PERSONALITY

कई छवियों  में  नज़र आया एक  बड़ा  राजनेता

  • राजनीतिक कौशल और लंबे प्रशासनिक अनुभव के लिए किये जायेंगे याद

वेद विलास उनियाल 

पंडित नारायण दत्त तिवारी केवल राजनीतिक कौशल और लंबे प्रशासनिक अनुभव के लिए ही याद नहीं किए जाएंगे। उनके व्यक्तित्व के कई आयाम हैं। अगर क्रिकेट में सचिन तेंडुलकर की उपलब्धियां उनके गगनचुंबी आंकड़ों से नजर आती है तो लम्बे राजनीतिक जीवन में एनडी के नाम से जाने गए नारायण दत्त तिवारी की उपलब्धियोंं को भी कई तरह से रेखांकित किया जा सकता है। उन्हें  ज्ञान के मामले में इनसाईक्लोपीडिया तक कहा जाता था ।वह भारतीय राजनीति के ऐसे विरल राजनेता हैं जो केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बाद दो अलग अलग राज्यों के मुख्यमंत्री बने हैं। यही नहीं उप्र में तीन बार मुख्यमंत्री बनने के अलावा  एक बार उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे ।

लंबा प्रशासनिक अऩुभव

केंद्र में योजना, उद्योग  वित्त और विदेश मंत्रालय को संभाल चुके हैं। लेकिन  उनका  परिचय महज इतना भर नहीं।   भारतीय राजनीति में अटलबिहारी वाजपेयी अजातशत्रु कहे गए, लोहिया को धरती पुत्र कहा गया, जयप्रकाश नारायण लोकनायक कहे गए, ऐसे ही तिवारी को जनमानस ने विकासपुत्र कहकर पुकारा। वह ऐसे मांझी रहे हैं, कुशलता से अपनी नौका को हर बार किनारे तक ले गए हैं लेकिन एक  अहम वक्त पर  कश्ती की पतवार  हाथों से वहां  फिसल गई, जहां उन्हें देश का नेतृत्व हाथ में लेना था।  कुशल प्रशासक अच्छे वक्ता,गंभीर अध्यनवेत्ता, काव्य सौंदर्य की समझ, समाज के लिए निरंतर संघर्ष,  राजनीति की लंबी जद्दोजहद, पारंपरिक गीतों के रस में डूबे नारायण दत्त तिवारी का जीवन अपनी विविधताओं में एक  विरल व्यक्तिक्व के रूप में सामने आता है। उनकी कई छवियां हैं।  नारायण दत्त तिवारी को किसी भी रूप में देखिए महसूस कीजिए  वह कुछ अलग नजर आते हैं।

 

आजादी का सिपाई

नैनीताल का बल्यूटी गांव तिवारी के बचपन की यादों को समेटे हैं। लेकिन यह गांव क्या छूटा आगे का सफर फिर रुकने थमने के लिए नहीं था। वन विभाग में काम करने वाले पिता ने देश सेवा के लिए नौकरी छोडी तो घर के बच्चे के मन में इसका असर पडना स्वभाविक था। अच्छा यह रहा कि नारायण दत्त तिवारी ने अपनी जन्मजात मेधा को क्षीण नहीं होने दिया। एक तरफ वह आजादी की लडाई में मशाल जगाते रहे तो दूसरी ओर अध्ययन करते रहे। विरल संयोग था कि जिस जेल में पिता बंद थे , बेटे को भी वहीं लाया गया। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगाए और पांपलेट बांटे तो सख्त सजा हुई। 15 महीेने के कारागार ने जीवन के कई अनुभव दिए। बाद में खास क्षणों में अपने भाषणों में तिवारी  उन गीतों की पंक्तियां भावविभोर होकर सुनाया करते थे, जिन्हें आजादी के दिवानों के साथ जेलों में गाया गया था।  वे एनडी के अनूठे संस्मरण थे। उनकी पूरी सख्यियत को महसूस कर सकते हैं कि उस जमाने में जब उप्र भी नहीं बना था और यह क्षेत्र यूनाइटेड प्रोविंस के नाम से जाना जाता था, युवक तिवारी ने राजनीतिक विचारधारा से ओतप्रोत शहर इलाहबाद में जाकर इलाहबाद विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र से एम ए टाप किया।  इलाहाबाद विश्वविद्यालय उस समय अपनी उच्च श्रेठता को प्राप्त कर चुका था। मेधावी नारायण दत्त तिवारी का यहां आना उनके व्यक्तित्व को निखारने और उनकी आंतरिक  ऊर्जा को निखारने का सबल माध्यम बना।  आगे उनका जीवन लगातार उपलब्धियों के साथ ही रहा। वह नेहरू परिवार के निकट आए। एक समय आल इंडिया स्टूडेंट कांग्रेस के महासचि रहे। हालांकि वह जीवन भर कांग्रेसी रंग में रंगे रहे लेकिन उसके राजनितिक कैरियर की शुरुआत प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से हुई थी।  इसी के टिकट पर वह पहली बार के चुनाव में विधानसभा पहुंचे थे। 

नेहरू-गांधी के दौर के चंद दुर्लभ नेताओं में शुमार

एक समय रूस ने पंडित नेहरू को कुछ समाजवादी चिंतन करने वाले युवाओं को रूस अध्ययन के लिए भेजने का आग्रह किया था। नेहरू ने जो नाम सुझाया था उसमें नारायण दत्त तिवारी का नाम शामिल था।  एनडी तिवारी ने रूस ही नहीं कुछ और पश्चिम मुल्कों की भी यात्रा कर समाजवादी दर्शन को समझा जाना। जब तक वे भारत लौटते अपने विचारों में वह दृढ हो चुके थे। राजनीति में वह इतने गतिवान थे कि अगली बार 1957 में वह सदन में विपक्ष के नेता भी बन गए।  1967 में वह कांग्रेस में एक बार विधिवत शामिल हुए तो जीवन भर अपने को उका अनुशासित सिपाही मानते रहे।  यह उनकी राजनीतिक कौशल और क्षमता थी कि उप्र जैसे बडे राज्य मं वह तीन बार मुख्ममंत्री चुने गए।  उनका अंदाज था कि वह मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए अपने को लोकसेवक कहते थे। फोन पर वार्ता मं भी शायद ही उन्होंने कभी यह कहा हो कि वह सीएम बोल रहे हैं।  वह हमेशा यही कहते थे कि प्रथम सेवक बोल रहा हूं। लोकसभा और राज्य सभा में भी सदस्य के नाते विशद अनुभव लेते रहे।  वह भारत के ऐसे नेता रहे है जिन्हें विदेश, वित्त उद्दोग पेट्रोलियम कई मंत्रालय संभालने का अनुभव रहा है। ये सब दायित्व उन्होंने दक्ष प्रशासक की तरह निभाया। एक समय ऐसा भी आया था जब वह भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे।  नैनीताल के चुनाव में लगभग 800 मतों की हार ने उनकी भाग्यरेखा को पहली बार हताश किया था। यह उनके लिए पराभव का और नरसिंम्हा राव के देश के प्रधानमंत्री बनने का एक दौर था। समय के फेर में उन्होंन कांग्रेस भी छोडी थी और तिवारी कांग्रेस बनाकर चुनौती देने की शैली बनाई थी।  लेकिन वह ज्यादा धार नहीं दे पाए थे। दो साल बाद जब वह वापस कांग्रेस में आए तो  उम्मीद यही थी कि सोनिया गांधी के प्रति वफादारी और कांग्रेस सिपाही का तमगा उन्हें बेहतर स्थिति में लाएगा।  कह नहीं सकते कि किन आशयों के साथ एनडी तिवारी को नए राज्य के पहले चुनाव के बाद बागडौर सौपी गई थी। शायद तिवारी ने अनचाहे यह सत्ता हाथों में  थी।  जिस राजनेता के हाथ प्रधानमंत्री का पद आते आते फिसला हो शायद उत्तराखंड जैसे नए छोटे राज्य का मुखिया बनना उन्हें रास आया हो। लेकिन एक बार वह मुख्यमंत्री बने तो पांच साल शासन चलाया। और अपनी तरह से चलाया। लाल बत्तियों के बांटे जाने के कारण वह सुर्खियों में आया। चुनाव में तिवारी किसी सक्रिय भूमिका में नहीं थे। लेकिन कांग्रेस को सत्ता मिली तो नतृत्व उन्हीं के हाथों सौंपा गया।  चाहे लाल बत्तियां सुर्खियों में रही हो, लेकिन नवेले राज्य के लिए औद्योगिक माहौल बनाने का श्रेय उन्हें ही जाता है।  2007 के चुनाव में काग्रेस की पराजय के बाद तिवारी की राजनीति का लगभग पटाक्षेप भी हो गया था। अब आगे बदलते दौर में कांग्रेस हाइकमान के मन में उनके लिए जो सदभावना रही हो उसने ही शायद उन्हें आंध्र राजभवन तक पहुंचाया हो। लेकिन नियति में अभी वह भी लिखा था जिससे आजादी के सिपाही होने का उद्घोष करने वाले को संताप झेलना था। कथित सेक्स वीडियो के तेलुगू चैनल में दिखाई जाने के बाद  उनके पास सिवा लौटने के कोई रास्ता नहीं था। इससे पहले रोहित ने एनडी के पितृत्व का दावा दायर किया था। और दिल्ली हाईकोर्ट ने उनके रक्त के नमूने संबंधी डिएनए रिपोर्ट सार्वजनिक की थी।  एक राजनेता जिसने राजनीति के मैदान में ऊंचाइयों को छुआ हो, जिसकी मेधा प्रतिभा के सब कायल रहे हो , जिसके पास विशद अनुभव रहा हो,  इस मोड पर नितांत अकेले खडा था।   भारतीय खासकर उत्तर समाज अपने एक बडे प्रभवी नेता का इस तरह ढलता , आभा खोता समय भी देख रहा था।

एनडी के व्यक्तित्व में कई खूबियां एक साथ थी समाई

एनडी के व्यक्तित्व में कई खूबियां एक साथ समाई थी। वह स्मार्ट थे।  किसी लथपथ राजनेता के बजाय सजे संवरे तिवारी को ही लोगों ने अपने बीच पाया। भाषण कला उनके पास थी ही, बीच बीच में कीट्स शैली की कविताओं को उद्त करते थे। अंग्रेजी भाषा का ज्ञान तो था ही , फ्रेच लेटिन साहित्य को भी उन्होंने आत्मसात किया था।  पहाडी गीतों की रसधार में वह कब बह जाए, कब नृत्य करने लगे, कब ताल से ताल मिलाने लगे उनके मन के अलावा कोई नहीं पकड सकता था। यह उनका रसियापन था। वह ढोल हाथ में लेकर हल्की हल्की थाप  से फाग  भी सुना लेते थे, पूर्व में कहीं होते तो कजरी चेती गाते। वह विशुद्ध राजनेता थे मगर गीत सगीत नके जीवन में भरपूर था। लोकजीवन के रंग वह बखूबी समझते थे। और कहीं फिल्मी गीत की चाहत हो तो सधे सुर में  बहारों फूल बरसांओ जैसा गीत भी गा सकते थे। ये सब तराने गीत, लोकगीत  में वह भीगे हुए थे।

 

अपने जीवन में हमेशा सुर्खियों में रहे एनडी तिवारी

एनडी तिवारी अपने जीवन में हमेशा सुर्खियों में रहे। जनता पार्टी बनी थी तो हेमवती नंदन बहुगुणा अपनी सभाओं में कहा करते थे कि नारायण दत्तजी हमेशा कहते थे तुम राम हो मं आपका अनुज लक्ष्मण ।  लक्ष्मण अपने भाई की सेवा के लिए उनके साथ वन गया था। लेकिन यह अनुज कब मुझे छोड गया पता हीं नहीं चला।  सियासत में अक्सर इस बात का भी जिक्र किया जाता है कि एक समय बहुगुणा  इंदिराजी से कह रहे थे कि उप्र में लगभग सारे विधायक उनके साथ है  उनके प्रति आस्था रखते हैं। तब इंदिराजी ने पूछा था कि क्या वह कुछ विधायकों का नाम ले सकते थे। बहुगुणा ने एनडी का नाम सबसे पहले लिया तो इंदिराजी ने एक पत्र दिखाया जो उनके असंतुष्टो का था जिसमें ऊपर एनडी तिवारी का नाम और हत्साक्षर थे। शायद यही उनके मन में कसक थी। एनडी तिवारी और एनएन बहुगुणा अपने समय के पहाडों से निकले दो कद्दावर नेता थे। बहुगुणा जहां बहुत मुखर थे तिवारी जी संयत।  बहुगुणा महत्वाकांक्षी थे मगर तिवारीजी की शैली अऩुगामी वाली थी। एक समय जब वह इंदिरा कांग्रेस बनाने के लिए कांग्रेस से अलग हुए थे तब भी उनमें किसी तरह का प्रबल आवेग नहीं था। वह कहीं न कहीं गांधी परिवार के प्रति निष्ठा बनाए रखने का एक प्रदर्शन था। जैसे ही राव के हाथ से कांग्रेस छिटकी  एनडी भी वापस आ गए। बहुगुणा ने राजनीति के जोखिम भी लिए। एनडी तिवारी ने बहुत सहजता से अपने मोहरो को चला।  लेकिन राजनीति के कुशल पांसो को फेरने मे बहुगुणा जहां कुछ जगहों पर चूक कर गए  एनडी  तिवारी अपनी नैया बखूबी खैते रहे। नैनीताल का चुनाव न हारा होता तो वह शीर्ष पर पहुंच गए थे। यह भी है कि तिवारी को बहुगुणा की तुलना में वक्त ज्यादा मिला। चुनावी रणनीतियों में बहुगुणा से तिवारी किसी तरह कम नहीं थे। वह अपनी चालों को बखूबी चलते रहे।

बहुगुणाजी  की राजनीति में  ऊंचे नीचे अवसर आते रहे। झंझावात चलते रहे लेकिन निजी जीवन की उनकी चर्चाएं  उस तरह सुर्खियों में नहीं रही जैसे कभी एनडी तिवारी की रही।  बहुगुणा का राजनीति में पराभव उनके अपने कुछ फैसले और कुछ समय था । लेकिन तिवारी ने एक तरह से उत्तराखंड में मुख्यमंत्री बनने को राजनीति का अंतिम अवसर ही मान कर पार्टी ही नहीं विपक्ष को भी उपकृत करना शुरू कर दिया था। हर रोज बंटती लाल बत्ती के साथ वह जा रहे थे कि वह राज्य में कांग्रेस के पराभव  की कहानी लिख रहे हैं।

जब कांग्रेस ने झाड़ा पल्ला तो मुलायम ने लगाया गले 

लेकिन उन्हें इसकी चिंता नहीं थी। उनके सामने उम्मीद थी तो यही कि किसी क्षण कांग्रेस हाइकमान उनकी योग्यता अनुभव सूझबूझ की कद्र करते हुए शायद कोई बडा अवसर उनके लिए बनाए। लेकिन सोनिया गांधी उनके लिए जो अवसर बना सकती थी बना चुकी थी।  उनके मनमाने आचरण में कांग्रेस अपना आधार खोती चली जा रही थी। हालाकि इस दौर में उन्होन  निर्द्वंद शासन किया। विपक्ष को मित्र विपक्ष कहा जा रहा था। मुहावरा चल पडा था कि तिवारी जिसकी पीठ पर हाथ लगा दें वह रीढ विहीन हो जाता है। पांच साल विपक्ष इसी हालात में चला।   आगे उन्हें आंध्र राजभवन भेजा जाना  कांग्रेस सिपाही होने का पारितोषण ही था। वरना इसके लिए भी कांग्रेस हाइकमान के पास उदार होने की कोई वजह नहीं थी। एक बार  आंध्र भवन में उनके पदचापों में कहीं भारत के उपराष्ट्रपति बनने की संभावना किसी हद तक परवान चढती उससे पहले आंध्र राजभवन के कथित वीडियो ने भूचाल ला दिया। कांग्रेस के पास उनसे पल्ला झाडने के सिवा कोई रास्ता नहीं था। तब भी राजनीतिक हाशिए में जाने पर भी उन्हें सपा मुखिया ने जिस तरह सभाला उससे गुमनामी नहीं हुई।  हमेशा सुर्खियों में रहने वाले तिवारी के जीवन की उस बेला गुमसुम कैसे होती। मुलायम ने उन्हें संभाल लिया। वह भी सपा और समाजवादी धारणा की मुक्त प्रशंसा करते रहे। उत्तराखंड में हरीश रावत के हाथ कमान आने पर सुगबुगाहट होतीरही कि एनडी अपने प्रभाव से  कांग्रेस को अपने अस्तित्व का आभास करा सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। तिवारी के प्रति आस्था रखने वाले कांग्रेसी भी अब उनका चूका हुआ समय को बखूबी महसूस कर रहे थे। तिवारी ने कहीं ऐसा संकेत भी नहीं दिया कि वह किसी राजनीतिक प्रराक्रम के लिए फिर से निकले हैं। यह जरूर था कि 2012 में जब कांग्रेस को एक सीट की बढत मिलने के बाद हरीश रावत की जगह विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया तो मंच पर एनडी की प्रसन्न मुद्रा साफ झलक रही थी। आशीर्वाद के तौर पर  विजय बहुगुणा के माथे पर हाथ भी फेरा था।

रंगीन मिजाजी किस्म के नेता भी माने गए

किस्सों में रहे तिवारी  जब अचानक गायब हुए थे तो खोज खबर के साथ तहलका भी मच गया था।  बाद में वह गेस्ट हाउस से बाहर आते देखे गए। उनको लेकर कई बाते हवाओं में उडती थी, मसलन वह सोने का सिक्का बनती दाल में डलवाते हैं। यह भी उन्हें देखकर आने वाल कहते थे कि तिवारीजी को सजने संवरने का खास शौक रहा। तमाम तरह के  सौंदर्य प्रसाधन उनके कक्ष में देखे जाते थे।  वे रंगीन मिजाजी किस्म के नेता भी माने गए। उनकी छवि को लेकर गीत भी बने।   लेकिन प्रशासनिक अनुभव कुशलता और राजनीतिक दक्षता को भी लोग स्वीकारते रहे। चाहे कैसे भी गलियारों से वह गुजरे हों  लेकिन एक बात जरूर कही जाती रही कि एनडी ने  भी सामंती शैली में पद खैरात जरूर बांटे हो लेकिन निजी तौर पर वह भ्रष्टाचार के लिए नहीं जाने गए। उनकी योग्यता क्षमता का लाभ देश को मिलता रहा।

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