कमल किशोर डुकलान
वर्तमान युग विज्ञान का युग है जो हमारे जीवन को प्रत्येक क्षेत्र में प्रभावित करता है। यदि हम प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं के साथ छेड़छाड़ करते है,तो उसका प्रभाव हमारे समाज जीवन पर भी पड़ता है। आज विज्ञान हमारे दैनिक जीवन को इतना प्रभावित चुका है, कि समय के चलते हमारे सामाजिक मूल्य गिरते जा रहे हैं और हमारा समाज विनाश की ओर बढ़ रहा है।
आइए जानते हैं, जिनके प्रभाव से हमारे सामाजिक मूल्य गिरते जा रहे हैं।
वर्तमान समय में संयुक्त परिवार कि प्रथा लुप्त सी हो गई है।और लोग सिर्फ एकल परिवार तक ही सीमित हो गए हैं।सयुंत परिवार से जो सामाजिकता और संस्कार बच्चों को मिलते थे वे आज एकल परिवार में नहीं मिल पा रहे है। क्योंकि आज के समय में लोगों का जीवन-यापन करना बहुत मुश्किल हो रहा है।जीवन-यापन की इस भाग-दौड़ भरी जिन्दगी में लोगों के पास इतना समय ही नहीं है कि वे अपने बच्चों पर इतना ध्यान दे पाएँ कि उन्हें अच्छे संस्कार मिल सकें।
प्राचीनकाल में भारत विश्व गुरु कहलाता था लेकिन आज हमारी शिक्षा नीति की स्थिति इतनी दयनीय हो गई है,कि न तो लोगों को रोजगार मिल पा रहा है,और न ही अच्छे संस्कार। आज की शिक्षा प्रणाली सिर्फ सैद्धांतिक पक्ष पर बल देती है न कि प्रायोगिक फिर भी लोगों को रोजगार नहीं मिल रहा है। अगर कोई छोटी सी भर्ती भी निकलती है तो उसमें लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है।
इससे हमें अपनी शिक्षा के स्तर का पता चलता है। जिन लोगों को अध्यापक,प्रोफेसर,इन्जीनियर बनना चाहिए था वो आज कोई भी काम करने को तैयार है।ऐसे अनेकों उदाहरण है जो हमारी शिक्षा की गुणवत्ता की पोल खोलता है।काम न मिलने की वजह से कई लोग गलत रास्ते अपना लेते हैं”कहते भी है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है”आज की शिक्षा नीति में नैतिक शिक्षा पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है सिर्फ फाइलों में ही सिमट कर रह गई है।जिसका दुष्परिणाम आज हमारे समाज के सामने है।
आजकल टी.वी.और सिनेमा की भूमिका तो सामाजिक मूल्यों के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर ही रहा है। ऐसी अश्लील और फूहड़ सामग्री परोसी जा रही है जिसका सीधा प्रभाव बच्चों के बाल मन पर पड़ रहा है। जो जैसा देखते है उसी के अनुसार वो अनुकरण भी करते है।
कई सीरियल में तो दादी-नानी की भूमिका ऐसी दिखाई जाती है कि जैसे वो बहुत खतरनाक हो। दादी कि भूमिका बच्चे के जीवन से लगभग गायब सी ही हो गई है। लेकिन बच्चों को सबसे ज्यादा प्यार दादा-दादी ही करते करते हैं और उन्हीं की अच्छी कहानियों की वजह बच्चे अच्छे व संस्कारी भी बनते थे। लेकिन वर्तमान समय में सिनेमा और टी.वी.ने समाजिकता के सारे नैतिक मूल्यों को बिखेर कर रख दिया।
आज का युग विज्ञान का युग है और समय के साथ लोगों को भी बदलना चाहिए।आजकल सोशल मीडिया(social media) का युग चल रहा है जिसमें लोग अपनों से दूर होते जा रहे है और पराये लोगों के पास जो पास में बैठा है वो अपने से बात करने कि बारी का इंतजार करता रहता है और लोग जो दूर बैठे है शायद जिसको ठीक से जानते भी नहीं उसके साथ बात करने में मस्त है।जिससे लोग एक साथ रहते हए भी अपने-आप को एकला महसूस करते हैं।
सोशल मीडिया(social media)ने लोगों के जीवन को बदल कर रख दिया है जिससे सामाजिक मूल्यों में गिरावट आ रही है।
जब मोबाइल और इन्टरनेट नहीं था समाज में लोग शांति और भाई चारे से रहते थे यदा-कदा ही कुछ घटनाएँ घटती थी लेकिन जब से मोबाइल ने मानव जीवन में प्रवेश किया है और आम आदमी के हाथ में मोबाइल व् इन्टरनेट पहुंचा है तब से समाज कि शांति भंग सी हो गई है। क्योंकि आजकल इंटरनेट पर अश्लील सामग्री बहुत आसानी से मिल जाती है जिसे देखकर लोगों कि मानसिकता का पतन हो रहा है।और प्रत्येक दिन कितनी ही बहन बेटियों कि इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जा रही है।
मैं इसमें एक बात जरुर उन लोगों के लिए कहना चाहूँगा जो यह कहते है कि स्त्रियों या लड़कियों के पहनावे कि वजह से उनके साथ गलत होता है लेकिन वो लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि आज 6 माह कि बच्ची भी सुरक्षित नहीं है जिसको कपड़ों के बारे में मालूम भी नहीं होता। फिर उनके साथ क्यों गलत हो रहा है ऐसी घटनाएँ समाज में आये दिन होती रहती है। कुछ हैवान लोगों कि मानसिकता को बदलने में मोबाइल व इन्टरनेट पर उपलब्ध अश्लील सामग्री ही है,जिसकी वजह से आज समाज के नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं, कि जैसे-जैसे विज्ञान ने प्रगति की है हमें नैतिक व सामाजिक मूल्यों में निश्चित रूप से गिरावट देखने को मिली है।