विभिन्न विभागों को मनरेगा से जोड़कर पलायन प्रभावित गांवों में तमाम योजनाएं होंगी संचालित
खेती को लाभकारी बनाने की कसरत चल रही तो स्थानीय उत्पादों के विपणन पर भी फोकस
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड में गांवों से निरंतर हो रहा पलायन एक बड़ी समस्या के रूप में उभरकर सामने आया है। अब जबकि पलायन और इसके कारणों के बारे में स्थिति साफ हो चुकी है तो असल चुनौती इसे थामने के लिए कारगर कदम उठाए जाने की है। हालांकि मौजूदा सरकार ने पलायन को रोकने के लिए खाका तैयार कर लिया है और अब तक किए गए प्रयास सुखद अनूभूति भी करा रहे हैं, लेकिन असली मकसद तो तभी पूरा हो पाएगा, जब सरकार की मुहिम जमीन पर नजर आएगी। असल में अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से सटे उत्तराखंड के गांवों से मजबूरी का पलायन अधिक है।
उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग की रिपोर्ट इसकी तस्दीक करती है। रिपोर्ट पर गौर करें तो मूलभूत सुविधाओं और रोजगार के अभाव को देखते हुए बेहतर भविष्य की तलाश में लोग पलायन कर रहे हैं। पलायन की भयावहता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि प्रदेशभर में अब तक 1700 से ज्यादा गांव वीरान हो चुके हैं। ऐसे गांवों की संख्या भी कम नहीं है, जिनमें लोगों की संख्या अंगुलियों में गिनने लायक ही रह गई है। सरकार ने पलायन की चिंताजनक स्थिति को समझा और पलायन आयोग के साथ ही विभागों के सहयोग से पलायन थामने की कार्ययोजना को करीब-करीब अंतिम रूप दे दिया है। इसके तहत विभिन्न विभागों को मनरेगा से जोड़कर पलायन प्रभावित गांवों में तमाम योजनाएं संचालित की जाएंगी।
रोजगार के अवसर सृजित करने के लिए कौशल विकास कार्यक्रम तय किए गए हैं। खेती को लाभकारी बनाने की कसरत चल रही तो स्थानीय उत्पादों के विपणन पर फोकस किया जा रहा है। न्याय पंचायत स्तर पर ग्रोथ सेंटर की अवधारणा को धरातल पर उतारने को कदम बढ़ रहे हैं। सर्वाधिक पलायनग्रस्त 245 गांवों में पलायन थामने के मद्देनजर विशेष कार्ययोजना तैयार की गई है, जो एक अप्रैल से लागू होगी। शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत सुविधाओं के विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित करने की बात कही गई है तो रिवर्स पलायन के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के प्रयासों के सकारात्मक परिणाम नजर आए हैं।
निश्चित रूप से सरकार के ये प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए किंतु-परंतु भी कम नहीं। पलायन थामने की योजनाएं मुकाम तक पहुंचें, इसके लिए गंभीरता से कदम उठाने होंगे। योजनाओं की निगरानी की पुख्ता व्यवस्था जरूरी है।