एक मंदिर ऐसा भी जहाँ पुजारी आंखों पर पट्टी बांधकर करते हैं पूजा!

- चमोली जिले में नंदा राजजात मार्ग पर वाण गांव में स्थित ये मंदिर
- मंदिर के अंदर क्या है, अब तक किसी को नहीं मालूम
थराली : हिमालय की गोद में और नंदा राज जाट के मुख्य पड़ाव पर सीमांत जनपद चमोली के देवाल ब्लाक में 8 हजार फीट की ऊंचाई में बसा बेहद खूबसूरत हिमालय का अंतिम गांव है वाण जहां सिद्ध पीठ लाटू देवता का पौराणिक मंदिर है। प्रदेश के चारों धामों के बाद बैशाख पूर्णिमा पर लाटू देवता के कपाट आगामी छह महीने के लिए आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिये गये। श्रद्धालु छह महीने तक लाटू देवता की पूजा-अर्चना कर सकते हैं। यहाँ पर्यटक भी बड़ी संख्या में लाटू देवता के दर्शन प्राप्त करते हैं। इसे लाटू देवता के प्रति अटूट आस्था ही कहा जाएगा कि दूर-दूर से श्रद्धालुओं का मंदिर में हर वक़्त तांता लगा रहता है। यह मंदिर हिमालयी महाकुंभ नंदा देवी राजजात यात्रा का ये आखिरी पड़ाव है, यहाँ के बाद नंदा देवी राज जात मार्ग निर्जन पड़ावों से होकर गुजरने लगता है। इससे आगे रूपकुंड, बेदनी बुग्याल और आली बुग्याल हैं यही गांव वाण इस यात्रा का बेस कैंप है।
चमोली जिले के अंतिम गांव वाण देवाल में एक ऐसा मंदिर भी है, जहां श्रद्धालु अंदर प्रवेश नहीं कर सकते हैं। यहां तक की मंदिर के पुजारी भी अंदर देवता के दर्शन नहीं कर सकते हैं। यहां भगवान के स्वरूप को देखना वर्जित है। यह मंदिर है हिमालय की अराध्य देवी मां नंदा देवी के धर्म भाई सिद्धपीठ लाटू देवता का। मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुल गए हैं। बड़ी संख्या में भक्तों का इस मौके के साक्षी बने। पूरा मंदिर परिसर लाटू देवता के जयकारों से गूंज उठा।
कहते हैं कि भक्त की एक ही पुकार पर भगवान दौड़े चले आते हैं, लेकिन भगोती नंदा के धर्मभाई एवं भगवान शिव के साले लाटू की माया ही निराली है। स्थानीय पत्रकार संजय चौहान बताते हैं कि लाटू देवाल क्षेत्र (चमोली) के ऐसे देवता हैं, जिनके दर्शन भक्त तो दूर, खुद पुजारी भी नहीं कर सकता। पुजारी आंख पर पट्टी बांधकर पूजा करते हैं। मंदिर के कपाट बैसाख पूर्णिमा को खुलते हैं। छह माह बाद मंगशीर्ष पूर्णिमा को बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर के अंदर क्या है, किसी को मालूम नहीं।
स्थानीय लोग बताते हैं कि 12 वर्ष बाद जब नंदा मायके (कांसुवा) से ससुराल (कैलाश) जाते हुए वाण पहुंचती है, तब इस दौरान नंदा का लाटू से भावपूर्ण मिलन होता है। इस दृश्य को देख यात्रियों की आंखें छलछला जाती हैं। यहां से लाटू की अगुवाई में चौसिंग्या खाडू के साथ राजजात होमकुंड के लिए आगे बढ़ती है। लेकिन, वाद्य यंत्र राजजात के साथ नहीं जाते। मान्यता है कि वाण में ही लाटू सात बहनों (देवियों) को एक साथ मिलाते हैं। यहीं पर दशौली (दशमद्वार की नंदा), बंड भूमियाल की छंतोली, लाता पैनखंडा की नंदा, बद्रीश रिंगाल छंतोली और बधाण क्षेत्र की तमाम भोजपत्र छंतोलियों का मिलन होता है। अल्मोड़ा की नंदा डोली व कोट (बागेश्वर) की श्री नंदा देवी असुर संहारक कटार (खड्ग) वाण में राजजात से मिलन के पश्चात वापस लौटती है।
लाटू देवता पूरे पिंडरऔर दशोली(आंशिक) क्षेत्र के ईष्टदेव हैं। माना जाता हैं कि लाटू कन्नौज के गर्ग गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। जब शिव के साथ नंदा का विवाह हुआ तो बहन को विदा करने सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इनमें लाटू भी शामिल थे। मार्ग में लाटू को इतनी प्यास लगी कि वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उन्हें एक घर दिखा और वो पानी की तलाश में इस घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था, सो उसने लाटू से कहा कि कोने में रखे मटके से खुद पानी पी लो। संयोग से वहां दो मटके रखे थे, लाटू ने उनमें से एक को उठाया और पूरा पानी गटक गए। प्यास के कारण वह समझ नहीं पाए कि जिसे वह पानी समझकर पी गए, असल में वह मदिरा थी। कुछ देर में मदिरा ने असर दिखाना शुरू कर दिया और वह उत्पात मचाने लगे। इसे देख नंदा क्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। साथ ही आदेश दिया कि इन्हें हमेशा कैद में रखा जाए। यहां लाटू युगों से कैदखाने में हैं और यह कैदखाना ही उनका मंदिर भी है। दूर-दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू के मंदिर में आते हैं। कहते हैं यहां से मांगी मनोकामना जरुर पूरी होती है।
इस वर्ष लाटू देवता के कपाट खुलने पर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज मुख्य अतिथि रहे जहां उन्होने महिलाओ और पुरूषों के संग झूमेलो भी लगाये। पहले दिन तीन हजार से अधिक भक्तों ने लाटू के दर्शन कर पूजा-अर्चना कर अभिषेक किया। शुभलग्नानुसार मंदिर के पुजारी खीम सिंह टिमटिमा एवं थान सिंह ने पवित्र कुंड में स्नान कर आंख में पट्टी बांधकर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश किया। मंदिर के पंडित उमेश चंद्र कुनियाल एवं रमेश कुनियाल ने वेद मंत्रोच्चारण कर यज्ञ हवन कर मंदिर के कपाट खोले गए। लाटू देवता के दर्शन करने वालों का दिनभर तांता लगा रहा। इसके बाद देवनृत्य हुआ। लाटू के पश्वा ने भक्तों को प्रसाद वितरण किया।
मंदिर समिति के अध्यक्ष नारायण सिंह बिष्ट एवं संयोजक कृष्णा बिष्ट ने वाण लाटू धाम मंदिर को पांचवा धाम बनाने की मांग पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज से की है । महाराज ने उपचुनाव के बाद कार्रवाई का आश्वासन दिया है। वहीं पूर्व विधायक जीतराम ने भी लाटू के दर्शनकर विजयश्री का आर्शीवाद लिया। इस अवसर पर एक दिवसीय बोरी मेला भी लगा। मेले में काफी रौनक बनीं रही। मेले में झोड़ा चाचड़ी नृत्य एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए गए।
इस मौके पर क्षेप्र उर्मिला बिष्ट, भाजपा के ब्लाॅक अध्यक्ष गिरीश सिंह मिश्र, युवा नेता बलवीर धुनियाल, दलबीर दानू, दर्शन दानू, प्रधान खीमी राम, क्षेपंस हीरा पहाड़ी, नरेन्द्र बिष्ट, महावीर बिष्ट, गबर सिंह, जेप्र हरेन्द्र कोटड़ी, दली राम आदि मौजूद थे।