जब अध्यापिका को जनता दरबार में बदसलूकी करना पड़ा महंगा

- पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के शासनकाल में भी कर चुकी है बदसलूकी
- धारा 151 में चालान करते हुए मजिस्ट्रेट सामने पेश कर निजी मुचलके पर छोड़ा
देहरादून : मुख्यमंत्री के जनता दरबार में एक अध्यापिका को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत जनता दरबार में बदसलूकी पूर्ण व्यवहार करना तब भारी पड़ा जब मुख्यमंत्री के बार-बार उसे संयमित भाषा का प्रयोग करने की हिदायत दी गयी लेकिन जब महिला नहीं मानी तो मुख्यमंत्री को विवश होकर उसे जनता दरबार हॉल से बाहर करने का निर्देश देना पड़ा महिला यहीं शांत नहीं हुई वह लगातार अपशब्दों का प्रयोग करती रही तो आखिरकार मुख्यमंत्री को उसे गिरफ्तार करने के आदेश देने पड़े। गौरतलब हो यह वही महिला है जिसे पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल ”निशंक” तथा हरीश रावत के शासनकाल में भी बदसलूकी पर निलंबित किया जा चुका है।
घटना आज प्रातः मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा लगाए गए जनता दरबार की है। पहले सब कुछ शांति से जनता दरबार चल रहा था। मुख्यमंत्री जनता की शिकायतों को सुनने के साथ ही उनकी समस्याओं के निस्तारण के लिए अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे। इस दौरान कई फरियादियों की समस्याओं का मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा समाधान भी मौके पर ही किया गया। कई लोग अपनी समस्याओं के समाधान और कुछ अपनी शिकायतों की सुनवाई से खुश भी नज़र आ रहे थे।
इतने में एक महिला जिसका नाम उत्तरा पंत बहुगुणा बताया गया अपनी समस्या को लेकर मुख्यमंत्री के सामने मुखातिब हुई और उसने अपना स्थानांतरण नौगांव उत्तरकाशी से देहरादून के लिए अपनी बात रखी । महिला का कहना था उसके पति की मृत्यु के बाद उसके बच्चे देहरादून में रहते हैं जिन्हे देखने वाला कोई नहीं है।
उत्तरा ने कहा कि वह पिछले 25 साल से दुर्गम क्षेत्र में अपनी सेवायें दे रही है और अब अपने बच्चों के साथ रहना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि उनके पति की मृत्यु हो चुकी है और अब वह देहरादून में अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ना चाहतीं। उत्तरा ने कहा, ”मेरी स्थिति ऐसी है कि ना मैं बच्चों को अकेला छोड़ सकती हूं और ना ही नौकरी छोड़ सकती हूं।
मुख्यमंत्री द्वारा यह पूछे जाने पर कि नौकरी लेते वक्त उन्होंने क्या लिख कर दिया था? उत्तरा ने गुस्से में जवाब दिया कि उन्होंने यह लिखकर नहीं दिया था कि जीवन भर वनवास में रहेंगी।
मुख्यमंत्री इस महिला की बात बहुत ही संजीदगी से सुन ही रहे थे कि महिला ने अचानक आपा खोते हुए मुख्यमंत्री को इंगित करते हुए अपशब्दों की बौछार शुरू कर दी। जनता दरबार हाल में महिला के अचानक बदले तेवरों और अपशब्दों की बौछार से हर कोई हतप्रभ हो गया।
महिला द्वारा लगतार बदसलूकी के बाद मुख्यमंत्री ने उसे जनता दर्शन हॉल से बाहर जाने को कहा लेकिन महिला इसके बाद भी लगातार अपशब्दों का प्रयोग करती रही। अन्तः मुख्यमंत्री को मजबूरी में महिला को गिरफ्तार करने के आदेश वहां उपस्थित पुलिस अधिकारियों को देने पड़े जिसके बाद पुलिस के महिला सुरक्षा कर्मियों ने महिला को हिरासत में ले लिया और उसे चौकी ले गए जहाँ से उसका धारा 151 में चालान करते हुए मजिस्ट्रेट सामने पेश कर निजी मुचलके पर छोड़ घर भेज दिया गया ।
गौरतलब हो कि इसी महिला द्वारा हरीश रावत सरकार के दौरान सचिवालय में लगे जनता दर्शन कार्यक्रम में हंगामा खड़ा किया गया था जिसके बाद से ही यह महिला अध्यापिका निलंबित चल रही है। गुरुवार को एक बार फिर इस गुरु ने अपने व्यवहार से सूबे के शिक्षकों के आम व्यवहार को लेकर सोचने पर मजबूर कर दिया है कि राज्य में कहीं न कहीं अब शिक्षकों को सामने वाले की गरिमा और अपने व्यवहार और आचरण के बारे में सोचना होगा।
https://youtu.be/Zhic5BUWeKg
आखिर कहां जा रहे हम??
Arjun Bisht Ghes Wale
शिक्षक समाज का दर्पण होता है हम उम्मीद करते हैं इस शिक्षक हमारे बच्चों को न केवल अच्छी शिक्षा देगा बल्कि उन्हें देश का एक जिम्मेदार नागरिक भी बनाएगा। शिक्षकों का एक बहुत बड़ा वर्ग है अपनी इस जिम्मेदारी को बहुत शिद्दत से निभा भी रहा है लेकिन आज मुख्यमंत्री आवास में आयोजित जनता दरबार में एक शिक्षिका ने अपना परिचय जिस तरह दिया है उससे न केवल शिक्षक समाज कलंकित हुआ होगा बल्कि अपने बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने की उम्मीद पाले लोगों को भी नाउम्मीदी दिख रही होगी। उक्त शिक्षिका को मैंने शिक्षा निदेशालय में कई बार चपरासी भी रोकते नजर आए मैडम अभी मीटिंग चल रही है आप थोड़ा इंतजार कर लीजिए। लेकिन वह जबरदस्ती अफसरों के कमरे में घुसते हुई भी दिखी । बहरहाल यह क्या समझ में आती है उत्तरकाशी या पहाड़ के किसी जिले़ में तैनात हर शिक्षक को देहरादून दे दिया जाए।
आज सुबह घटित इस घटना की लेकर सोशल मीडिया पर भी कई कई मित्रों की पोस्ट देख रहा हूं। ज्यादातर मित्रों ने शिक्षिका के अभद्र व्यवहार और उसके अमर्यादित आचरण को यह कहकर ढकने की कोशिश की है कि वह लंबे समय से उत्तरकाशी में है अच्छी भली नौकरी कर रही है। कुछ साथियों ने तो उसे दीन-हीन अबला बताकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश भी की। मित्रों मुख्यमंत्री और पूरी सरकार के सामने दिखा वह दुस्साहस किसी अबला का तो हो ही नहीं सकता। सोशल मीडिया से ही यह भी जानकारी मिली उक्त शिक्षिका पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जी के सामने भी बदतमीजी कर चुकी है ऐसे में सरकार का खुफिया तंत्र इस बात के लिए अलर्ट नहीं है कि आखिर बार बार बदतमीजी करने वाली ऐसी शिक्षिका को मुख्यमंत्री के जनता दरबार में प्रवेश कैसे मिल गया। यह भी विचारणीय प्रश्न है कि इतने लंबे समय से मुख्यमंत्रियों के सामने अपनी समस्या रखने वाली इस शिक्षिका को क्यों नहीं राहत मिली। ऐसे बहुत सारे सवालों का उत्तर जाने बिना शिक्षिका के आचरण को उसकी परेशानियों के लवादे ढकने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। अब बड़ा सवाल यह भी है क्या यह शिक्षिका मानसिक रूप से परेशान तो नहीं है जो 3-3 मुख्यमंत्रियों के साथ बदतमीजी करने में भी नहीं चुकी.। कहीं ऐसा ना हो शिक्षिका किसी दिन स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के साथ ही कोई बड़ी अप्रिय घटना को अंजाम न दे दे।
इसलिए मेरा तो सुझाव है कि उक्त शिक्षिका की मानसिक स्थिति की जांच करायी जानी चाहिए कहीं वह मानसिक रुप से अस्वस्थ तो नहीं है। कहीं एेसा तो नहीं कि वह पढ़ाने की स्थिति में ही नन हो। अगर ऐसा है तो उसे वीआरएस दिया जा सकता है। आखिर किसी शिक्षिका को मुख्यमंत्री के सामने सलीके से अपनी बात रखने का तरीका नहीं आता हो तो उससे हम कैसे उम्मीद कर लें कि वह अपने तैनाती वाले विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों को अच्छा ज्ञान दे पाएगी हो सकता है । मेरे कई शिक्षक मित्र मेरी इस पोस्ट को पढ़कर नाराज भी हो जाएं लेकिन मित्रों को आज की घटना के बाद यह सवाल निश्चित रूप से आपके मन में भी कौंध रहे होंगे।
Ved Vilas
क्या वाकई शिक्षिका का आचरण वहां पर ठीक नहीं था। हो सकता है बहुत परेशान हो। ये नेता अधिकारी किसकी सुन रहे हैं। राज्य के हाल तो शुरू से अराजक हैं.
Anita Upadhyaya शिक्षा विभाग में 90% शिक्षकों की स्थिति यही हो चुकी है या कहूँ वयस्क होते – होते उत्तराखंड में ऐसी ही बना दी जा चुकी है !!!! बस !!!!! अन्य सभी तथाकथित दरबार तक नहीं पहुँच पाते हैं, ये तथाकथित दरबार में जाकर अपनी पीड़ा उगल आयीं हैं! !! हो सकता है इनके बच्चों को अब भूखा रहना पड़े न्याय के नाम पर ।
****18 सालों तक विभाग में जुगाड़ व जुगाड़बाजी की जयकारा होती रहेगी तो आम शिक्षक के साथ यही तो होगा! !!! क्या सदस्यों सहित कभी संघों ने गलत को गलत कहकर गलत ट्रांस्फ़रों को रद्द करने के लिए हंगामा किया ? यदि प्रान्त स्तर पर जुगाड़बाजी को पोषित किया गया तो क्या निचले स्तरों पर हंगामा किया गया ? शिक्षा विभाग में जबतक क्रांति कोई नहीं लाएगा त्याग नहीं करेगा तबतक न्याय की बातें भी हास्यास्पद और सुधार के दावे और भी हास्यास्पद! !!! गलत नींव गलत इमारत को ही सहारा देकर खड़ा रखती है !!!! फिलहाल मैम का जाना – पहचाना नाम है बस बद्किस्मती है कि उत्तराखंड में शिक्षक हैं जिन्हें व्यवस्था ने इस मोड़ पर ला दिया है !!!!!
इन्द्र सिंह नेगी जब तक पूरे घटनाक्रम का विवरण ना मिले तब तक टिप्पणी करना उचित नहीं, मुख्यमंत्री तो एक संवैधानिक पद पर है अकारण सामान्य व्यक्ति भी एकदम से इस तरह व्यवहार नहीं करते, अचानक तो हुआ नहीं होगा कि मुख्यमंत्री ने इस तरह कहना शुरू कर दिया इससे पहले क्या हुआ इसकी जानकारी हो तो वो भी सामने आनी चाहिए ।