पार्टी के बाहर के विपक्ष को साधने से ज्यादा पार्टी के भीतर के विपक्ष को साधने की होगी उनके सामने है चुनौती
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के पद पर तीरथ की ताजपोशी किसी काँटों भरे ताज़ से कम नहीं कही जा सकती है। यानी उनका सफर कोई आसान भी नहीं है। पार्टी के बाहर के विपक्ष को साधने से ज्यादा पार्टी के भीतर के विपक्ष को साधने की चुनौती उनके सामने है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की कड़क छवि से अलग तीरथ की सीधे-सरल और विनम्र व्यक्ति की छवि रही है। लिहाज़ा वे अपनी छवि में अनुरूप ही कार्य करेंगे लेकिन उन्हें कई और भी चुनौतियों से दो-चार होना होगा। पार्टी के वरिष्ठ कार्यकताओं और नेताओं के साथ तालमेल बहुत जरूरी होगा। जनता के भरोसे के साथ ही गढ़वाल-कुमाऊं फैक्टर सहित ठाकुर -ब्राह्मण वाद से भी लड़ना होगा। तीरथ कार्यक्राल के हिसाब से 10 वें मुख्यमंत्री हैं जबकि चेहरे के हिसाब से वह उत्तराखंड के नौवें मुख्यमंत्री हैं। तीरथ को चुनौतियों से निटने के साथ ही पार्टी हाईकमान की उम्मीदों पर खरा उतरना होगा। आइये जानते हैं उनके सामने कौन-कौन सी चुनौतियां हैं जिनसे उन्हें पार पाना है :-
उपचुनाव में हासिल करनी होगी जीत की चुनौती : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही तीरथ सिंह रावत को सांसद की कुर्सी छोड़नी होगी। ऐसे में उनके लिए अब विधानसभा सीट को तलाशना भी जरूरी हो गया है। हालांकि अभी उन्हें जीना की मृत्यु के बाद खाली हुई सल्ट विधानसभा सीट जितने की पहली चुनौती है। कयास लगाए जा रहे थे वे सतपाल महाराज वाली चौबट्टाखाल वाली सीट से उपचुनाव लड़ेंगे लेकिन महाराज ने सीट खाली करने से साफ़ मना करा दिया है। अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा में पहुँचने की होगी कि आखिर वे कहाँ से जीतकर विधानसभा तक पहुँचते हैं यह देखना होगा। वहीं उनके सामने खाली होने वाली गढ़वाल लोकसभा सीट को जीतने की भी होगी। जबकि इस सब चुनावों के बाद ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। यह चुनाव भी तीरथ की परीक्षा होंगे यानि तीरथ को तीन-तीन चुनावों से पार पाना होगा।
सफल कुंभ मेला संपन्न कराने की चुनौती : उत्तराखंड की पहचान माना जाने वाले कुंभ मेला सीएम की पहली चुनौती है। महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर पहला शाही स्नान शुरू हो रहा है। ऐसे में श्रद्धालुओं को मैनेज करने के साथ ही सफल कुंभ करवाना किसी चुनौती से ऍम नहीं होगा। कोरोना माहमारी की वजह से इस बार कुंभ समय सीमा को सीमित किया गया था जिसे अब पूरी तरह खोल दिया गया है ऐसे में श्रद्धालुओं को नियंत्रित करने की सबसे बड़ी चुनौती आ खड़ी हुई है।
पार्टी के बाहर और अंदर समन्वय की चुनौती : मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के सामने सबसे बड़ी चुनाैती पार्टी के भीतर का गुटों को साधने की चुनौती होगी। भाजपा हाईकमान के साथ ही प्रदेश पदाधिकारियों , कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय स्थापित करना होगा। त्रिवेंद्र रावत शासनकाल में जानबूझकर उदासीन रहे भाजपा संगठन को सक्रिय करना पहली चुनौती होगी। क्योकि सरकार के कार्यों को जन-जन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी पार्टी कार्यकर्ताओ की होती है ऐसे में अंदरखाने हाईकमान से नाराज चल रहे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को समझाकर शांत कराना होगा ताकि आगामी विधानसभा चुनाव में सभी एक टीम की तरह कार्य करें।
कैबिनेट विस्तार सबसे बड़ी चुनौती : मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को कैबिनेट मंत्रियों के कार्यकाल का परीक्षण और उनकी कार्यप्रणाली का अध्ययन करने के बाद ही नई टीम का चयन चुनौती होगा। जबकि उनके सामने पिछले चार सालों से मंत्री बनने के सपने देख रहे विधायकों को एडस्ट करना और कुछ नकारे मंत्रियों को किनारे करने की चुनौती होगी।
चारधाम यात्रा के सफलता की चुनौती : चारधाम से उत्तराखंड की पहचान है और कुंभ के समाप्त होने के तुरंत बाद ही प्रदेश में चारधाम यात्रा शुरू हो जाएगी। देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी चारधाम यात्रा में हर साल लाखों की तादात में श्रद्धालु उत्तराखंड आते हैं। यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा सरकार के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रहा है। तीरथ के सामने चुनौती होगा कि वो चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं को बेहतर कर सकें। पिछले साल कोरोना माहमारी की वजह से चारधाम यात्रा पूरी तरह से ठप हो गई थी, जिससें सरकार सहित लोकल स्तर पर भी ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। तीरथ रावत को हरहाल में 2021 में चारधाम यात्रा किसी चुनौती से कम नहीं होगी।
बेलगाम ब्यूरोक्रेटस पर लगाम लगाने की चुनौती : प्रदेश में नौकरशाही शुरू से ही बेलगाम रही है और यह कमोवेश सभी मुख्यमंत्रियों ने झेला भी है सिर्फ स्व. पंडित नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल के। सूबे के विधायकों ने राज्य गठन से लेकर अब तक कई बार नौकरशाही के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और सरकार तक को चेतावनी तक दे डाली थी। इतना ही नहीं तिवारी सरकार के दौरान से अब तक तो कुछ एक नौकरशाहों से विधायकों की जमकर तू-तू-मैं -मैं तक हुई है। उन्हें इन बेकाबू नौकरशाहों पर काबू पाते हुए अपने प्रशासनिक क्षमता के परिचय देने की चुनौती सबसे बड़ी चुनौती होगी।
भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की चुनौती : भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नारा भाजपा सरकार का रहा है और त्रिवेंद्र सरकार ने इस पर काफी कुछ हद तक काबू भी पा लिया था, हालांकि विपक्ष की नज़र में जीरो टॉलरेंस पूरी तरह नहीं हुआ। लेकिन अब तीरथ के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती होगी , क्योंकि मुख्यमंत्री चयन प्रक्रिया के दौरान कई माफियाओं और भ्रष्टाचारियों की नज़र उत्तराखंड की तरफ लगी थी और चार साल से अन्य प्रदेशों में शरण लिए हुए ऐसे लोग सत्ता बदलते ही उत्तराखंड की तरफ रुख करने वाले थे लेकिन तीरथ का नाम आते ही उनके कदम ठिठक गए। नए मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती ऐसे लोगों को उत्तराखंड से बाहर रखने की होगी। उन्हें भ्रष्टाचार और कुशासन के प्रति रहे सख्त त्रिवेंद्र सिंह रावत की तरह सख्त रूख को और भी ज्यादा सख्त करना होगा।
आपदा प्रबंधन भी किसी चुनौती से कम नहीं : आपदा के लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड में मानसून सीजन में आपदाएं और ज्यादा हो जाती हैं ,अभी हाल में बिना मानसून के चमोली में रैणी-तपोवन में बड़ी आपदा यह प्रदेश देख चुका है पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने काफी हद तक जनहानि को बचाया। लेकिन अब मानसून सीजन में भूस्खलन, अतिवृष्टि की वजह से हर साल जान-माल का काफी नुकसान होता रहा है। मानसून सीजन में आपदाओं से निपटने के लिए अभी से तीरथ रावत को ठोस व्यवस्थाके इंतज़ामात करने होंगे।