UTTARAKHAND

“घर का रास्ता”भूल परलोक गमन कर गए मंगलेश डबराल

नहीं रहे कवि, साहित्यकार और पत्रकार मंगलेश डबराल

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जताया शोक 

मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता, हिंदी भाषा के प्रख्यात लेखक, कवि और पत्रकार श्री मंगलेश डबराल के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने श्री मंगलेश डबराल के निधन को हिन्दी साहित्य को एक बङी क्षति बताते हुये  दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतप्त परिवार जनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है। 
नई दिल्ली। कोरोना वायरस से संक्रमित वरिष्ठ कवि और पत्रकार मंगलेश डबराल का बुधवार को निधन हो गया। उन्हें गाजियाबाद के वसुंधरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंगलेश डबराल (16 मई, 1948 – 09 दिसम्बर, 2020) समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। जनसंस्कृति मंच से जुड़े और उनके नजदीकी रहे संजय जोशी ने बताया, वह पिछले कुछ दिनों से गाजियाबाद के वसुंधरा स्थित एक निजी अस्पताल में भर्ती थे और हालत बिगड़ने के बाद उन्हें उपचार के लिए एम्स में भर्ती कराया गया था।
एम्स में मेडिसिन के डॉक्टर उनका इलाज कर रहे थे। उनको निमोनिया और सांस लेने में तकलीफ थी। करीब 12 दिन पहले उन्होंने एम्स भर्ती कराया गया था। 
दिल्ली में उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में काम किया। उनकी कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ्रांसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन करते थे।
मंगलेश डबराल को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिल चुका था। उनका जन्म 16 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड के काफलपानी गांव में हुआ था। इसके बाद, उनकी शिक्षा देहरादून में हुई। मंगलेश डबराल (16 मई, 1948 – 09 दिसम्बर, 2020) समकालीन हिन्दी कवियों में सबसे चर्चित नाम थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा देहरादून में हुई। दिल्ली में उन्होंने विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में काम किया। उनकी कविताओं के भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन, डच, स्पेनिश, पुर्तगाली, इतालवी, फ्रांसीसी, पोलिश और बुल्गारियाई भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं। कविता के अतिरिक्त वे साहित्य, सिनेमा, संचार माध्यम और संस्कृति के विषयों पर नियमित लेखन करते थे।
आज के समय हिन्दी के स्थापित कवियों में एक, मंगलेश डबराल, कभी 1977 में अमृत प्रभात के शुरू के समय ही वरिष्ठ उप संपादक के रूप में इलाहाबाद आ गये थे और स्वतंत्र रूप से अखबार के साहित्य-संस्कृति पृष्ठ को अपनी कल्पना के अनुरूप सजा-सवाँर रहे थे। अमृत प्रभात का प्रकाशन लखनऊ से भी शुरू हो जाने पर वह भी लखनऊ चले गये और लगभग तीन साल तक वहीं रहे।
मंगलेश डबराल जनसत्ता के साहित्य संपादक भी रह चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने कुछ समय तक लखनऊ से प्रकाशित होने वाले अमृत प्रभात में भी नौकरी की। इस समय वे नेशनल बुक ट्रस्ट से जुड़े हुए थे।
डबराल जी के लिए लखनऊ शायद छोटा पड़ रहा था। 1983 में वह दिल्ली जनसत्ता में सहायक संपादक होकर चले गये। वहाँ भी वह अखबार का साहित्य-संस्कृति पृष्ठ ही देखते रहे। जनसत्ता उन्हें काफी रास आ गया। लगभग 23 वर्ष की सेवा के बाद 2006 में उन्होंने वरिष्ठ सहायक संपादक के पद से अवकाश ग्रहण कर लिया।
स्वभाव से बहुत ही नम्र लेकिन अपनी सोच और विचारों से दृढ़ रहने वाले डबराल जी पत्रकारिता के साथ-साथ अपने कवि-कर्म को भी बखूबी निभाते रहे। दिल्ली में रहते हुए वहाँ के साहित्यिक क्षेत्र में वह तेजी से चर्चित होते गये।
जनसत्ता से अवकाश ग्रहण करने के बाद, डबराल जी सहारा ग्रुप के ‘ सहारा समय ‘ साप्ताहिक में कार्यकारी संपादक के रूप में आ गये और दो साल तक इस साप्ताहिक को काफी ऊँचाई तक ले गये। बाद में लगभग छह वर्ष तक उन्होंने ‘नेशनल बुक ट्रस्ट‘ में सलाहकार के रूप में अपनी सेवा दी। वर्तमान में डबराल जी वामपंथी विचारधारा के पाक्षिक ‘पब्लिक एजेंडा‘ से जुड़े हुए हैं।
अमृत प्रभात के सहकर्मियों के लिए सचमुच यह गौरव की बात है कि डबराल जी के अबतक छह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से ‘ हम जो देखते हैं ‘ संग्रह को 2000 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिल चुका है। शेष संग्रह हैं – ‘पहाड़ पर लालटेन‘, ‘घर का रास्ता‘, ‘आवाज भी एक जगह है‘, ‘नये युग के शत्रु‘ और ‘स्मृति एक दूसरा समय है’। इनकी गद्य की भी पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

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