- सीबीआई की कार्यशैली पर उठते सवाल !
- सपा, बसपा,भाजपा,कांग्रेस उत्पीड़नकारियों की जमात में खड़े
इन्द्रेश मैखुरी
उत्तराखंड में 2 अक्टूबर हर बार एक टीस की तरह आता है। यह दिन याद दिलाता है कि 1994 में उत्तराखंड राज्य की मांग के लिए दिल्ली जा रहे आन्दोलनकारियों पर उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार ने बर्बर दमन ढाया।प्रशासन और पुलिस के आला अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिसकर्मियों ने हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम दिया।कानून की रक्षा के लिए बनी पुलिस द्वारा स्वयं ही हत्या और बलात्कार जैसे अपराध करने पर उतर आना,अपने आप में एक जघन्यतम कृत्य था। ऐसा क्यूँ किया गया? ऐसा इसलिए किया गया क्यूंकि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को लगा कि उत्तराखंडी,उनके खिलाफ आन्दोलन कर रहे हैं।इसलिए उन्हें सबक सिखाने के लिए सरकारी संरक्षण में ये भयानक अपराध अंजाम दिए गए। कहने को हम लोकतंत्र में रहते हैं, लेकिन अपने खिलाफ उठने वाले किसी भी लोकतान्त्रिक स्वर को कुचलने के लिए हमारे सत्ताधीशों के भीतर बैठा राजतंत्री भूत,अपने क्रूरतम चेहरे के साथ प्रकट होता है।उत्तराखंड आन्दोलनकारी महिला पुरुषों के साथ 2 अक्टूबर 1994 को मुजफ्फरनगर में जो हुआ,वह इस बात की तस्दीक करता है।
मुलायम सिंह यादव ने यह जघन्यतम काण्ड करवाया।लेकिन उनके बाद सत्ता में आने वालों ने कभी भी उस काण्ड के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। बल्कि मुज्फ्फरनगर काण्ड के दोषियों को बचाने में सबने ताकत जरुर लगाई। मुलायम के बाद मुख्यमंत्री बनने वाली मायावती तो मुजफ्फरनगर काण्ड के समय मुलायम के साथ सत्ता में भागीदार थी।उस समय मायावती ने मुजफ्फरनगर में हुए दमन काण्ड को जायज ठहराया था।उत्तर प्रदेश में जब भाजपा की सरकार बनी और राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री हुए तो उन्होंने सी।बी।आई। को मुजफ्फरनगर काण्ड के समय वहां के डी।एम।रहे अनंत कुमार सिंह पर मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया और उनका प्रमोशन करके प्रमुख सचिव बना दिया।इस दौर में केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लगा।कांग्रेसी नेता मोतीलाल वोरा राज्यपाल बनाए गए।वोरा के राज्यपाल रहते,मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा मिलना तो दूर,10 नवम्बर 1995 को श्रीनगर(गढ़वाल) में श्रीयंत्र टापू पर दो और आन्दोलनकारियों-यशोधर बेंजवाल और राजेश रावत की पुलिस द्वारा हत्या की गयी और अन्य आन्दोलनकारियों पर भयानक उत्पीडन किया गया। मुजफ्फरनगर काण्ड के आइने में देखें तो सपा, बसपा,भाजपा,कांग्रेस,सभी उत्पीड़नकारियों की जमात में खड़े नजर आते हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने के 17 साल पूरे होने को हैं।मुजफ्फरनगर काण्ड को घटित हुए 23 साल पूरे हो गए हैं।लेकिन अफसोसनाक बात यह है कि मुजफ्फरनगर काण्ड के दोषियों को सजा मिलने की कोई उम्मीद कहीं नजर नहीं आ रही है। बल्कि मुजफ्फरनगर काण्ड को अंजाम देने वालों के खिलाफ दर्ज मुक़दमे अदालती भूल-भुलय्याओं में धीरे-धीरे दम तोड़ रहे हैं।नवम्बर 2016 में वेब पोर्टल-सत्याग्रह।कॉम पर प्रकाशित युवा पत्रकार राहुल कोटियाल की रिपोर्ट बताती है कि मुजफ्फरनगर काण्ड से जुड़े अधिकाँश मुकदमे या तो खत्म हो चुके हैं या खत्म होने के कगार पर हैं।उत्तराखंड राज्य बनने के बाद भी उन मुकदमों में प्रभावी पैरवी करने और दोषियों को सजा दिलवाने के लिए ठोस पहल करने की जहमत भाजपा-कांग्रेस की किसी सरकार ने नहीं उठायी।
उत्तराखंड आन्दोलन के शहीदों को इन्साफ दिलाने की इस लड़ाई में वर्ष 2003 की एक घटना जरुर उल्लेखनीय है।2003 में जब उत्तराखंड उच्च न्यायालय, नैनीताल ने जब मुजफ्फरनगर काण्ड के आरोपितों में से एक,वहां के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह को बरी करने का फैसला सुनाया तो आन्दोलनकारियों ने 1 सितम्बर 2003 को हाई कोर्ट का घेराव किया।इस घेराव का नतीजा यह हुआ कि उच्च न्यायालय ने अपना फैसला रद्द किया।
हर साल रस्म अदायगी के तौर पर उत्तराखंड की मुख्यमंत्री के पद पर बैठा हुआ व्यक्ति मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर स्थित उत्तराखंड आन्दोलनकारियों के स्मारक पर जाता है।हाथ जोड़ता है,माला चढ़ाता है।लेकिन इनमें से कोई उतराखंड आन्दोलन के दौरान हुए इस जघन्य हत्याकांड के दोषियों को सजा दिलाने के लिए एक कदम तक नहीं उठाता है।
मुजफ्फरनगर काण्ड के संदर्भ में न्याय मिलने में देर ही नहीं हो रही बल्कि एक तरह से न्याय मिलने की उम्मीद क्षीणतम हो चुकी है।यह सिर्फ उत्तराखंड का ही सवाल नहीं है बल्कि मुजफ्फरनगर काण्ड इस देश के लोकतंत्र पर भी लगा हुआ,एक काला धब्बा है।
मुकदमा: 1 बलात्कार के मामले में आरोप तय
मुजफ्फरनगर कोर्ट में सीबीआई की ओर से आरोप पत्र दायर करने के बाद विशेष न्यायाधीश कोर्ट में आईपीसी की धारा 376 (2 जी), 354, 392, 120 बी, 509 में सीबीआई बनाम मिलाप सिंह चल रहा है। मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप आरोपी हैं।
मुकदमा: 2 एक नवंबर को है तारीख
सीबीआई बनाम राधा मोहन द्विवेदी मामले में 13 पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय हो चुके हैं। लेकिन आरोपियों को हाईकोर्ट से स्टे मिल जाने के कारण सुनवाई रुक गई थी। अब स्टे खारिज हो गया है। यह मामला विशेष सीबीआई कोर्ट में चल रहा है। इसमें एक गवाह के बयान भी हो चुके हैं। इस मामले में सुनवाई के अगली तारीख 1 नवंबर 2017 को है।
मुकदमा: 3 आरोप पत्र दायर नहीं
सीबीआई बनाम एसपी मिश्रा मामले में खतौली के तत्कालीन निरीक्षक एसपी मिश्रा पर आरोप है कि रामपुर तिराहे पर पुलिस की गोली में जिन सात लोगों की मौत हुई उनमें से देहरादून निवासी राजेश नेगी के शव को उन्होंने गंगनहर में फेंक दिया। इस मामले में चार्जशीट दायर नहीं हुई। तीन अक्टूबर 2017 को मामले की सुनवाई है।
मुकदमा: 4
सीबीआई बनाम ब्रजकिशोर सिंह। इस मामले में कांधला के तत्कालीन थानाध्यक्ष ब्रजकिशोर सिंह पर आरोप है कि उन्होंने आंदोलनकारियों की तलाशी में हथियारों की फर्जी हथियार बरामदगी दिखाई। मामले में तीन अक्टूबर 2017 की तारीख विशेष मजिस्ट्रेट कोर्ट में लगी है।
मुकदमा: 5 अभियुक्तों की मौत के कारण तीन मुकदमे खत्म
विशेष मजिस्ट्रेट कोर्ट में सीबीआई द्वारा आरोपी बनाए गए तत्कालीन प्रभारी निरीक्षक मोती सिंह, तत्कालीन थानाध्यक्ष राजबीर सिंह और एक अन्य मामले में आरोपियों की मौत होने के कारण यह मामले समाप्त कर दिए गए हैं।
क्या हुआ था 2 अक्तूबर, 1994 को
1. एक अक्टूबर 1994 की रात से दो अक्टूबर की सुबह तक आंदोलनकारियों पर पुलिस का लाठीचार्ज और गोलियां बरसीं।
2. पुलिस ने करीब चार सौ उत्तराखंडी गिरफ्तार कर पुलिस लाइन भेज दिए।
3. गांधी जयंती पर सुबह पुलिस की फायरिंग में सात आंदोलनकारियों की मौत हुई।
4. पुलिस ने लाठीचार्ज और फायरिंग के दौरान खेतों में भाग रही महिलाओं की अस्मत से खिलवाड़ किया। सीबीआई ने जांच में इस बात की पुष्टि हुई। ऐसे दो मामले कोर्ट में चल रहे हैं।