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18 साल 18 कदम !

- जनांदोलन से मिले उत्तराखण्ड राज्य का 18वा जन्मदिवस
- नहीं मिला सपनों का उत्तराखंड
नंदन सिंह रावत (राज्य आन्दोलनकारी )
इस अवसर पर चंद लोग खुश जैसे नेता, नौकरशाह ,ठेकेदार, भू मफिया , पत्रकार,चाटुकार,जंगल,खनन बजरी, दारू, लीशा माफिया….शायद राज्य इनके लिए ही बना। मनेरगा, खंडजा बना आनंद ले रहे ग्राम प्रधान भी,,, लेकिन बहुसंख्य खुशी की उम्मीद में कि राज्य में कब होगा रोजगार,कब मिलेगा शिक्षा, स्वास्थ्य,जनसुधिया का लाभ।
नाबालिग से वयस्क हुए इस राज्य में रामपुर तिराहा, मसूरी ,खटीमा कांड भी चढ़ गया घटिया राजनीति की भेट ।आज भी झेल रहे आंदोलकारी पीढ़ा, सन 2000 में राज्य तो बना लेकिन आज तक 2अक्टूबर 1994 मुजफ्फर नगर रामपुर तिराहे पर जनता की जान माल और आबरू से खेलने वालो को नहीं कर पाई कोई सरकार दंडित। काण्ड_94 के गुनाहगारों को 24 साल बाद भी सजा नहीं मिलना कमजोर नेतृत्व दूर दर्शिता की कमी का परिणाम।
कुछ आंदोलकारी जीते जी भी मरणासन्न जैसा जीवन जी रहे,उत्तराखंड राज्य आंदोलन कारी चिन्हकरण में भी बड़े बड़े खेल ,जिनकी सरकार ने पकड़ वो पैदा होते ही राज्य आंदोलकारी बन गया भोग रहा सुविधा।
18,साल में अभी तक लगभग 11536 उत्तराखंड राज्य आंदोलकारी चिन्हित हुए ,दिल्ली एनसीआर के सैकड़ों आंदोलकारी चिंहकरण की वाट देख रहे जबकि दिल्ली एनसीआर की मुख्य भूमिका रही राज्य आंदोलन में।
आंदोलनकारियों की इन्हीं कुर्बानियों से …..
जो ठेकेदार ग्राम प्रधान नहीं बन सकते थे विधायक बन गए, जो कभी पंचायत सदस्य तक नहीं लड़े वो सांसद बन गए,जो जिला पंचायत जीत कर जिले तक रहे वो भारत सरकार में मंत्री एवम् मुख्यमंत्री बन गए और ठीक उसी धारा पर चलते मुख्यमंत्रीयो ने राज्य ठेकेदारों,नौकरशाहों,माफियों के हाथ में सौंप दिया. इसलिए राज्य हित में सामाजिक, राजनीतिक,व्यवसायिक दृष्टिकोण आज तक पैदा ही नहीं हो पाया।
हर नेता अपने दिल्ली के आकाओं के हाथ की कटपुतली बना रहा,राज्य और राज्य की जनता जाय भाड में, आका खुस तो गद्दी पक्की, जिसका परिणाम 18साल 9मुख्यमंत्री और तैयार होती चाटुकार नेताओं, नोकर शाहो की एक जमात ,राज्य का विकाश नहीं हुआ, इसलिए जनता मान कर बैठ गई जब केंद्र और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार के बाद भी एक छोटा मुद्दा।
गैरसैण राजधानी नहीं सुलझ पा रहा जहां हरीश रावत सरकार ने राजधानी की सभी मूलभूत सुविधा दे दी,बस कमी गैरसैण राजधानी पर आत्म सक्ती से निर्णय लेनी की हिम्मत की।
इसलिए आम जनमानस को लगता जब सरकार राजधानी नहीं बना सकती वो सरकार रोजगार शिक्षा स्वास्थ्य नागरिक सुविधा केसे देगी।
राज्य में शराब नीति हर सरकार का धन अर्जन का मुख्य स्रोत बन गया,राज्य में व्यसन बढ़ने से युवा की सेना मे भर्ती की संख्या कम हो गई,, मनीऑर्डर और पेंसन पर चलने वाली अर्थव्यवस्था चरमरा गई,, गांव के गांव खाली होने लगे। भौतिक वाद के इस इंटरनेट युग में युवा वर्ग के पास पलायन ही उन्नति का एक रास्ता नजर आया,जिससे ,, गांव के गांव खाली होने लगे,,,