UTTARAKHAND

CAT ने किया सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबन्ध का किया समर्थन

कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (CAT) का समर्थन 

प्लास्टिक इंडस्ट्री के पुनर्स्थापन की तुरंत नीति बनाये सरकार 

” सिंगल यूज़ प्लास्टिक को ना  ” कैट जन आंदोलन बनाने के लिए पूरी तरह तैयार

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

नई दिल्ली : प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा सिंगल यूज़ प्लास्टिक को प्रयुक्त न करने के स्पष्ट आह्वान जो प्रधानमंत्री द्वारा लगातार राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों इसकी जोरदार वकालत किये जाने से यह मुद्दा प्रधानमंत्री सरकार की प्रतिबध्दता और गंभीरता को दर्शाता है जिसको देखते हुए कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने एक सितम्बर से देश भर में व्यापारियों के बीच ” सिंगल यूज़ प्लास्टिक को ना  ” का एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू किया है और कैट इसे एक जन आंदोलन बनाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं ।

कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी सी भरतिया एवं राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खंडेलवाल ने कहा की हालांकि, देश में बड़ी संख्या में विनिर्माण इकाइयां हैं जो प्लास्टिक का उत्पादन करती हैं और देश के लाखों लोगों को रोजगार देती हैं। इसलिए प्लास्टिक निर्माण और ट्रेडिंग इकाइयों को बंद करने और लाखों लोगों को बेरोजगार करने के बजाय, उन्हें विकल्प तैयार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए! प्लास्टिक उपयोगकर्ताओं को संभव विकल्पों को दिया जाना चाहिए, जो महंगे नहीं हों और इन विकल्पों के बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी हैं। पैकेजिंग विकल्पों पर काम करने के लिए उद्योग को आरएंडडी पर काम करने के लिए प्रोत्साहित दिया जाना चाहिए ! उन्होंने यह भी कहा की पर्यवरण मंत्री श्री प्रकाश जावेड़कर को अविलम्ब उद्योग और व्यापार की एक मीटिंग इस मुद्दे पर बुलानी चाहिए !

उन्होंने कहा की बहुराष्ट्रीय कंपनियां और कॉर्पोरेट कंपनियां बड़े पैमाने पर अपनी प्रोडक्शन लाइन में अथवा तैयार माल में पैकिंग के रूप में उपयोग करती हैं ! सरकार तुरंत इन कंपनियों को आदेशित करे की वो सिंगल यूज़ प्लास्टिक का इस्तेमाल तुरंत प्रभाव से बंद करे !

श्री भरतिया एवं श्री खंडेलवाल ने कहा की केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और अन्य संस्थानों के एक अध्ययन के अनुसार, प्रति दिन लगभग 26 मीट्रिक टन प्लास्टिक उत्पन्न होता है, जिसका वजन 9000 हाथियों या 86 बोइंग जेट 747 के बराबर होता है, जो काफी खतरनाक है। इसमें से लगभग 11 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा हो जाता है । रिपोर्ट के अनुसार, 60 शहरों से 1/6 प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है और जिसका आधा हिस्सा पांच महानगरीय शहरों दिल्ली, मुंबई, बंग्लौर, चेन्नई और कोलकाता से उत्पन्न होता है। प्लास्टिक के कचरे समुद्र या जमीन पर जमा हो जाता है जो प्राकृतिक वातावरण के लिए बेहद खतरनाक है । इतना ही नहीं प्लास्टिक कचरा जल निकासी को अवरूद्ध करता है और नदी , मिट्टी, पशुओं द्वारा खाने से , तथा समुद्री इको सिस्टम आदि को विशेष रूप से ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में ज्यादा प्रदूषण फैलता है ! प्लास्टिक कचरे को जलाने से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है ! प्लास्टिक कचरे का हिस्सा दिल्ली के ठोस कचरा प्रबंधन का लगभग 8% है और यही स्तिथि कोलकाता और अहमदाबाद की है । यह गंभीर चिंता है कि कुल प्लास्टिक उत्पादन का केवल 60% पुनर्नवीनीकरण होता है और बाकी 40% कचरे के रूप में पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हैं जो बेहद चिंताजनक है !

उन्होंने यह भी कहा की प्लास्टिक के उपयोग में पैकेजिंग का 43% हिस्सा है, इसके बाद इंफ्रास्ट्रक्चर में 21%, ऑटो सेक्टर में 16%, कृषि में 2% और अन्य स्रोतों से 18% है। घरों में अधिकतम प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है जिसमें उपयोग में लाई गई पानी और शीतल पेय की बोतलों का बड़ा हिस्सा है । लगभग 43% निर्मित प्लास्टिक का उपयोग पैकेजिंग के लिए किया जाता है और उनमें से अधिकांश एकल उपयोग हैं। देश में प्लास्टिक की औसत प्रति व्यक्ति खपत लगभग 11 किलोग्राम है, जबकि वैश्विक औसत 28 किलोग्राम और अमरीका में 109 किलोग्राम है। यह एक चिंता का विषय है कि मुंबई, कोलकाता और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास समुद्र दुनिया के सबसे खराब प्रदूषित समुद्रों में से हैं। 2050 तक, दुनिया भर में समुद्र और महासागरों में प्लास्टिक का वजन मछलियों के वजन से अधिक हो जाएगा । इतना ही नहीं समुद्री तटों से प्लास्टिक कचरे से बरामद तांबा, सीसा, जस्ता और कैडमियम जैसी जहरीली धातुओं की बड़ी मात्रा पर समुद्र तटएवं उसके आस पास के क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार,देश में प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग द्वारा 2012 में 13.4 मीट्रिक टन से 2020 तक 22 मिलियन टन प्रति वर्ष उत्पादन करने का अनुमान है, इस उत्पादन का आधा हिस्सा प्लास्टिक का उपयोग है।

श्री भरतिया एवं श्री खंडेलवाल ने कहा की केवल पारंपरिक खुदरा से ही नहीं बल्कि ऑनलाइन रिटेल और विभिन्न प्रमुख फूड डिलीवरी ऐप भी प्लास्टिक कचरे को बढ़ाने में योगदान करने में पीछे नहीं हैं।इन कंपनियों द्वारा हर खाद्य ऑर्डर के पैकेजिंग के रूप में प्लास्टिक प्रयोग बड़े पैमाने पर होता है क्योंकि ये ऐप किसी भी खाद्य पदार्थ का एक भी टुकड़ा वितरित करने में प्लास्टिक का उपयोग करते हैं ! एक अनुमान के अनुसार कई प्रमुख ऑनलाइन डिलीवरी कंपनियाँ हर महीने 28 मिलियन ऑर्डर की डिलीवरी करती हैं जिसके कारण प्रत्येक आर्डर से प्लास्टिक का बड़ा कचरा पैदा होता है। एक फूड ऑनलाइन डिलीवरी कंपनी के सीईओ के अनुसार फूड डिलीवरी एग्रीगेटर्स के आर्डर की संख्यां के आधार पर यूज़ किये हुए प्लास्टिक से हर महीने 22,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक कचरा पैदा होता है !

इसी तरह ई-कॉमर्स कंपनियां भी प्लास्टिक पैकेजिंग के अधिक उपयोग के लिए जिम्मेदार हैं और इसलिए ई-कॉमर्स कंपनियों और ऑनलाइन खाद्य वितरण कंपनियों को उन प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार बनाया जाना चाहिए जो वे उत्पन्न करते हैं अन्यथा वे देश में बढ़ते प्लास्टिक कचरे में योगदान करना जारी रखेंगे। इंटरनेट कंपनियां प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियमों, 2016 के अंतर्गत विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी प्रावधान के दायरे में आती हैं, लेकिन कोई निगरानी प्रणाली नहीं होने के कारण वे अपने लाभ के लिए प्लास्टिक का भरपूर उपयोग कर बड़ी मात्रा में प्रदूषण बढ़ा रही हैं ! उन्होंने प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 ने कानून में सुधार करने का लक्ष्य रखा और प्लास्टिक कचरे के संग्रह, प्रसंस्करण और निपटान के लिए बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए प्रत्येक स्थानीय सरकारी एजेंसी को जिम्मेदार बनाया। 2018 में नियमों में और संशोधन किया गया, जिसमें विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी का एक प्रावधान जोड़ा गया और तदनुसार निर्माताओं, आयातकों और पैकेजिंग में प्लास्टिक का उपयोग करने वालों के साथ-साथ ब्रांड के मालिकों को भी प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया ! उन्होंने कहा की कटा हुआ प्लास्टिक कचरा सड़क बिछाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। 2015-16 में, राष्ट्रीय ग्रामीण सड़क विकास एजेंसी ने प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके लगभग 7,500 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया।

सरकार को बैंगलोर जैसे शहरों में अपनाई जाने वाली कुछ सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने पर विचार करना चाहिए जहां ड्राई वेस्ट कलेक्शन सेंटर न केवल स्थापित किए गए हैं, बल्कि एक स्व-टिकाऊ व्यवसाय मॉडल भी है। प्लास्टिक कचरे के लिए एक मुद्रीकृत संग्रह मॉडल स्थापित करने की आवश्यकता है जिसमें सभी शामिल लोगों के लिए रोजगार अर्जन भी होता है । वर्जिन प्लास्टिक (जैसे कि भोजन के पैकेट, आदि में इस्तेमाल होने वाले) को अलग-अलग एकत्र किया जाना चाहिए क्योंकि यह अधिक मूल्य का होता है। सरकार को प्लास्टिक के आयात पर प्रतिबंध लगाना चाहिए और निगरानी तंत्र के लिए एक थर्ड पार्टी ऑडिट स्थापित करने की आवश्यकता है।

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