वेद विलास उनियाल
एक खबर यह है कि उप्र सरकार ने एवरेस्ट फतह करने वाले एक पर्वतारोही अर्जुन वाजपेयी को प्रोत्साहन के रूप में 30 लाख रुपए दिए हैं। मगर पडोस के इस उत्तराखंड की दो अलग अलग कहानियां हैं । दोनों अफसोस की । एक तरफ सबसे कम उम्र की लड़की एवरेस्ट पर फतह करती हैै तो उसके बारे में विधायक सांसद मंत्री खेल विभाग किसी को भी बधाई देने का वक्त भी नहीं होता। बल्कि उसके बारे में पता भी नहीं होता।
मीडिया में भी उसकी खबर उस तरह दब जाती है कि जैसे कुछ साल पहले अंटाकर्टिका से लौट कर आने वाली रीना शक्तू की। दूसरा एक दूसरे युवा प्रवीण रागण के बारे में हैं। कैसा विलक्षण युवा है हमारे पास। 1- प्रवीण ने उत्तरकाशी पर्वातारोहण संस्थान से पर्वारोहण का कोर्स किया। फिर 2009 में जम्मू कश्मीर जवाहर पर्वतारोहण का स्नो स्कींंग का कोर्स किया। इंटरनेशनल माउंट्रेनिंग सर्टिफिकेट लेकर त्रिशूल, गंगोत्री 1 , द्रोपदी का डांडा जैसे 21 पर्वतों पर साहसिक अभियान कर चुका है। 2- स्कीँइग स्नो का यह देश का पहला मास्टर डिग्री लेने वाला युवा है। गुलमर्ग से वाटर स्कीइंग कोर्स किया है। 3- नेशनल राफ्टिंग दो बार कर चुका है। साहसिक खेल की कौन सी ऐसी विधा जिसमें वह पारंगत नहीं है। 4- क्याकिंग नेशनल कर चुका है। क्याकिंग का नेशनल कोच रह चुका है।
गौरतलब हो कि प्रवीण उत्तरकाशी के नेहरू माउंट्रेनिंग संस्थान में कार्यरत था । वहीं उसे साहसिक खेलों के प्रति रुझान हुआ। वह इस क्षेत्र में इस तरह मन से डूबा कि देखते ही देखते उसने ऐसे ऐसे कोर्स कर दिए जिनका भारतीयों ने तब नाम भी नहीं सुना था। टिहरी के निवासी प्रवीण रागण पर उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश को गौरव होना चाहिए था। देश में इतना विख्यात खिलाडी, कई खेलों का कोच, और साहसिक अभियान वाला एक युवा है। लेकिन राज्य बनने के बाद जहां इस युवा के लिए अवसरों के द्वार खुलने थे वहीँ वह घोर उपेक्षा में जी रहा है।
सरकार विदेशों से कोच बुलाती है घर के विलक्षण युवा की ओर नहीं देखा जाता। ऐसा प्रदेश जो अपने को पर्यटन और साहसिक पर्यटन कहलकर इठलाता है वहां ऐसे युवा की बहुत कद्र होनी चाहिए थी। लेकिन ले देकर वह राफ्टिंग ही चलाता है। प्रवीण बिना आक्सीजन के एवरेस्ट पर जाने को तैयार है। वह साहसिक खेल के प्रोत्साहन के लिए अपने अनुभव दक्षता का लाभ युवाओं को देना चाहते हैं । देश विदेश के लोग साहसिक पर्यटन के लिए आए इसके लिए अपने अनुभव को देना चाहता है । मगर सुने कौन। कुछ से कहा भी तो बस कागज यहां वहां पटके जाते रहे। न जाने किन किन राजनेताओ शासकों के पास वह गया कितने खेल अधिकारियों से बात की ।
मगर ये उत्तराखंड है। मगर हमारे शासक भाग्य विधाता, हमारे खेल पर्यटन अभियान वाले, हमारे अधिकारी। दुनिया के हर देश के दौरे कर आते हैं कि उत्तराखंड को पर्यटन पर विकसित करना है। उडान पर उडान। मंहगी अय्याशी । पर साहसिक खेल पर्यटन के लिए इस युवा का कैसे इस्तेमाल हो इसे नजरअंदाज किया जाता है। प्रवीण जीवन चलाने के लिए राफ्टिंग कर रहा है दूसरों को रोजगार दे रहा है। उस राफ्टिंग पर भी पर्यावरणविदों की नजर रहती है। यह तो ध्यान आया कि लंदन ओलंपिक में बीस लोगों का टोला भेज दो पर प्रवीण की साहसिक अभियान के विभिन्न क्षेत्रों में कैसे इस्तेमाल हो इस तरह कोई ध्यान नहीं देता। ये उत्तराखंड है।
यही प्रवीण किसी नीदरलैंड स्वीडन डेनमार्क स्पेन आदि देश का निवासी होता तो वहां की सरकार उसके एक एक सेंकड का उपयोग कर रही होती। वह देश का दुलारा होता, ब्रांड अबेंस्डर होता। हम क्रिकेट के मान न मान मैं तेरा मेहमान वाली शैली में महेंद्र धोनी को ब्रांड अबेस्डर तो बना देते हैं लेेकिन प्रवीण रैंजर जैसे साहसिक उपलब्धि वाले और अपने क्षेत्र में काफी कौशल पराक्रम दिखााने वाले युवा प्रवीण रांगड की घोर उपेक्षा करते हैं ।