रिवेंद्र सहित भाजपा सरकार की छवि को बदनाम करने की कोशिश की गई लेकिन जनता की समझ में भी यह बात आ चुकी है कि मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ कैसे -कैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। लोगों का मानना है कि आखिर उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों से केवल 275 लोगों से पूछताछ कर मुख्यमंत्री का मिज़ाज़ जानने और पहचानने का यह कौन सा फॉर्मूला है ? वह भी ऐसे में जब वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को तो उत्तराखंड में कुल 46.5% के आसपास ही वोट मिले थे, बाकी विपक्ष सहित अन्य लोगों को मिले।
30 हजार लोगों में उत्तराखंड के आखिर कितने लोग ?
न्यूज चैनल ने अपने सर्वे का आधार देशभर से 30 हजार लोगों से बातचीत बताया है। यहां हम जानना चाहेंगे कि इन 30 हजार लोगों में उत्तराखंड के कितने लोगों से बातचीत हुई। यहां बता दें कि देशभर में त्रिवेंद्र सरकार के साथ ही उत्तराखंड की छवि को गलत बताया गया है, मान लीजिए, सर्वगुण संपन्न कोई नहीं होता है। मगर क्या कुछ चुनिंदा लोग इस राज्य का फैसला करेंगे, या चैनल ने चुन-चुन कर त्रिवेंद्र विरोधियों से ही सवाल जवाब किए जबकि सर्वे में राज्य व सरकार की छवि को गलत बताया गया, इससे यहां की जनता में आक्रोश है, विपक्षियों के कार्यकर्ताओं से बातचीत के आधार पर यह कहना कि त्रिवेंद्र सरकार खराब है, यह बात जनता से लेकर राजनीतिक विशेषज्ञों के गले नहीं उतर रही है।
क्यों पड़ें हैं त्रिवेंद्र सरकार के पीछे षडयंत्रकारी
यहां इस बात को भी अच्छी तरह से समझना होगा कि राज्य की त्रिवेंद्र सरकार की छवि को खराब करने के लिए षडयंत्रकारी क्यों इतना जोर आजमाइश कर रहे हैं। असल में, त्रिवेंद्र सरकार ने अपने शपथ ग्रहण समारोह के बाद से ही राज्य में पारदर्शिता बनाने का जो वायदा किया था, उसे शत प्रतिशत लागू किया हुआ है। त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले तक के मुख्यमंत्री जहां दिल्ली की दलाल स्ट्रीट में बिक जाया करते थे या दलाल टाइप लोग उन्हें वहां बेच देते थे ऐसे में जब त्रिवेंद्र रावत दिल्ली की इस दलाल स्ट्रीट में बिकने को नहीं तैयार हुए तो दलालों ने इस टाइप का प्रोपोगंडा शुरू कर दिया कि मुख्यमंत्री से लोग खुश नहीं हैं लेकिन ऐसे लोग यह बताना भूल गए कि प्रदेश के आम लोग तो खुश हैं लेकिन दलाल टाइप लोग खुश नहीं क्योंकि उनकी दलाली से चलते वाली रोज़ी -रोटी बंद हो गयी है। लेकिन वहीं वर्तमान में राज्य में भ्रष्टाचार को मिटाने का त्रिवेंद्र सरकार का संकल्प पूर्ण हो रहा है। सरकारी कार्यालयों में पूर्ण रूप से पारदर्शिता बरती जाए, इसके लिए ज्यादा बड़े सरकारी कार्यालय ई-आफिस के तहत संचालित किए गए है। अब ऐसे में विपक्षियों और षडयंत्रकारियों को मिर्ची लगना तो लाजिमी है ना।
यह षडयंत्रकारी आखिर हैं कौन ?
त्रिवेंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए अबकी बार षडयंत्रकारियों ने फर्जी सर्वे को आधार बनाया है, राज्य में सरकार के खिलाफ ऐसा गलत माहौल बनाने वाले यहीं के लोग हैं, इन लोगों में ज्यादातर विपक्षी दल है, लेकिन इनके साथ मीडिया का भी एक बहुत बड़ा गठजोड़ साथ है जिसके साथ एक टीवी के कुछ लोगों से लेकर कथित कुछ खबरचिये और उनके साथ कथित भूमाफिया व कुछ भीतर के भी लोग हैं, जिन्हें त्रिवेंद्र सरकार के बढ़ते कद से दिक्कत हो रही हैं, मगर वह इस षडयंत्र में इतने अंधे हो गए हैं, कि वह त्रिवेंद्र सरकार के साथ ही कहीं न कहीं पूरे देश में उत्तराखंड की छवि को भी खराब करने में तूले हैं, मगर यह राज्य की जनता वर्ष 2022 में उन्हें जरूर सबक सिखाएगी और एक बार पुनः त्रिवेंद्र सरकार राज्य में वापसी करेंगी।
1998 में बैन हुआ था एग्जिट पोल
एग्जिट पोल की शुरुआत 1980 में भारतीय मीडिया द्वारा की गई थी। इसी के बाद चुनाव के समय सर्वे आने लगे। दूरदर्शन ने 1996 में एग्जिट पोल शुरु किया था। 1998 में चुनाव आयोग ने ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल पर प्रतिबंध लगा दिया था। हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को रद्द कर दिया। गौरतलब है कि आरपी एक्ट, 1951 का सेक्शन 126 मतदान के पहले एग्जिट पोल सार्वजनिक करने की अनुमति नहीं देता। अंतिम चरण में वोटिंग पूरी होने के आधे घंटे तक एग्जिट पोल शुरू नहीं किए जा सकते। यह पाबंदी प्रकाशन, प्रसारण सभी पर लागू होती है।