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हरकी पैड़ी पर गंगा है या नहर : एनजीटी के फैसले पर शुरू हुई बहस

हरकी पैड़ी पर फिर बहस शुरू ; गंगा है या नहर : धर्म की राजनीति पर एक और प्रहार !

हरिद्वार : एनजीटी के फैसले से हरिद्वार में एक बार फिर बहस शुरू हो गई है कि हरकी पैड़ी पर गंगा है या नहर। दरअसल, राज्य सरकार वर्ष 2016 में शासनादेश जारी कर हरकी पैड़ी तक आने वाली धारा को नहर घोषित कर चुकी है। दूसरी ओर गंगा सभा का कहना है कि यह असली गंगा है।

हरिद्वार में भीमगौड़ा से गंगा की एक धारा मुख्य धारा से अलग हरकी पैड़ी जाती है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) ने हरिद्वार से उन्नाव तक गंगा के किनारे सौ मीटर के दायरे में निर्माण और पांच सौ मीटर के दायरे में कूड़ा फेंकने पर रोक लगा दी है।

एनजीटी के इस आदेश के बाद सवाल उठ रहा है कि एनजीटी के आदेश की जद में कौन सी धारा आएगी। मुख्य धारा या हरकी पैड़ी का क्षेत्र। करोड़ों हिंदुओं की आस्था की केंद्र हरकी पैड़ी पर ही गंगा पूजन किया जाता है। यह हरिद्वार का मुख्य व्यावसायिक इलाका भी है।

वर्ष 2016 में एनजीटी और हाईकोर्ट ने हरिद्वार में गंगा के किनारे दो सौ मीटर के दायरे निर्माण ध्वस्त करने के आदेश दिए तो तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार ने हरकी पैड़ी की धारा को ‘स्कैब चैनल’ (नहर) करार दे दिया। हरीश रावत का तर्क था कि व्यावसायिक नुकसान से बचाने के लिए यह निर्णय लिया गया। तब इसका गंगा सभा ने जबरदस्त विरोध किया।

इस पर वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गंगा सभा को आश्वस्त किया कि फैसला बदल दिया जाएगा। मुख्यमंत्री के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए हरीश रावत ने कहा था कि ‘अगर मैंने गलत काम किया है तो वर्तमान सरकार व मुख्यमंत्री उसमें सुधार कर दें, मैं माफी मांगने को तैयार हूं।’ हालांकि शासनादेश अभी भी पूर्ववत है।

गंगा सभा के अध्यक्ष पुरुषोत्तम शर्मा और महामंत्री रामकुमार मिश्रा का कहना है कि हरकी पैड़ी पर गंगा है, इसे लेकर संदेह नहीं है, अग्रेजों ने भी इसे गंगा माना। दूसरी ओर एनजीटी के ताजा फैसले ने प्रशासन का असमंजस बढ़ा दिया है। हरिद्वार के जिलाधिकारी दीपक रावत कहते हैं कि एनजीटी के आदेश को पढ़े बिना कोई टिप्पणी करना उचित नहीं है।

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