उत्तराखंड में गरीबों के अनाज में करोड़ों का खाद्यान्न घोटाला !
- वित्तमंत्री प्रकाश पंत को मिली गुप्त सूचना पर हुई एसआईटी जांच
- सरकार पर मामला बंद करने का था भारी राजनीतिक दबाव
- एक ही चालान के कागज़ पर कई ट्रक चावलों का किया गया ट्रांसपोर्टेशन
- कुमाऊं के संभागीय खाद्य नियंत्रक (आरएफसी) विष्णु धनिक निलंबित
- घोटाले में सरकार को अनुमानित 600 करोड़ का हुआ नुकसान
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : भारी राजनीतिक दबाव के बाद आखिरकार त्रिवेन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेन्स पर अपनी नीति साफ़ करते हुए पिछले तीन महीने से चल रही एसआइटी जांच की रिपोर्ट के आ जाने के बाद संभागीय खाद्य नियंत्रक (आरएफसी) कुमाऊं विष्णु धनिक पर बड़ी कार्रवाही की है। धनिक को करोड़ों रुपये के खाद्यान्न घोटाले के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया है।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने बीती रात धनिक को बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया। मामले की पहले जिला पुलिस के स्टार पर जांच की पुष्टि के बाद एसआईटी को अग्रिम जांच के लिए मामला सौंपा गया था।इस मामले में प्रमुख सचिव खाद्य, नागरिक आपूर्ति आनंद बर्द्धन को मिले निर्देश के बाद तत्कालीन डिप्टी आरएमओ सहित अन्य सभी संलिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ दो दिन के अंदर कड़ी कार्रवाई की जाए। मामले में राइस मिलर की भी संलिप्तता सामने आयी है।
सूबे के बीपीएल वर्ग को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सस्ता खाद्यान्न न मिलने एवं घटिया अनाज की सप्लाई किए जाने की शिकायत सूबे के वित्त मंत्री प्रकाश पंत को मिली थी जिसकी जानकारी उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को दी थी। मामले की पहले स्थानीय पुलिस से बारीकी और गुप्त रूप से जांच करवाई गयी इसके बाद मामले में किसी बड़े घोटाले की आशंका होने और कई अधिकारीयों के मामले में संलिप्पतता पाए जाने के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने इस मामले में दो अगस्त 2017 को स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) गठित करने का आदेश दिया था।
दो दिन पहले ही एसटीएफ नेअपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट प्रदेश शासन को सौंपी थी, जिसमें सस्ता खाद्यान्न उपलब्ध न होने, दस्तावेजों में हेराफेरी करने के साथ ही अनेक स्तर पर गड़बड़ी और अनियमितता का उल्लेख किया गया है। मामले में यह बात भी सामने आयी है कि इस घोटाले में राइस मिलर से लेकर आरएफसी मिले हुए हैं , जांच में पाया गया कि बीपीएल के लिए ख़रीदे गए चावल केवल कागज़ों में ही इधर से उधर ट्रांसपोर्ट किये जा रहे थे। इस मामले में पुलिस ने जुलाई महीने में एक व्यक्ति को चावलों के कागजो के साथ अफजलगढ़ – धामपुर मार्ग के मध्य भूतपुरी में पकड़ा था जिसके बाद इस घोटाले की परतें एक के बाद एक खुलने लगी। मामले के तार ऋषिकेश तक से जुड़े हुए पाए गए हैं क्योकि एसटीएफ जांच के दौरान सरकार पर इस मामले को बंद करने का भारी राजनीतिक दबाव भी आया था।
प्राप्त जानकारी के अनुसार खाद्यान मामले में यह अनियमितता पिछले दो सालों से जारी है। एसटीएफ ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि इससे सरकार को करोड़ों रुपये (लगभग 600 करोड़) के राजस्व का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तत्काल प्रभाव से आरएफसी कुमाऊं को बर्खास्त करने का आदेश प्रमुख सचिव खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति को दिया। एसआईटी रिपोर्ट आने के बाद मुख्यमंत्री के निर्देश पर कार्मिक विभाग ने धनिक को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा दिए गए सेवा विस्तार को समाप्त करने संबंधी आदेश जारी कर दिया है और उनकी पेंशन रोके जाने की तैयारी की जा रही है। पूरे मामले में दो दिन के भीतर अधिकारियों पर बड़ी कार्रवाई सामने आ सकती है। विष्णु धनिक पूर्ववर्ती सरकार के चहेते अधिकारियों में से थे। हरीश रावत के नेतृत्व वाली सरकार ने उनको दो बार सेवा विस्तार दिया, जबकि कार्मिक और वित्त विभाग ने इस पर आपत्ति लगाई थी। दोनों विभागों की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए धनिक को दो बार सेवा विस्तार दे दिया गया। प्रदेश में जब भाजपा की सरकार आई, तब भी उनका सेवा विस्तार जारी रहा। उनके पास आरएफसी कुमाऊं के साथ-साथ समाज कल्याण विभाग के निदेशक का पद बना रहा।
समाज कल्याण विभाग में भी तमाम गड़बड़ियां आने सामने आने के बाद सरकार ने उनसे निदेशक का पद हटाने या सेवा विस्तार को समाप्त करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। भाजपा सरकार के कार्यकाल में छह माह तक वह दोनों पदों पर बने रहे। इसकी वजह त्रिवेंद्र सरकार के एक मंत्री से उनकी नजदीकी बताई जाती है। मंत्री की नजदीकी की वजह से ही उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।
अब जब उनके सेवा विस्तार की अवधि समाप्त होने में कुछ महीने का वक्त शेष रह गया था तो उनकी सेवा समाप्त करने का आदेश जारी कर दिया गया। एसआईटी की जांच में बड़े पैमाने पर धांधली की पुष्टि के बाद अब वरिष्ठ विपणन अधिकारी, विपणन अधिकारी और राज्य भंडार निगम के गोदाम प्रभारियों पर गाज गिर सकती है। वहीं मंडी में पिछले साल धान खरीद में बड़ा खेल पकड़े जाने के बाद मंडी सचिव और विपणन निरीक्षक भी कार्रवाई की जद में आ सकते हैं। धांधली के मामले में जल्द ही ऊधमसिंहनगर में एफआईआर भी दर्ज हो सकती है।
वहीँ धनिक को बर्खास्त किए जाने के बाद अब और अधिकारियों पर भी गाज गिराने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीँ अगले आदेशों तक इस पद का कार्यभार ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी को सौंप दिया गया है। शासन ने यह आदेश इसलिए जारी किया है कि प्रदेश में एक अक्तूबर से धान की खरीद चल रही है।
जांच पांच बिंदुओ के आधार पर की गई :-
01-चावल मिलर्स से खरीदे गए चावल के वितरण में विभागीय व सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों की संलिप्तता
02-चावल के वितरण में अधिकारी-कर्मचारियों व चावल मिलर्स स्तर से विभिन्न प्रक्रियाओं व प्राविधानों का पालन किया गया या नहीं
03- प्रकरण में पुलिस विभाग की संलिप्तता की स्थिति
04-इस प्रकरण में सरकार को राजस्व में हुए नुकसान का विवरण व दोषी अधिकारी-कार्मिक का विवरण
05-भविष्य में इस तरह की घटना न हो, इसके संबंध में सुझाव।
मामले में जांच के दौरान बाजपुर, काशीपुर, रुद्रपुर, किच्छा के राज्य भंडारण निगम के कार्यालय व गोदाम, वरिष्ट विपणन अधिकारियों, चावल मिल के कार्यालयों, मंडी सचिवों, सहायक निबंधक सहकारी समिति, आरएफसी कार्यालय के विभिन्न अधिकारियों, कर्मचारियों तथा किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, राइस मिलर्स के प्रतिनिधियों, धान चावल वितरण में प्रयुक्त वाहन स्वामियों, चालको आदि से पूछताछ से संबंधित बिंदुओं पर गहन चर्चा कर जानकारी हासिल की गई।
उनके बयान दर्ज किए गए। साथ ही उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों का परीक्षण भी किया गया। जांच में रुद्रपुर राज्य भंडारण निगम के गोदाम संख्या दो में राज्य पोषित योजना के 8382 बोरे तथा सीएमआर योजना की 4318 बोरे (कुल 12,700 बोरे) के सापेक्ष सत्यापन में 10668 बोरे ही पाए गए। राज्य पोषित योजना से संबंधित चावल में 3680 बोरे ऐसे पाए गए, जिनमें अपठनीय दोहरी स्टेनसिल की छाप पाई गई। खाद्यान्न की गुणवत्ता भी घटिया पाई गई। इसी तरह की गड़बड़ियां किच्छा व काशीपुर के गोदामों में पाई गई। यहां भी बोरो के सत्यापन में गड़बड़ी मिली। चावल के वितरण भी कई अनियमितताएं पाई गई। चावल वितरण के लिए आवंटित चालानों को केंद्र बाजपुर से व्यापक स्तर पर बगैर तिथि, बगैर ट्रक नंबर अंकित किए चालान जारी किए गए। कई वाहनों को वास्तविक रूप से गंतव्य स्थल तक नहीं जाना भी पाया गया।
जांच के निष्कर्ष मे्ं साफ लिखा गया है कि चावल का मूवमेंट किए जाने के लिए मुवमेंट चालान के प्राविधान की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। वरिष्ट विपणन अधिकारियों ने कहा कि राजनीतिक दबाव में प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसकी जानकारी उच्चाधिकारियों को भी थी, लेकिन उन्होंने भी कोई कदम् नहीं उठाए। धान की नीलामी या खुली नीलामी से बोली लगाई जाने की व्यवस्था केविल 5 से 10 फीसदी मामलों में ही अपनाई गई। धान की बड़ी मात्रा जो राईस मिलर द्वारा सीधे काश्तकारों से खरीद ली जाती है, उसको कच्चा आढती के माध्यम से खरीद दिखाई गई जबकि धान मंडी में नीलामी के लिए आया ही नहीं आया।
3,07692 कुंतल चावल खरीद कर राज्य पोषित योजना में आपूर्ति की गई। इसमें 2310 रुपए प्रति कुंतल की दर से लगभग 71, 0768,520 रुपए का प्रतिवर्ष के हिसाब से पिछले दो साल के दौरान प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष गलत व्यय संभावित है। राज्य भर में 3,07692 कुंतल चावल के वितरण में परिवहन शुल्क को यदि 50 रुपए प्रति कुंतल माना जाए तो इसमें 1,53,84,600 रुपए की सरकारी धन का नुकसान पाया गया। इसी तरह से 60 रुपए प्रति बोरे की दर से 3,69,23,040 रुपए की धनराशि का प्रतिवर्ष के हिसाब से विगत दो साल के दौरान गलत व्यय पाया गया। 50,47,948 कुंतल धान जिले से बाहर यूपी आदि राज्यों के काश्तकारों से खरीद कर जिले की मंडियों मे्ं लाया गया।
इसे जिले की मंडियों में कच्चा आढ़तियों के माध्यम से खरीद किया हुआ दिखाया गया। कमीशन एजेंटों के माध्यम से चावल की खरीद में नियत प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। इसी तरह की कई अन्य गड़बड़ियां मिली हैं इससे सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करीब 600 करोड के राजस्व नुकसान का आंकलन जांच रिपोर्ट में किया गया है।
( पकड़े गए इन्ही चालानों के आधार हुई कार्रवाही )