Science & Technology

बच्चों में दृष्टिबाधिता को मिटाने के लिए संकल्पबद्ध डॉ.सवलीन कौर

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की डब्ल्यूओएस-ए-योजना बनी वरदान

एक समय बेरोजगार बैठीं डॉ. सवलीन को डीएसटी ने दिया सुनहरा अवसर

प्रतिभाशाली लोगों को प्रौद्योगिकी तंत्र से बाहर जाने से रोकती है डीएसटी की योजना

चंडीगढ़ की डॉ. सवलीन कौर पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ में नेत्र विज्ञान की तृतीयक स्वास्थ्य सेवा इकाई में कार्यरत थीं। उन्हें न तो वेतन मिलता था और न ही यह उनकी पूर्णकालिक नौकरी थी, लेकिन उनके पास केवल शोध कार्य करने की अदम्य इच्छा थी।

डॉ. सवलीन कौर

एक मार्च, 2019 की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) की डब्ल्यूओएस-ए योजना उनके जीवन में वरदान की तरह आई, जो उनके जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव साबित हुई। यह योजना बेसिक या एप्लाइड साइंसेस में शोध करने के लिए महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को मंच उपलब्ध कराती है और उन्हें बेंच-लेवल वैज्ञानिकों के रूप में कार्य करने का अवसर प्रदान करती है।

यह योजना महिलाओं को मुख्य धारा में लाने और प्रशिक्षण प्रदान करने व महिलाओं को व्यवस्था से जोड़े रखने तथा प्रतिभाशाली लोगों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी तंत्र से बाहर जाने से रोकने में प्रमुख भूमिका निभाती है। इसके अंतर्गत पांच विषयों में सहायता उपलब्ध है- भौतिक एवं गणित विज्ञान (पीएमएस), रसायन विज्ञान (सीएस), जीव विज्ञान (एलएस), पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान (ईएएस) और अभियांत्रिकी प्रौद्योगिकी (ईटी)। डॉ. सवलीन ने मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली से नेत्र विज्ञान में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की थी। विवाह के बाद वह चंडीगढ़ चली गईं।

साल भर इंतजार करने के बाद पीजीआई के साथ सीनियर रेजीडेंट के रूप में जुड़ गईं और उसके बाद पीजीआई के साथ रिसर्च एसोसिएट के रूप में जुड़ी रहीं। एक समय ऐसा आया, जब वह घर पर बेरोजगार बैठी थीं और सोच रही थीं कि क्या वह कभी अपने क्षेत्र में आगे बढ़ पाएंगी।

डीएसटी ने उन्‍हें न केवल अपने शोध को प्रस्तुत करने के लिए मंच दिया, बल्कि उन्‍हें अपने पसंदीदा मेंटर के मार्गदर्शन में देश के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में से एक में काम करने का अवसर भी दिया। डॉ. कौर कहती हैं, ” मैं अपने लिए खड़े होने की जगह तलाश रही थी। मुझे अपने काम के बारे में दुनिया को बताने के लिए एक मौके की तलाश थी और जब यह मौका मिला, तो मुझे बेहद खुशी हुई। मैं देश के उन सात लोगों में से थी, जिन्होंने जीव विज्ञान में ऐसा अवसर प्राप्त किया और इसके साथ ही सारी परेशानियां दूर हो गईं। मैंने अपने परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी के कारण कार्य से लंबा विराम लिया था। इस योजना ने मुझे पूरी ताकत के साथ वापस ला खड़ा किया।”

“मैंने अपने विषय का गहन ज्ञान प्राप्‍त करने के लिए कड़ी मेहनत की। मुझे भरोसा था और मैं अपने कार्य को सही साबित कर सकती थी। पीजीआईएमईआर में नेत्र रोग विभाग के पूर्व एचओडी, मेरे मेंटर डॉ. आमोद गुप्ता और डॉ. मंगत डोगरा, वर्तमान निदेशक और विभागाध्यक्ष डॉ. जगत राम और उसी विभाग में एडिशनल प्रोफेसर डॉ. जसप्रीत सुखीजा के मार्गदर्शन को मैं भूल नहीं सकती, जिन्‍होंने मुझे कड़ी मेहनत करने और लक्ष्‍य ऊंचा रखने की सीख दी। मेरे पति और ससुराल वालों का समर्थन भी अनमोल रहा।”

उन्होंने कहा कि करियर में विराम के बाद मुख्यधारा के विज्ञान में लौटने की इच्छा रखने वाली महिलाओं को कभी हार नहीं माननी चाहिए। उन्होंने कहा, “दृढ़ता और अटलता का फल जरूर मिलता है। हमें भगवान और खुद पर भरोसा रखना चाहिए। कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि परिवार हमें पीछे धकेल रहा है। यह आपको मजबूत बना रहा होता है। इस तरह की योजनाओं के लिए सजग रहना चाहिए।‘’ अब वह स्थायी नौकरी में हैं।

डॉ. कौर अपने शोध कार्य का विस्तार करने की उत्सुक हैं। देश में केवल मुट्ठी भर समर्पित बाल नेत्ररोग विशेषज्ञ हैं और वह इस अंतर को भरना चाहती हैं और इस शोध को भारत में बच्‍चों में दृष्टिबाधिता को खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ाना चाहती हैं। डॉ. कौर ने बताया, “डब्ल्यूओएस-ए योजना ने मुझे बाल नेत्र विज्ञान के क्षेत्र में शिक्षा, ज्ञान और अनुसंधान को आगे बढ़ाने का अवसर दिया। मैं इस उप-विशेषज्ञता में अनुसंधान का विस्तार करना चाहती हूं और इस क्षेत्र में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए दूसरों को भी शिक्षित और प्रेरित करना चाहती हूं।”

उन्‍होंने जोर देकर कहा, “वैज्ञानिक करियर में महिलाएं दुश्मन के इलाके में मौजूद सैनिकों की तरह होती हैं। जहां से आप आईं हैं, वहां लौट नहीं सकतीं और आपको विपरीत परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। अपना ध्यान और अपना विश्वास बनाए रखें। खुद पर और अपने प्रशिक्षण पर विश्वास करें। किस्मत उन लोगों का साथ देती है, जो उसके लिए तत्‍पर होते हैं!” (PIB)

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