Uttarakhand

पित्ताशय से सेक्स पॉवर मिलने के चलते जमकर हो रहा भालू का शिकार

देहरादून :  यौनवर्द्धक दवाओं में भालू की पित्त की थैली के इस्तेमाल के चलते उत्तराखंड के जंगलों में भालुओं की शामत आ गई है। जलवायु परिवर्तन के कारण बिगड़े वासस्थलों की वजह से यहां-वहां भटकते भालू आसानी से वन्य जीव तस्करों का शिकार हो रहे हैं। इन दिनों वन्य जीव तस्करों के गिरोह प्रदेश के जंगलों में सक्रिय हैं। वनाधिकारियों ने ग्राहक बनकर रुद्रप्रयाग के तीन अलग-अलग लोगों को पकड़ा है तो यह हकीकत सामने आई है। इसके बाद नेशनल वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो भी सतर्क हो गया है।

पुराने रिकॉर्ड के मुताबिक भालू की हत्या कर उसकी पित्त की थैली निकालने की घटनाएं प्राय: जाड़ों में नहीं होती थीं। परंपरागत रूप से जाड़ा भालुओं के ‘हाइबरनेशन’ में जाने का मौसम है, लेकिन तापमान बढ़ने से भालुओं के पुश्तैनी वासस्थल सिकुड़ गए या फिर नष्ट हो गए।साथ ही वहां आबादी भी पहुंच गई है। इससे भालू यहां-वहां छितरा गए हैं। वासस्थलों से हटकर नए स्थानों की तलाश में भटकते भालू आसानी वन्य जीव तस्करों का शिकार बन रहे हैं।

नेशनल वाइल्ड क्राइम कंट्रोल ब्यूरो के मुताबिक चीन, वियतनाम समेत अन्य एशियाई देशों में परंपरागत यौनवर्द्धक दवाए बनाने में भालू की पित्त की थैली का इस्तेमाल होता है। लिहाजा भालू की पित्त की थैली की इन देशों में अच्छी कीमत पर खासी डिमांड है।वाइल्ड क्राइम से जुड़े विशेषज्ञों की माने तो यूरोपीय देशों में इस तरह की यौनवर्द्धक दवाओं की डिमांड काफी हैं, जिनमें वन्यजीवों के अंग विशेष का इस्तेमाल होता है। हालांकि इन अंगों का इस्तेमाल महज नीम हकीमी सोच के चलते हो रहा है, इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय वन्य जीव तस्करों का नेटवर्क पित्त की थैली पाने के लिए स्थानीय वन्य जीव तस्करों का इस्तेमाल कर रहे हैं। ऐसे ही रुद्रप्रयाग जिले के वन्य जीव तस्कर दुष्यंत सिंह, रविंद्र कुमार, पंकज सिंह को वन विभाग के अधिकारियों ने डोईवाला, ऋषिकेश (देहरादून) से पिछले सप्ताह गिरफ्तार किया।स्थानीय तस्कर भालुओं को मारकर इनकी पित्त की थैली मामूली कीमत पर इस नेटवर्क से जुड़े लोगों को बेच देते हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय वन्य जीव तस्कर चीन, वियतनाम समेत अन्य एशियाई देशों में मोटी कीमत पर बेच देते हैं। 

चीन, वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया की परंपरागत शक्तिवर्द्धक दवाओं में भालू की पित्त की थैली का इस्तेमाल होता है।  मुनाफे के चक्कर में लोग भालुओं को मार रहे हैं। दरअसल, भालुओं के प्राकृतिक वासस्थल छोटे हो गए। हाइबरनेशन भी प्रभावित हुआ है। लिहाजा इधर-उधर भटकते भालुओं को वन्य जीव तस्कर निशाना बना रहे हैं।  तस्करों की नकेल कसने के लिए उनके घरों, ठिकानों पर नजर रखी जा रही है।
-निशांत वर्मा, उप निदेशक, नेशनल वाइल्ड लाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो

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