PITHORAGARH

गांव तक सड़क पहुँचने की आस में गुजर गईं जवानी

पिथौरागढ़ । सडक से लगा प्रगतिशील काश्तकार दिनेश जोशी का गांव बाराकोट। विगत चार पीढिय़ों से काश्तकारी के बल पर उपार्जन। गांव से अति लगाव के बाद वर्तमान हालात के चलते दिनेश जोशी का अब गांव में रहने का मन नहीं। सडक़ से 6 किमी की पैदल दूरी पर स्थित गांव ओलतड़ी। कमोबेश यही स्थिति है इस गांव की भी है। 70 वर्षीय प्रताप राम की गांव तक सडक़ की आस में जवानी गुजर गई। पूर्वजों के गांव में रहने को अब उनकी इच्छा नहीं परंतु मजबूरी आड़े आ रही है।

यही हाल खीम सिंह हों या पार्वती देवी आदि के हैं। प्रगतिशील काश्तकार गावों में जंगली जानवरों के आतंक से परेशान हैं तो सडक़, शिक्षा, चिकित्सा से वंचित क्षेत्र के ग्रामीण नगरों, कस्बों में मिलने वाली सुविधा से गांव की तुलना करते गावों में रहने को इच्छुक नहीं हैं। थोड़ी सी आर्थिक स्थिति सुधरने के साथ ही निकट के कस्बे या फिर जिला मुख्यालय और तराई भावर का रुख कर रहे हैं। गांवों में कहीं भी पलायन पर अंकुश लगाने के लिए संचालित सरकारी योजनाएं नजर नहीं आती हैं। नेताओं, सरकार और अधिकारियों पर कोई भरोसा नहीं रह चुका है। यह दर्द जिला मुख्यालय से तीन किमी दूर स्थित गांवों से लेकर चीन और नेपाल सीमा से लगे गांवों में एक जैसा है। सीमांत जिला तो सर्वाधिक पलायन का शिकार है।

इस जिले में तीन राजस्व गांव जनशून्य हो चुके हैं तो तीन दर्जन से अधिक गांव आपदा के चलते पलायन कर चुके हैं। खुद निर्वाचन कार्यालय के अनुसार आज भी 52 मतदान केंद्र सडक़ से चार से लेकर 27 किमी की दूरी तक स्थित हैं। जो स्पष्ट करता है कि आज भी जिले का एक चैथाई क्षेत्र सडक़ से वंचित है। अनियोजित विकास के चलते जिले के अधिकांश गांव अभी भी मूलभूत समस्याओं से जूझ रहे हैं। बीमार पडऩे पर 50 किमी दूर तक दवा नहीं मिलती है। ग्रामीणों को अपने बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए निकट के कस्बों या फिर जिला मुख्यालय से लेकर बाहर जाना पड़ता है।

गांवों की दुर्दशा को लेकर अब ग्रामीणों को अपने ही गांव रास नहीं आ रहे हैं। एक नहीं अनेकों समस्याओं से जूझ रहे हैं। राज्य बनने के बाद भी गांवों की तकदीर नहीं बदली है। जिले का सबसे बड़े मुनस्यारी तहसील का अंतिम गांव मिलम में भारत-चीन युद्ध से पूर्व पांच सौ परिवार रहते थे। इस गांव के बारे में कहा जाता था कि जब नई नवेली वधु आती थी तो घर का एक सदस्य एक माह तक उसे गांव की गलियों, पनघट आदि के रास्तों का परिचय देता था। वर्तमान में ग्रीष्मकाल में इस गांव में अब मुश्किल से डेढ़ दर्जन परिवार ही माइग्रेशन में पहुंचते हैं। तहसील डीडीहाट के औलतड़ी गांव में मात्र तीन से चार परिवार, नरेत, पंतगाव में 14 परिवार भर रह चुके हैं। इन दोनों गांवों में एक दशक पूर्व तक 41 परिवार थे।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »